पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/११६

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जिहोल्लेखनिका १७६१ जिहोल्लेखनिका, जिबोल्लेखनी-सक्षा स्त्री० [म.] जीभी (को०) । जींगन-सञ्चा० [सं० जूगण ] खद्योत । जुगनू । 30-विरह जरी लखि जींगननि कही सुबह के बार। परी पाठ उठि भीतर बरसति माज अंगार ।-बिहारी (शब्द०)। जी---सहा पुं० [सं० जीय ] १. मन। दिल । तबीयत । चित्त। उ.--(क) कहत नसाह होह हिम नीकी। रीझन राम जानि जन जीकी । मानस, १२८ । २ हिम्मत | दम । जीवट । ३ सकल्प। विचार । इच्छा । चाह । महार-जी अच्छा होना=चित्त स्वस्थ होना। रोग मादि की पीडा या वेचैनी न रहना। नीरोग होना । जैसे,-दो तीन दिन तक बुखार रहा, माज जो अच्छा है। किसी पर जी ग्राना- किमी से पेम होना । हृदय का किसी के प्रेम में अनुरक्त होना । जी उकताना = चित्त का उघाट होना। चित्त न लगना । एक ही अवस्मा में बहुत काल तक रहते रहते परिवर्तन के लिये पित्त व्यग्र होना। तबीयत घवगना । जैसे,-तुम्हारी बातें सुनते सुनते तो जी उक्ता गया। जी उचटना-चित्त न लगना। चित्त का प्रवृत्त न होना । मन हटना । किसी कार्य, वस्तु या स्थान प्रादि से विरक्ति होना । जैसे,-प्रब तो इस काम से मेरा जी उचट गया। जी उठना-दे० 'जी उचटना' । जी उठाना -पित्त हटाना । मन फेर लेना। विरक्त होना । मनु. रक्त न रहना। जी उड़ जाना = भय, माशका आदि से चित्रा सहसा व्यग्र हो जाना। चित्त चचत हो जाना। धैर्य जाता रहना । जी में घबराहट होना । जैसे,---उसकी बीमारी का हाल सुनते ही मेरा तो जी उह गया। जी उदास होना=चित्त खिन्न होना । जी उलट जाना = (१)मन का वश मे न रहना । चित्त चंचल और अव्यवस्थित हो जाना। चित्त विक्षिप्त हो जाना । होश हवास जाता रहना । (२) मन फिर जाना चित्त विरक्त होना । जी करना=(१) हिम्मत करना । हौसला करना । साहस करना (२) जी चाहना । इच्छा होना । जैसे, अब तो जी करता है कि यहाँ से चल दें। जी कापना भय प्राशका मादि से लेजा धक धक करना । हृदय घर्राना। डर लगना । जैसे,—वहाँ जाने का नाम सुनते ही जी कापता हैं । जी का बुखार निकालना हृदय का उद्वेग बाहर करना। क्रोध, शोक, दु ख प्रादि के वेग को रो कलपकर या पक झक- कर शांत करना। ऐसे क्रोष या दुख को शब्दों द्वारा प्रकट करना जो बहुत दिनो से चित्त को सतप्त करता रहा हो। जी का बोझ या भार हलका होना - ऐसी बात का दूर होना जिसकी चिता मित्त में बराबर रहती पाई हो । खटका मिटना। पिता दूर होना । जी का प्रमान मांगना = प्राण रक्षा

  • की प्रतिज्ञा की प्रार्थना करना 1 किमी काम के करने या किसी

बात के कहने के पहले उस मनुष्य से प्राणरक्षा करने या अपराध क्षमा करने की प्रार्थना करना जिसके विषय में यह निश्चय हो कि उमे उस काम के होने या उस बात को सुनने से अवश्य दुख पहुंचेगा। जैसे, यदि किसी राजा से कोई पप्रिय बात करनी हुई तो लोग पहले यह कह लेते हैं कि 'जी का प्रमान पाऊँ तो वहूँ। जो फा मा लगना-प्राणों पर पा बनना । प्राण बचना कठिन हो जाना । ऐसे भारी झझट या सकट में फंस जाना कि पीछा छुड़ाना कठिन हो जाय । जी को निकालना = (१) मन की उमग पूरी करना। दिल की हवम मिकालना । मनोरथ पूरा करना । (२) हृदय का उदगार निकालना। क्रोध, दुख, द्वेष मादि उग को बफ झक कर शांत करना। बदला लेने की इच्छा पूरी करना। जी का जी में रहना=मनोरथों का पूरा न होना । मन में ठानी, सोची या चाही हुई बातों का न होना। जी की पड़ना = प्राण बचाने की चिता होना। प्राण बचाना कठिन हो जाना । ऐसे भारी झमट या सकट में फंस जाना कि पीछा छुडाना कठिन हो जाय । 30--सब असबाब दाढो मैं न काढ़ो तेन कादो वैन कालो जिय की परी सभारे सहम महार को। —तुलसी (शब्द०)। जी का जीवटवाला । जिगरेवाला। साहसी। हिम्मतवर । दमदार ! 70-धनी धरनी के नीफे मापुनी मनी के सग मा जुरि जी के मो नजीके गरजी के । सो1- गोपाल (शब्द॰) । (किसी के) जी को समझना - किसी के विषय में यह समझना कि वह भी जीव है, उसे भी काष्ट होगा। दूसरे के कप को समझना। दूसरे को क्लेशन पहुंचाना। दूसरे पर दया करना । जी को मारना=(१) मन की इच्छानों को रोकना चित्त के उत्साहों को न पूरा फरना । (२) सतोप धारण करना । जी को न लगना = (१) चिस में अनुभव होना । हृदय में वेदना होना । सहानुभूति होना। जैसे-दूसरो की पीड़ा प्रादि किसी के जी को नही लगती । (२) प्रिय लगना । माना ! पच्छा लगना । जी खट- फना=(१) चित्त में खटका या सदेह उत्पन्न होना। (२) हानि मादि की माशका से (किसी काम के करने से ) जी हिचकना। (किसी से या किसी के पोर से ) जी सट्टा करना = मन फैर देना । चित्त में घणा या विरक्ति उत्पन्न कर देना। चिरा विरक्त करना। हृदय में दुर्भाव उत्पन्न करना । जैसे,—तुम्हीं ने मेरी पोर से उनका जी खट्टा कर दिया है। (किसी से या किसी ओर से ) जी खट्टा होना = चित्त हट जाना । मन फिर जाना या विरक्त होना। अनुराग न रहना। घृणा होना । जैसे,—उसी एक बात से उनकी पोर से मेरा जी खट्टा हो गया। जी खपाना=(१) चित्त तन्मय करना। (किसी काम में ) जी लगाना । नितात दत्त- चित्त होना। जी तोड़कर किसी काम में लग जाना । (२) प्राण देना । प्रत्यत कष्ट उठाना । जी खुलना %सकोच छूट जाना। घड़क खुल जाना। किसी काम के करने में हिचक न रह जाना । जी खोलकर =(१) बिना किसी सफोच के। बिना किसी प्रकार के भय या लज्जा के बिना हिचके । वेधडक । जैसे,-जो कृछ तुम्हें कहना हो, जी खोलकर कहो। (२) जितना जी चाहे । विना अपनी ओर से कोई कमी किए। मनमाना । यथेष्ट । जैसे-तुम हमें जी सोलकर गालियां दो, चिता नहीं। जी गॅवाना =प्रारण देना । जान सोना । जी गिरा जाना = जी बैठा जाना। तबीयत सुस्ठ होती जाना । शिशिल- ता पाती जाना । जी घबराना = (१)चित्त व्याकुल होना । मन व्यग्र होना । (२) मन न लगना । जी ऊरना । जी चलना =