पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/११८

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१७६३ कता है। जी धकधक करना-कलेजे का भय प्रादि के प्रावेग से जोर जोर से उछलना । जी धडकना-हर लगना। जी घकधक होना= दे० 'जी धकधक करना'। जी निकलना- (१) प्राण छूटना। प्राण निकलना । मृत्यु होना । (२) चित्त व्याकुल होना। डर लगना । प्राण सूखना । जैसे,—प्रय तो उघर जाते इसका जी निकलता है। (३) प्राणांत कष्ट होना। कष्टबोष होना। जैसे,—तुम्हारा रुपया तो नहीं जाता है, तुम्हारा क्यों जी निकलता है ? जी निढाल होना= चित्त का स्थिर न रहना । चित्त ठिकाने न रहना। चित्त विह्वल होना । हृदय व्याकुल होना । जी पक जाना=किसी अप्रिय वात को नित्य देखते देखते या सुनते सुनते चित्त दुखी हो जाना। किसी चार पार होने- वाली बात का चित्त को प्रसह्य हो जाना। और अधिक सुनने का साहस चित्त में न रहना । जैसे,-नित्य तुम्हारी जली कटी बातें सुनते सुनते जी पक गया। जी पड़ना=(१) शरीर में प्राण का संचार होना । जैसे-ाम के यालफ को जी पड़ना । (२) मृतक के शरीर में प्राण का संचार होगा। मरे हुए में जान प्राना । जी पकड़ लेना= कलेजा थामना । किसी प्रसह्य दुख के वेग को दवाने के लिये हृदय पर हाथ रख लेना। जी पकडा पाना = मन में सदेव पड़ जाना माथा ठनकना। कोई भारी खटका पैदा हो जाना। चिप्त में कोई भारी माशका उठना । ( स्थि.)। जैसे,--सार पाते ही मेरा तो जी पकड़ा गया । जी पर पा धनना = प्राण पर मा मनना । प्राण बचाना कठिन हो जाना। ऐसे भारी सकट या झझट में फंस जाना कि पीछा छुडाना कठिन हो जाय । जी पर खेलना = प्रारण को संकट में डालना । जान को प्राफत में डालना। जान पर जोखों उठाना। ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का भय हो । जी पानी करना = (१) लहू पानी एक फरना। प्राण देने पोर लेने की नौबत साना। भारी मापत्ति खड़ी करना। (२) चित कोमल या दया करना। बी पानी होना-चित्त कोमल पा वयाद्रं होना । जी पिघलना- (१)दया से हृदय द्रवित होना। चित्त का बयादें होना । (२)हृदय का प्रेमाद्रं होनी । पित्त में स्नेह का संचार होना। जो पीछे पपना - दिल बहलना । चित्त वॅटना। मन का किसी मोर एंट जाना जिसमें दु.स की बात कुछ भूल जाय । (स्त्री०) जी फट जाना = हृदय मिला न रहना । चित्त में पहले का सा सद्भाव या प्रेमभाव न रह जाना। प्रीति भग होना। प्रेम मे प्रतर पर जाना। चित्त विरक्त होना । किसी की पोर से चित्त खिन्न हो जाना । जी फिर जाना=मन हट जाना । चिरा विरक्त होक जाना। चित्त भनुरक्त न रहना। हृदय में घृणा या प्रचि उत्पन्न हो जाना । जैसे,—जब किसी पोर से जी 'फिर जाता है तब फिर बह बात नहीं रह जाती। जी फिसलना = चित्त का किसी की ओर ) प्राकर्षित होना। मन खिचना । हृदय अनुरक्त होना । मन मोहित होना। मन लुमाना । जी फीका होना-दे० 'जी खट्टा होना' । जी घटना = (१) चित्त का किसी मोर इस प्रकार लग जाना कि किसी प्रकार की दुःख या चिंता की बात भूल जाय। जी बहलाना । (२) चित्त का एकाग्र न रहना । चित्त का एक विषय मे पूर्ण रूप से न लगा रहना, दूसरी बातों की पोर भी पना जाना। ध्यान स्थिर न रहना । ध्यान भग होन्म । मन उचटना । जैसे,-काम करते समय यदि कोई कुछ बोलने लगता है तो जी बँट जाता है । (३) एकात प्रेम न रहना । एक व्यक्ति के अतिरिक्त दूसरे पक्ति से भी प्रेम हो जाना। अनन्य प्रेम न रहना। जो वद होना-दे० 'जी फिरना' । जी दढ़ना = (१) चित्त प्रसन्न या उत्साहित होना । हौसला बढ़ना । (२),साहस बढ़ना । हिम्मत माना। जी बढ़ाना=(१) उत्साहानढ़ाना । किसी विषय में प्रवृत्त करने के लिये उत्तेजित करना । प्रशसा पुरस्कार मादि द्वारा किसी काम में रुचि उत्पन्न करना । हौसला बढ़ाना। जैसे,-लडकों का जी बढाने के लिये इनाम दिया जाता है। (२) किसी कार्य की सफलता की भाशा बंधाकर पधिक उत्साह उत्पन्न करना। किसी कार्य में होनेवाली बाधा या कठिनाई के दूर होने का निश्चय दिलाकर उसकी पोर अधिक प्रवृत्ति ' उत्पन्न करना । साहस दिलाना । हिम्मत बंधाना । जी बहलना = (१) चित्त का किसी विषय में लगकर पानद अनुभव करना। चित्त फा पानदपूर्वक लीन होता । मनोरजन होना । जैसे,-थोड़ी देर तक खेलने से जी बहल जाता है। (२) चित्त के किसी विषय में लग जाने से दुःख या चिंता की बात भूल जाना । जैसे,-मित्रों के यहाँ मा जाने से कुछ जी बहल जाता है नहीं तो दिन रात उस चात का दुस्स बना रहता है। जी बहलाना = (१) रुचि के मनुकूल किसी विषय में लगकर मानद अनुभव करना। मनोरंजन करना । जैसे,—कमी कभी जी बहलाने के लिये ताश मी सेल लेते हैं । (२) चित्त को किसी सोर लगाकर दुख या चिता की बात भूल जाना। जी बिखरना=(१) चित्त ठिकाने न रहना । मन विह्वल होना । (२) मूर्या होना। बेहोशी होना। जी विगहना = (१) जी मचलाना। मतली घटना । के करने की इच्छा होना। (२) भिटकना । घृणा करना । घिन मालूम होना । जी बुरा फरना = के करना। उलटी करना । वमन करना। (किसी की भोर से ) जी दुरा फरना=किसी के प्रति अच्छा भार न रखना । किसी के प्रति बुरी धारणा रखना। किसी के प्रति घृणा या क्रोध करना । ( किसी की भोर से दूसरे का ) श्री बुग करना= (१) दूसरे का ख्याल खराब करना । बुरी धारणा उत्पन्न करना। (२) क्रोध, घृणा या दुर्भाव उत्पन्न करना । बी बुरा होना = (१) के होना। उलटी होना । (२) ख्याल खराव होना। (३) चित्त में दुर्भाव या घरणा उत्पन्न होना । जी बैठ जाना = (१) चित्त विह्वल होता जाना। चित्त ठिकाने न रहना । चैतन्य न रहना । मू. सी घाना । जैसे,-पाज न जाने क्यो बड़ी कमजोरी जान पहती है और जी बैठा जाता है। (२) मन भरना । उदासी होना। जी भिटकना = चित्त में घृणा होना । घिन मालूम होना। जी भरना ( क्रि० प्र०)= (१) चित्त तुष्ट होना । तुष्टि होना । तृप्ति होना । मन मघाना । मौर अधिक