पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१२०

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, जो जगत का जीव वह है ही नहीं । 'लुट गए धन जी मिलना । (१) हृदय के भाव परस्पर एक होना-एक चित्त सटा जिसका नहीं। -चोखे०, पु० २२ । जी लहाना%D का दूसरे के चित्र के अनुकूल होना । मैत्री का व्यवहार होना। (१) प्राण जाने की भी परवाह न करके किसी विषय (२) चित्त में एक दूसरे से प्रेम होना । परस्पर प्रीति में तत्पर होना। (२) मन का पूर्ण रूप से योग होना । ( किसी व्यक्ति या वस्तु से ) जी हट जाना- चित्त देना । पूरा ध्यान देना । सारा ध्यान लगा देना। जी प्रवृत्त या भनुरत न रह जाना । इच्छा या चाह न रह पाना । लरजना-दे० 'जी कॉपना'। जी ललचना=(१) जो जैसे,—(क ) ऐसे कामों से मव हमारा जी हट गया। (स) में लालच होना। चित्त में किसी बात के लिये प्रबल उससे मेरा जी एकदम हट गया। जी हवा हो जाना=किसी इच्छा होना। किसी वस्तु की प्राप्ति मादि की गहरी भय, दुख या शोक के सहसा उपस्थित होने पर चित्त स्तब्यहो लालसा होना । (२) किसी चीज के पाने के लिये तरसना । जाना 1 चित्त विह्वल हो जाना। जी घबरा जाना । पिष्ठ व्याकुल जैसे,-वहाँ की सुदर सुंदर वस्तुओं को देखकर जी सलच हो जाना । (किसी का) जी हाथ में रखना % (१) किसी गया । (२) चित्त पाकर्षित होना । मन लुभाना । मन मोहित का भाव अपने प्रति अच्छा रखना । राजी रखना । मन मैला न होना। जी लमचाना-(१) (क्रि०प०) दे० 'जी ललचना। होने देना । (२)जी में किसी प्रकार का खटका पैदा न होने (२) (क्रि० स०) दूसरे के चित्त में लालच उत्पन्न करना । देना । दिलासा दिए रहना । जी हाय मे लेना-दे० 'जी हाथ किसी बात के लिये प्रबल इच्छा उत्पन्न करना । किसी वस्तु के में रखना। जी हारना = (१) किसी काम से घबराना मा लिये जी तरसाना । जैसे,-दूर से दिखाकर क्यों उसका नी कब जाना । हैरान होना। पस्त होना । (२) हिम्मत हारना । ललचाते हो, ऐना हो तो दे दो।(३)मन लुभाना । मन मोहित साहस छोड़ना । जी हिलना=(१) भय से हृदय काँपना । करना। जी लुटना-मन मोहित होना । मन मुग्ध होना । जो पहलना । (२) करुणा से हृदय क्षुब्ध होना । दया से हृदय प्रेमासक्त होना । जी लुमाना = (१) (क्रि० स०) चित्त पित्त उद्विग्न होना। प्राकर्षित करना । मन मोहित करना । हृदय में प्रीति जी-प्रव्य० [सं० जित् प्रा० जिव(=विजयो) या सं०(श्री') युत उपजाना । सौंदर्य प्रादि गुणों के द्वारा मन स्वींचना । (२) प्रा० जुक, हिं० ] एक समानसूचफ शब्द जो किसी नाम { फि० प्र०) चित्त भापित होना । मन मोहित होना या प्रल्ल के भागे लगाया जाता है अथवा किसी बड़े के कपन, जैसे,—उसे देखते ही जी लुमा जाता है। जी लूटना-मन प्रश्न या संबोधन के उत्तर रूप में जो संक्षिप्त प्रतिसयोषन मोहित करना । जी लेना-जी चाहना । जी करना। चित्त होता है उसमें प्रयुक्त होता है । जैसे,—(क) श्री रामचंद्र जी, फा इच्छुक होना । जैसे,-वहाँ जाने के लिये हमारा जी पठितजी, त्रिपाठी जी, लाला जी इत्यादि 1(ख) कपन-थे नहीं लेता। (दूसरे का ) जो लेना :प्राण हरण करना । थाम कैले मीठे हैं। उत्तर-जी हाँ । बेशम । (ग) तुम वहाँ गए मार डालना । जी लोटना = जी घटपटाना । किसी वस्तु की थे या नहीं? सर-जी नहीं। (घ) किसी ने पुफारा- प्राप्ति या और किसी बात मे लिये चित्त व्याकुल होना। रामदास ? उत्तर--जी हाँ ? (या केवल ) जी । चित्त का प्रत्यत इच्छुक होना। ऐसी इच्छा होना कि विशेष-प्रश्न या केवल सबोधन में जी का प्रयोग बों के लिये रहा न जाय । जी सन हो जाना- भय, पार्थका मादि से नहीं होता । जैसे किसी बड़े के प्रति यह नहीं कहा जाता कि चित्त स्तब्ध हो जाना। जी घबरा जाना । घर के मारे (क) झ्यों जी! तुम कही ये? अथवा (ख) देखो चित्त ठिकाने न रहना । होश उड़ जाना । जैसे,—उसे सामने जी। यह जाने न पाये। स्वीकार करने मा हामी देखते ही जी सन हो गया। जो सनसनाना = (१) भरने के प्रयं में 'जी हाँ के स्थान पर केवल 'जी' चित्त स्तब्ध होना । भय, माशका, क्षीणता प्रादि से अगों की बोलते हैं, जैसे, प्रश्न-तुम वहाँ गए थे? उत्तर-जी! गति शिपिल ह. ना । (२) चित्त विह्वल होना । जी साय (प्रर्थात् हाँ)। उच्चारए भेद के कारण जी से तात्पर्य पुन. साय करना =दे 'जी सनसनाना' । जी से=जी लगाकर । कहने के खिये होता है । जैसे,--किसी ने पूछा- तुम कहाँ जा ध्यान देकर । पूर्ण रूप से । दत्तचित्त होकर । जैसे-जी से जो रहे हो ? उत्तर मिला 'जी'? अर्थ से स्पष्ट है कि श्रोता पुनः काम किया जायगा वह क्यों न अच्छा होगा। (किसी वस्तु या सुनना चाहता है कि उससे क्या कहा गया है। व्यक्ति का ) जी से उतर जाना हाल्ट से गिर जाना। जी-वि० [अ० जी वाला 1 सहित । मुक्त (को०)। ( किसी वस्तु या व्यक्ति की) इच्छा या चाह न रह जाना। यौ०-जीशकर करवाना। तमीजदार। (२) सममवार । किसी व्यक्ति पर स्नेह या श्रद्धा न रह जाना । ( किसी वस्तु जीशान = पानवाला । या व्यक्ति के प्रति ) चित्त में विरक्त हो जाना। भला न जीप अँचना । हेय या तुच्छ हो जाना । बेकदर हो जाना 1 जी से -सक्षा पुं० [हिं० दे० 'जी', 'नीच'। उतारना या जी से उतार देना- किसी वस्तु या व्यक्ति को जीशन --सचा पु० [हिं० ] दे० 'जीवन'। उपेक्षा या अवहेलना करना कदर न करना । जी से जाना जीर+-सया पुं० [ जीय] दे० 'जीव' । प्रायविडीन होना। मरना। जान खो बैठना । जैसे,-बकरी जीऊ@--सपा पुं० [हिं०] दे० 'जिउ'150-बिनु जल मीन तपी तस अपने जी से गई. सानेवाले को स्वाद ही न मिला। जी से जी . जीऊचाविक भई फहत पिउ पीक।-जायसी पं०.१०३३४। ४-१४