पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१३०

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जगति जुआपोरो दाँव जीतकर खिसक जाय । २. धोखेबाज । धोखा देकर दूसरों का माल उठा लेनेवाला। ठग । वचक । जुयाचोरी-सश श्री० [हिं० जुआ+ चोरी ] ठगी। धोखेबाजी। वचकता। क्रि० प्र०—करना। जुवाठा-सज्ञा पुं० [हिं० जुमा+काठ ] दे० 'जुभाठा' । जाठा-सरा पुं० [सं० युग+ काष्ठ] हल में लगनेवाला वह लकड़ी का ढांचा जो बैलो के कधो पर रहता है। जुयाही-सज्ञा पुं० [हिं० जुमारी ] दे० 'जुमारी'। जुआना-सा पुं० [ हि० ] दे० 'जुवान'। जानो-सवा स्त्री० [हिं० जूमान+ ई (प्रत्य॰)] दे० 'जवानी।। जुयाव -सहा पुं० [फा० जवाब ] दे० 'जवाब'। उ.---पावे जाड जनावे तुषार, हिए विरहानल जुभाव भए की।-हिंदी प्रेमा, पृ. २७१। जुधार-सहा पु.हि. ज्वार] दे० 'ज्वार'।१०–जाएखने दितह मालिंगन गाढ । जनि जुमार परसे खेलपाढ़।-विद्यापति, पृ० ३४३1 जुबारकुर-सा पुं० [हिं० जुमा+मार (प्रत्य॰) ] जुमा खेलने- वाला व्यक्ति । जुपाडी। ३०-संशय सावज शरीर महें, सगहि खेल जुमार ।-कबीर वी०, पृ०८८ । जुधार-सश श्री. [हिं० ज्वार ] दे॰ 'ज्वार'। जुधारदासी-सचा सी० [?] एक प्रकार का पौधा जो फूलो के लिये लगाया जाता है। जुमार भाटा-सदा [हिं० ज्वारभाटा ] दे० 'ज्वार भाटा'। जुधारा-सबा पुं० [हि. जोतार] उतनी धरती जितनी एक जोडी ना एक जाडा वैल एक दिन में जोत सके । जुधारी-सश पुं० [हिं० जुमा ] जुमा खेलनेवाला । जइना-सञ्ज्ञा पुं० [सं० यूनि ( = बघन या जोड़)] धास या फूस की - ऐंठकर बनाई हुई रस्सी जो वोम बांधने के काम मे माती है। ई-सशी० [हिं० जू] १ छोटी जुमा। २ एक छोटा कीडा जो मटर, सेम इत्यादि की फलियों में लगकर उन्हे नष्ट कर देता है। जुई-सा बो [?] वरछी के आकार का फाठ का बना वह पात्र जिससे हवन में पी छोड़ा जाता है । श्रुवा। जुई-सचा खो० [सं० यूयो, हि. जुही ] दे॰ 'जुही। जकवि -सहा स्त्री० [सं० युक्ति] दे० 'जुगत'। उ०-उकति जुकति रसभरी उठाऊँ। भागमरी को हरष बढ़ाऊँ।-पनानंद, उसमे कोई संभावना न हो। किसी मनुष्य का कोई ऐसा काम करना जो उसने कभी न किया हो या जो उसके स्वभाव या अवस्था के विरुद्ध हो। जुकुट-सहा पुं० [सं०] १ कुत्ता । २ मलय पर्वत [को०] । जक्ति -सक्षा स्त्री० [सं० युक्ति 1 १ मिलनयोग। उ०-तन चपक कुंदन मनो के केसर रंग जुक्ति ।---पृ० रा०, ६ । ५४ । २ उपाय । यत्न । उ०--कृत मन बास पास मनि तेहि मां, करि सो जुक्ति दिलगावा ।-जब्बानी, पृ० ४७ । जुग-सज्ञा पुं० [सं० युग ] १ युग। मुहा०-जुग जुग%चिर काल तक । बहुत दिनों तक । जैसे,- जुग जुग जीमो। २ दो। उभय । 30-बाला के जुग कान मैं वाला सोभा देत । -भारतेंदु न, भा०१, पृ० ३८८। ३. जत्या । गुट्ट । दल । गोल। मुहा०—जुग टूटना=(१) किसी समुदाय के मनुष्यों का परस्पर मिला न रहना । मलग पलग हो जाना । दल टूटना । मंडली तितर बितर होना । जैसे,—सामने शत्रु सेना के दल खड़े थे, पर आक्रमण होते ही वे इधर उधर भागने लगे मोर उनके जुग टूट गए । (२) किसी दल या मंडली में एकता या मेल न रहना । जुग फूटना = जोडा खहित होना। साथ रहने- वाले दो मनुष्यों में से किसी एक का न रहना। ३ चौसर के खेल में दो गोटियो का एक ही कोठे मे इकट्ठा होना। जैसे, छग छूटा कि गोटी मरी। ४. वह डोरा जिसे जुलाहे तारो को अलग अलग रखने के लिये ताने मे डाल देते हैं। ५ पुश्त। पीढी। जुगजुगाना--कि० म० [हिं० जगना (=प्रज्वलित होना)] १. मद मद और रह रहकर प्रकाश करना । मद ज्योति से चम- कना'। टिमटिमाना। जैसे, तारो का जुगजुगाना। उ०- कोठरी के कोने में एक दीया जुगजुगा रहा था। २. भवनत या हीन दशा से क्रमश कुछ उन्नत दशा को प्राप्त होना । कुछ कुछ उभरना । कुछ कीर्ति या समृद्धि प्राप्त करना। कुछ बढ़ना या नाम करना । जैसे,—वे इधर कुछ जुगजुगा रहे थे कि चल बसे। जुगजुगी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० जुगजुगाना ] एक चिडिया जिसे शकर- खोरा भी कहते हैं। जुगत'-सञ्चा बी० [ स० युक्ति ] १ युक्ति । उपाय । तदवीर । ढग। उ.--सब्द मस्कला करै ज्ञान का कुरठ लगावै । जोग जुगत से मदै दाग तव मन का जावे।-पलटु०, भा० १, पृ०२॥ क्रि०प्र०-करना। मुहा०-जुगत भिड़ाना या मिलाना या लगाना जोड तोड़ बैठाना । ढग रचना । उपाय करना । तदबीर करना । २ व्यवहारकुचलता। चतुराई । हथकंडा। ३. चमत्कारपूर्ण उक्ति । घुटकुला। जुगविण-सज्ञा श्री [सं० युक्ति ] उपाय । तदबीर। उ---जोग- जुगति सिखए सबै मनो महामुनि मैन । चाहत पिय भसता काननु सेवत नैन ।-बिहारी र०, दो. १३॥ जुकाम-ससा पुं० [हिं० जूड़+ धाम वा प्र. जुकाम, तुलनीय सं० यक्ष्मन, "जखम, जुखाम ] अस्वस्थता या बीमारी जो सरदी लगने से होती है पौर जिसमें शरीर मे कफ उत्पन्न हो पाने के कारण नाक मौर मुंह से कफ निकलता है, ज्वराश रहता है, सिर भारी रहता मोर दर्द करता है। सरदी। क्रि० प्र०-होना। मुहा०-जुकाम बिगड़ना-जुकाम का सुख जाना । मेढकी को जुकाम होना = किसी मनुष्य में कोई ऐसी बात होना जिसकी