पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१३१

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जुगतो'--वि० [हि० जुगत+ई (प्रत्य॰)] उपायो । युक्ति- जगाना-क्रि० स० [हिं० जुगवना ] दे० 'जुगवना'। 30--जस कुशल । जोड़ तोड बैठा लेने में कुशल . भुवगम मणि जुगावे मस शिष्य गुरू माज्ञा गहे 1-कबीर सा० जुगती-सका बी० [सं० युक्ति ] युक्ति । उपाय । उ---कोई कहे पृ. २१२। जुगती सब जानूं कोई कहे मैं रहनी। मातम देव सोपारयो जुगार-सहा स्त्री० [देश॰] दे॰ 'जुगाली' उ०-बैठे हिरन सुहावने नाहीं यह सब झूठी कहनी ।-कधीर श०, मा० १, पृ० १०१ जिन पै करत जुगार ।-शकुतला, पृ० ११६ । जुगनी'-- बी० [हिं० जीगना ] दे० 'जुगन'। जुगालना-कि० म०[सं० उद्गिलन ( = उगलना) सीगवाले चौपायो जुगनी--समाक्षी देश ] एक प्रकार का गाना जो पजाब में का निगले हुए चारे को पोड़ा थोड़ा करके गले से निकाल गाया जाता है। मुह मे लेकर फिर से धीरे धीरे चबाना-। पागुर करना। जुगनी-- श्री. [ देश ] एक प्रकार का प्राभूषण। वि० दे० जुगालो-सश बी० [हिं० जुगालना] सोगवाले चौपायो की निगले 'जुगन' २'उ०-बाल मे कटवा, कठा, हँसली, उर मैं हमेल हए चारे को गले से पोडा थोड़ा निकाल निकाल फिर से कल चपकली, जुगनी चौकी, मूगे नकली 1-ग्राम्या, चबाने की क्रिया | पागुर । रोमप। पृ०४.। कि००-फरना। जुगनू-सहा पुं० [सं० ज्योतिरिङ्गण, प्रा. जोगण अथवा हि जग- जुगी' -सपा पुं० [सं० योगी ] योग करनेवाला । जोगी। उ0- जुगाना , गूबरेले की जाति का एक कीड़ा जिसका पिछला रिपि सत जनी जगम जुती रहहि ध्यान प्रारभ मह1-पृ० भाग माग की चिनगारी की तरह चमकता है। यह कोटा रा०, १२०८६ | बरसात मे बहुत दिखाई पड़ता है। खद्योत । पटवीजना। जुगी -वि० [हिं० युगी ] युग से सष रखनेवाला । युग का। विशेष-तितली, गुबरैले, रेशम के कीडे आदि की तरह यह कीडा विशेष- इसका प्रयोग समास में ही मिलता है। जैसे सतयुगी, भी ढोने के रूप में उत्पन्न होता है। ढोले की भवस्था में यह कलयुगो । मिट्टी के घर में रहता है और उसमें से दस दिन के उपरात जुगुव@---सहा बी० [सं० युक्ति] दे० 'जुगत' । रूपांतरित होकर गुबरेले के रूप में निकलता है। इसके पिछले । जुगुति-सच्चा स्त्री० [सं० युक्ति] दे० 'जुगत'। उ०—हीत हमरू कर भाग से फासफरस का प्रकाश निकलता है। सबसे चमफीले लोमा वस । जोग जुगुति गिम भरल माप। -विद्यापति, जुगनू दक्षिणी अमेरिका में होते हैं जिनसे कहीं कहीं लोग पृ० ३६७ । दीपक का काम मी सेते हैं। इन्हें सामने रखकर लोग महीन जुगुप्सक-वि० [सं०] व्यर्थ दूसरे की निंदा करनेवाला। से महीन अक्षरो की पुस्तकें भी पढ़ सकते हैं। जुगुप्सन-संज्ञा पुं० [सं०] [वि० जुगुप्स, जुगुप्सित] निदा करना। २ स्त्रियो का एक गहना जो पान के मोकार का होता है और दूसरे की बुराई करना। गले में पहना जाता है। रामनामी। जुगुप्सा--संज्ञा स्त्री० [सं०] १ निंदा । गहंणा । बुराई । २ जुगमबु-वि० सं० युग्म] दे० 'युग्म' । उ०--ररो ममु जुगम में प्रषद्धा । घृणा। मक बाकी रह्या ।-रघु०6०, पृ०५७) विशेष--साहित्य मे यह वीभत्स रस का स्थायी भाव है और जुगल-वि० [सं० युगल ] दे० 'युगल'। उ०-लाल कचुकी मैं उगे ' शांत रस का व्यभिचारी। पतजलि के भनुसार शौच या जोबन जुगल लखात ।-भारतेंदु प्र०, भा० १, पृ. ३८७ । शुद्धि लाभ कर लेने पर अपने भगो तक से जो घृणा हो जाती जुगलस्वरूप - पु. [सं० युगल+ स्वरूप] १ नियामक प्रकृति है और जिसके कारण सासारिक प्राणियों तक का ससर्ग पुरुप के रूप में मान्य युग्म विग्रह । २. राधाकृष्ण । उ०- अच्छा नहीं लगता, उसका नाम 'जुगुप्सा' है। तम युगल स्वरूप ने वा कोठी में ही परसन दीनो।-दो सौ जुगुप्सित-वि० [सं०] निदित । घृणित।। पावन०, भा॰ २, पृ० ७८ । जुगुप्सु-वि० [सं०] निदक । बुराई करनेवाला। जुगलिया-सका पुं० [?] जैन कथामो के मनुसार वह मनुष्य जिसके जुगुप्सू-वि० [सं०] दे॰ 'जुगुप्सु। ४००६ दाल मिलकर भाजकल के मनुष्यो के एक चाल के जुरत-एमा बी• [सं० युक्ति ] दे० 'युक्ति'। उ०-जोग जगत ते बरावर हो । भरम न छूटै जब लग मापन सूझे। कहै कबीर सोइ सतगुरु जुगवना--क्रि० स० [सं० योग+ भवना (प्रत्य॰)]१ सचित पूरा जो कोह समझ बूझ।-कबीर श०, भा० १, पृ०५२। रक्षना। एकत्र करना। जोड जोड़कर रखना कि समय पर जुग्म-वि० [सं० युग्म ] ३० 'युग्म'।-अनेकार्थ०, पृ. ३३।। काम पाए । २ हिफाजत से रखना। सुरक्षित रखना । यल जुज'-सचा पुं० [म. जुज, मि० सं० युज ] १. कागज के. भौर रक्षापूर्वक रखना। पृष्ठो या १६ पृष्ठों का समूह । एक फारम । जुगाड़ा-सा पु. [ देश पयवा संयोग (=योजन) + हिं० माइ यौ०-जुजवंदी। (प्रत्य॰)] १ व्यवस्था । कार्यसाधन का मार्ग ।२. युक्ति। २ मा । टुकड़ा। 30-जुज से कुल कठरे से दरिया बन क्रि०प्र० करना। वैठाना। जावे। अपने को खोये तब अपने को पावे। -भारतेंदु प्रे०, जुगादरी-वि० [सं० युगान्तरीय ] बहुत पुराना। बहुत दिनों का। भा०२, पृ०५६५