पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१३६

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जुराब १५८५ जुलहा फट तक की ऊंचाई तक के तो सब ही होते हैं पर कोई कोई जुर्रा-सज्ञा पुं० [फा०] नर घाज । उ०-वृक्षो पर जुर्रे, बाज, १८ फुट तक की ऊंचाई के भी होते हैं। इसकी मखि ऐसी बड़ी बहरी इत्यादि ।-प्रेमघन॰, भा०२, पु०२०। मोर उभरी हई होती हैं कि बिना सिर फेरे हुए ही यह अपने जर्राव-सशाली [१०] मोजा ! पायताबा ! चारों मोर देख सकता है। इसी से इसका पकड़ना या जुरी-सचा स्त्री॰ [हिं० जुर्रा] पाज । मादा वाज । शिकार करना बहुत कठिन है । इसके नथुनो की बनावट ऐसी जुल-सज्ञा पुं० [सं० छल] घोसा। दम । झांसा । पट्टी । दल विलक्षण होती है कि जब यह चाहे उन्हें बद कर ले सकता हैं। छद । चकमा । इसकी जीभ १७ इच तक लवी होती हैं। यह प्राय वृक्षो की क्रि० प्र०-देना।—में माना । पत्तियों खाता हैं और मैदानो में मुड बांधकर रहता है। चरते यो०-जुलबाज । जुलबाजी। समय मुड के चारो पोर चार जुराफे पहरे पर रहते हैं जो शत्रु के ग्राने की सूचना तुरत झूड को देते हैं। शिकारी जुलकरन -सक्षा पुं० [अ० जुल्फ़र्नेन ] सम्राट सिकदर की लोग घोड़ो पर सवार होकर इसका शिकार करते हैं, परतु उपाधि जिसके दोनो कधो पर बालो को लटें पड़ी रहती थी। बहुत निकट नही जाते, क्योकि इसके लात की चोट बहुत कड़ी उ.-भये मुरीद जुलहा के पाई। तबही जुलकरन नाम होती है। इसका चमड़ा इतना सख्त होता है कि उसपर धराई।-कवीर सार, पृ० १५१ । गोली असर नहीं करती। इसका मास खाया जाता है। जुलकरनैन-सा पुं० [अ० जुल्फ़र्नेन सुप्रसिद्ध यूनानी बादशाह यह पशु फड बांधकर परिवारिफ रीति से रहता है, इसी से सिकदर की एक उपाधि जिसका भयं लोग भिन्न भिन्न प्रकार हिंदी कवियों ने इसके जोड़े में अत्यत प्रेम मानकर इसका से करते हैं। कुछ लोगो के मत से इसका अर्थ दो सीगोंवाला काव्य मे उल्लेख किया है परतु समझने में कुछ भ्रम हुमा है । वे कहते हैं कि सिकदर प्रपने देश की प्रथा के अनुसार दो है और इसको पशु की जगह पक्षी समझा है। जैसे,—(क) सीगोवाली टोपी पहनता था। इसी प्रकार कुछ लोग 'पूर्व मिलि बिहरत बिछुरत मरत दपति अति रसलीन । नूतन और पश्चिम दोनो कोनो को जीतनेवाला', कुछ लोग '२० वर्ष विधि हेमत की जगत जुराफा कीन ।-विहारी (शब्द॰) । राज्य करनेवाला' और कुछ लोग 'दो उच्च ग्रहो से युक्त' (ख) जगह जुराफा ह जियत सज्यो तेज निज भानु । रूप अर्थात् भाग्यवान भी मयं करते हैं। रहे तुम पूस मे यह घो कौन सयानु - पचाकर (शब्द०)। जुलना-क्रि० स० [हिं० जुड़ना] १ मिलना अर्थात् समिलित होना।२ मिलना अर्थात् मेंट करना । राब-सचा स्त्री० [हिं० जुर्राव ] दे॰ 'जुर्राब'। १०-उसकी कनी जुराब में एक छेद हो जाय |-अभिशाप्त, पु. १३८ । विशेष-यह क्रिया अबब अकेली नही बोली जाती है। जैसे,- जुरावना+-क्रि० स० [हिं० जुषावना ] दे॰ 'जुडाना'। (क) मिल जुलकर रहो। (ख) जिससे मिलना हो, मिल जुल मानो। जुरावरी-वि० फा० [जोरावरी] दे० 'जोरावरी' 1 30--सुदर जुलफल-सबा स्त्री० [हिं० जुल्फ] दे॰ 'जुल्फ'। उ०-जुलफ काल जुरावरी ज्यों जण त्यों लेइ। फोटि जतन जो तूफरै। मैं कुलुफ फरी है मति मेरी छलि, एरी अलि कहा करों कल वोहूँ रहन न देइ -सुदर००, मा० २, पृ० ७०३ । ना परति हैं।-दीन० प्र०, पृ० १.। जुरी-सहा स्त्री० [सं० पूर्ति (ज्वर) ] धीमा ज्वर । हरारत । जुलफिकार-सज्ञा पुं० [अ० जुल्फकार ] मुसलमानो के चौथे खलीफा जुरी-वि० [हिं० जुटना] १ जुटी। जुटाई हुई। २. प्राप्त । अली की तलवार का नाम को। उ०-जो निबाहो नेह नाते न तुम जो न रोटी वाटकर जलफी --सज्ञा पुं० [हिं० जुल्फ ] दे॰ 'जुल्फ' । उ०-दाढ़ी भारत खामो जुरी।-चुमते०, पृ० ३५।। कोक, कोक जुलफोन संवारत ।-प्रेमघन मा० १, पृ. २३ । यौ०-जुरी फुरी% (१) अजित या प्राप्त सपूर्ण राशि । २ जुलबाज-वि० [हिं० जुल+फा० बाज ] घोखेवाज। छली। परिजन और कुल। धूर्त 1 चालाफ। जर्म-सा ० [40] अपराध । वह कार्य जिसके दह का विधान जलबाजी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० जुलबाज़ ] धोखेबाजी छल । धूर्तता । राजनियम के अनुसार हो । चालाफी। क्रि०प्र०करना।-होना। जुलबाना -वि० [अ० जुल्म+फा० पानह] अत्याचारी। यौ०-जुमं खफीफ = छोटा या सामान्य अपराध । जुमं शहीद = जुल्मी । कर । - उ0-जम का फौज वडा जुलबाना परि गभीर अपराध । भारी अपराध । मरोरे काला ।-से० दरिया, पृ० १५२ । जुर्माना--सज्ञा पुं० [फा० जुर्मानह 1 अर्थदड । वह रकम जो किसी जुलमा--सज्ञा पुं० [हिं० जुल्म] दे० 'जुल्म'। उ०—जुलम के हेत अपराध के दछ मे चुकानी पडे । हलकारे, मनी मगरूर मतवारे। पकड जम जूतियो मारे, बहुर बिलकुल नरक चारे ।--सत तुरसी०, पृ० २६ । जुरव-सा बी० [अ० जुरप्रत ] दे॰ 'जुरप्रत' [को०] ! जुलहा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० जुलाहा ] दे॰ 'जुलाहा' । उ०-चार वेद