पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१३८

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जुवादी जवाड़ी-संज्ञा पुं० [हिं० जुपारी] दे॰ 'जुमारी' । उ०-चोर, डाकू जुवाडी या दुए हो।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० १८६ । जुवाना-सज्ञा पुं० [सं० युवन्, हिं० जवान ] दे० 'अघान'। जुषानी-सह पुं० [हिं० जवानी ] दे० 'जवानी'। जुवान-सका पुं० [सं० युवन, हिं० जुवान] तरुण। जवान । उ०-लखि हिय हँसि कद कृपानिधान् । सरिस स्वान मषवान जुवान् ।-मानस, २१३०१ । जुवावो-सक्षा पुं० [हिं०] दे॰ 'जवाब'। उ0-ता पत्र का जुवाब श्री गुसाई जी ने वा वैष्णव को कृपा करिके यह लिख्यो ।-दो सो बावन०, या० १, पृ० २६१ । जुवारी-मा खी• [ हि० ० 'ज्वार' । उ०-लह लह जोति ज्वार की मरु वारि की होति । -मति ०, पृ०, ४४४। जुधारी-सता पुं० [हिं० जुमारी ] दे० जुपारी' । उ०-गृथ गंवाई ज्यो चलै जुवारी-हि. १० का०, पृ० २१४ । जुष-वि० [सं०] १. भोग करनेवाला । पाहनेवाला । २ जानेवाला । ग्रहण करनेवाला । पहुंचनेवाला । विशेष-समस्त पदों के पत में इसका प्रयोग मिलता है । जैसे, परलोफजुष, रनोजुष । जकक-संज्ञा पुं० [से०] भात का रसा या जूस [को०] । जुष्ट'- सचा पुं० [सं०] उच्छिष्ट । जूठन (को०] । जुष्ट-वि० १ तृप्त । तुष्ट । २. सेवित । भुक्त। ३ समन्वित । युक्त । ४. इष्ट । वाछित । ५ पूजित । ६. अनुकूल (को०] । जुध्य-वि० [सं०] पुजनीय । सेवनीय [को०] । जुष्य-सज्ञा पुं॰ सेवा [को०)। जुसाँदा--संज्ञा पुं० [हिं० जोशाँदा ] दे॰ 'जोधादा'। जुस्तजु-सवा स्त्री॰ [फा०] सजाश । लोज । उ०-गरचे माज तक तेरी जुस्तजू खासो बाम सब किया किए।-भारतेंदुष०, भा० २, पृ० १६६ । जुहुनाल-क्रि० म. [हिं० जूह (= यूथ) से नामिक पातु ] दे० "जुडना' । मिलना । 10-कहाँ कहूँ कान्ह जुहे तुम सग। -पृ० रा०,२॥ ३५७ । जहाना-क्रि० स० [सं० यूथ, प्रा. जूह+हि० पाना (प्रत्य॰)] १ एकत्र करना । २ सचित करना। जोड जोड़फर एफ जगह रखना। संयो० क्रि०-देना । लेना। जुहार-सद्या स्त्री० [सं० पवहार(युद्ध का रुकना या बद होना] राजपूतो या क्षत्रियों में प्रचलित एक प्रकार फा प्रणाम । अभिवादन । सलाम ! बदगी। जहारना-क्रि० स० [सं० अवहार(-पुकार या बुलावा)] १.किसी से कुछ सहायता मांगना । किसी का एहसान लेना । २ सलाम या वदगी करना । उ०-यदि कोई मिले भी तो बुलाने पर भी मत बोलना । जुहारे तो सिर भर हिला देना)-प्रयामा०, पू० ६६1 जुहावना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'जुहाना'। जुही-सचा श्री० [सं० यूपी ] एक छोटा झाउ या पौधा जो बहुत धना होता है और विसकी पत्तियाँ छोटी तथा ऊपर नीचे नुकीली होती हैं। दे० 'जूही' । उ०-खिली मिलि जूथन पूथ जुही। -घनानद, पृ० १४६ । विशेष-यह अपने सफेद सुगषित फूलो के लिये बगोचो मे लगाया जाता है। ये फूल बरसात मे लगते हैं। इनकी सुगध चमेली से मिलती जुलती बहुत हलकी और मीठी होती है। जुहुराण'-सा पुं० [सं० जुहुराण 1 चद्रमा [को०)। जुहूराण-वि० [सं०] वक्र वनानेवाला। वक्रतापूर्वक कार्य करने- वाला [को० जुहुवान-सम्रा पुं० [सं०] १ अग्नि । २ वृक्ष। ३ कठोर हृदय- वाला अक्ति । फूर व्यक्ति [को०] । जुह-सधा पुं० [सं०] १. पलाश की लकड़ी का बना हुमा एक मई- चदाफार यशपात्र जिससे घृत की पाहुति दी जाती हैं। २ पूर्व दिशा । ३ अग्नि की जिह्वा । अग्निशिखा (को॰) । जुहूरा-सचा पु० [अ० जुहूर ] प्रकट होना । जाहिर होना । प्रावि- भर्भाव । उत्पत्ति । उ०-यह माहूद ठीका जो पूरा हुप्रा । तो यमजाल का फिर जुहूरा हुमा।-कवीर म०, पृ. १३४ । जुहूराण-सधा पुं० [सं०] १ प्रध्वयु। २ अग्नि । ३ चद्रमा (को०)। जुहवाण-सा पु० [सं०] दे॰ 'जहूराण' को०) । जुहूवान्सा [ से जुहवत् ] पावक । भग्नि [को०] । जुहोता-सक्षा पुं० [सं० जावत् ] यज्ञ में आहुति देनेवाला। जें'-सच्चा स्त्री० [सं० यूका] एक छोटा स्वेदज कीड़ा जो दूसरे जीवों के शरीर से प्राथप से रहता है। विशेष-ये कोडे वालों में पड़ जाते हैं और काले रग के होते है। आगे की भोर इनके छह पैर होते हैं और इनका पिछठा भाग फई गडों में विभक्त होता है। इनके मुंह मे एक सुदी होती है जो नोक पर मुकी होती है। ये कोडे उसी सूडी को जानवरो के शरीर में चुभोकर उनके शरीर से रक्त दूसकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। चोसर भी इसी की जाति का कीड़ा है पर वह सफेद रंग का होता है पीर कपड़ी में पड़ता है। बहुत घंढे देती हैं। ये अरे बालो में चिपके रहते है और दो ही तीन दिन में पक जाते और छोटे छोटे कीड़े निकल तहते हैं। ये की बहुत सूक्ष्म होते हैं मोर थोडे ही दिनो में रक्त चूसकर बड़े हो जाते हैं। भिन्न भिन्न आदमियों के शरीर पर की जू भिन्न भिन्न प्राकृति पौर रंग की होती है। लोगो का कथन है कि कोढ़ियो के शरीर पर नहीं पड़ती। क्रि० प्र०-पड़ना। यौ०-जमुहाँ। मुहा-कानो पर जू रेंगना-चेत होना। स्थिति का ज्ञान होना। सतर्फवा होना। होश होना । कानों पर जून रेंगना- होश न होना । बात ध्यान मे न माना। जू की चाल बहुत घीमी चाल । बहुत सुस्त चाल!