पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१३९

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जूठा जर--भव्य. [ हिं० ] दे० 'ज्यू'! उ०-मारू सायर लहर जू हिवडे व काढत ।-ढोला., ०६१२ । जूंठ -०, सञ्ज्ञा पुं० [सं० जुष्ट, हिं० जूठ ] दे॰ 'झूठा'। जॅठन-सया बी० [हिं० जूठन ] दे॰ 'जूठन'। उ०-तब से रेडा सगरी श्री गुसाई जी की रहल करे पोर महाप्रसाद श्री गुसाईं जी की जूठन लेई ।-दो सौ वावन०, भा॰ २, पृ०६२। जूंठा-वि०, सहा पुं० [सं० जुष्ट, हिं० जूठा ] दे॰ 'जूठा'। जुड़िहा--सा पुं० [हिं० मु] वह बैच जो चैलो के मुर के भागे चलता है। लॅदन-सा पुं० [ देश०] [बी जुदनी ] वदर । ( मदारी)। नमहाँ-वि० [हिं० +मुह ] वह जो देखने में सीधा सादा पर वास्तव से बड़ा धूर्त हो। जु'-मव्य० [७० (श्री) युक्त ] १. एफ प्रादरसूचक शब्द जो ब्रज, तु देलखड, राजपूताना मादि मे बड़े लोगो के नाम के साथ लगाया जाता है। जी । जैसे, कन्हैया जू । २. सबोधन का शब्द । दे० 'बी'। जूर---अन्यः [ देश ] एफ निरर्थक मन्द जो वैली या भैसों को वडा करने के लिये वोला जाता है। जु--सहा सो सं०] १. सरस्वती। २ वायुमडल । वायु । ३ बैल या घोड़े के मस्तक पर का टीका । ज-वि० ० सं० 1 तेज । वेगवान [को०)। जूधा--सज्ञा पुं० [सं० युग ] १ रथ या गाड़ी के प्रागे हरस में। वांधी या जड़ी हुई वह लकड़ी जी वैलो के कधे पर रहती है। क्रि० प्र०-बांधना। १२ जुमाठा । ३ चक्की में लगी हुई वह लकड़ी जिसे पकड़कर वह फिराई जाती है। जूया-सश पुं० [सं० चूत, प्रा० जूमा ] वह खेल जिससे जीतने- वाले को हारनेवाले से कुछ धन मिलता है। किसी घटना को संभावना पर हार जीत का खेल । धूत । वि० दे० 'जुमा'। क्रि० प्र०--खेलना ।-जीतना ।-हारना ।- होना। जूभाखाना--सज्ञा पुं० [हिं० जूमा+झा० खानह, ] वह अड्डा, घर । या स्थान जहाँ लोग जुमा खेलते हैं। जूधाघर-सशा पुं० [हिं० जूपा+घर ] दे॰ 'जूमाखाना। जूधाचोर-सा . [हिं० जूमा + चोर ] दे॰ 'जुनाचोर' । नूक-सडा पुं० [ पुना ज्यूक्स ] तुला राशि ! जूगर--समापुं० [सं० युग] दे. 'युग' । उ०----तोहे जज्ञो परे होत उदासिन जूग पलटि न गेल-विद्यापति, पृ. ३२४ । जूजी-सधा सी० [ देश० ] कर्णपाली। झान की ललरी या लौर । उ०-कोई अपनी जूजी छेदकर कडा पहन लेता और कोई उसको काटकर फेंक देता है।-कवीर म०, पृ० ३६१ । जूजू-सधा पु० [भनु.] एक कल्पित भयकर जीव जिसका नाम लोग । लडको को हराने के लिये लेते हैं। हाऊ। जूस-ससा सो० [सं० युद्ध, प्रा. जुज्झ] युद्ध लड़ाई झगड़ा। उ०--(क) पाई नही जूझ हठ कीन्हे । जे पादा ते पापुहि धोन्है!--जायसी (गन्द०)। (ख) कोने परान टूटिहै सुन रे जीव पवूझ । कविर माह मैदान में करि इदिन सो जुझ । --कवीर ( शन्द०)। जूझनाछि--क्रि० स० [सं० युद्ध या हिं० जूझ ] १. लड़ना । २. लड़कर मर जाना। युद्ध मे प्राणत्याग करना। उ०-जूझे सकल सुमट करि करनी। गधु समेत परयो नुप धरनी।-- तुलसी (शब्द०)। जूट'.-स पुं० [सं०] १ जटा की गांठ । जुम । २. लट 1 जटा । ३ शिव की जटा । जूट-सज्ञा पुं० [.] १ पटसन । २ पटसन का बना कपडा । यो०-जूट मिल = वह मिल जहाँ पटसन के रेशो या धागो से बोरे, टाट प्रावि बनते हैं 1 चटकल । जूटना -क्रि० स० [हिं० जुटना ] मिलाना। जोहना। जुटाना। जूदना -क्रि० स० [हिं० जुटना] १. प्रवृत्त होना। लग जाना। २ एकत्र होना। उ.-जवना हार थई रण जूटे । फिरियो सेख नगारे फूटे।-- रा. ८०, पृ० २५६ । जटिg--सहा बी० [सं० जुड़ ] १ मेल । २. सधि । ३. जोडी। जूटी-वि० स्त्री० [सं० जुष्ट ] दे० 'जूठी'। उ०--चाट रहे हैं जूठी पत्तल कभी सष्ठक पर पड़े हुए हैं।--अपरा, पु०६६। जूठा-वि० [सं० जुष्ट ] १ दे० 'झूठन' 1२ दे० 'जूठा'। जूठन-सन्ना खी. [ हि० जूठ J१ वह खाने पीने की वस्तु जिसे किसी ने खाकर छोड़ दिया हो। वह भोजन जिसे किसी ने खाकर छोड दिया हो। वह भोजन जिसमे से कुछ प्रश किसी ने मुह लगाकर खाया हो। किसी के भागे का बचा हमा भोजन । उच्छिष्ट भोजन। कि०म०-खाना। २. वह पदार्थ जिसका व्यवहार किसी ने एक दो वार कर लिया। हो । भुक्त पदार्थ । ३० 'जूठा'। जूठा'-वि० [सं० जुष्ट, प्रा० जुट्ट[वि० बी० 'जठी। शि. जुठारना] १ (भोजन) जिसे किसी ने खाया हो। जिसमें किसो खाने के लिये मुंह लगाया हो। किसी के खाने से बचा हुमा। उच्छिष्ट । जैसे,-जूटा मन्न, जुठा भात, जूठी पत्तल । उ०-विनती राय प्रवीन की, सुनिए साह सुजान। जूठी पातरि भखत है वारी, वायस स्वान !-(शब्द०)। विशेष-हिंदू माचार के अनुसार जूठा भोजन खाना निपित है। २ जिसका स्पर्श मुंह पथवा किसी सूठे पदार्थ से हुमा हो। जैसे, जूठा हाथ, जूठा धरनन । मुहा०-जूठे हाथ से कुत्ता न मारना= बढ़त पधिक फफूस होना। ३. जिसे किसी ने व्यवहार करके दूसरे के व्यवहार के प्रयोग्य कर दिया हो। जिसे किसी ने भपवित्र कर दिया हो । जैसे, जूठी स्ली।