पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१४०

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जूठा १७८३ जूता जूठा-सच्चा पु० खाने पीने की वह वस्तु जिसे किसी ने खाकर छोड कमरे में घुसते ही सीतल जूडी छाया ने अपना असर किया। दिया हो। वह भोजन जिसमे से कुछ किसी ने मुह लगाकर -किन्नर०, पृ०७। खाया हो। किसी के आगे का वचा हा भोजन । जूठन। जूण- सच्चा स्त्री॰ [ स० योनि ] दे॰ 'योनि' । उच्छिष्ट भोजन । जूत--सज्ञा पुं० [हिं० जूता] १ जूता । २. बडा जूता। क्रि० प्र०-खाना ।-चाटना । जूत--वि० [सं०] १. प्राग्रह किया हुमा । २ खींचा हमा। ३ जूठियाना-क्रि० स० [हिं० जूठ+ इयाना प्रत्य०)] १. जूठा दिया हुमा। प्रदत्त । ४ गया हुमा । गत [को॰] । ___ कर देना। उ०-माखी काह के हाथ न पावे। गघ सुगध , ५ जूता--सञ्ज्ञा पुं० [सं० युक्त, प्रा० जुत्त ] चमडे पादि का बना हमा सबै जुठियावे ।--स० दरिया, पु०६। थेली के पाकार का वह ढांचा जिसे दोनो पैरो में लोग कोटे जूठी-वि०, सझा मी० [हिं० ] दे॰ 'जूठा' । मानि से बचने के लिये पहनते है । जोडा । पनही । पादत्राण । जूड-वि० [स० जड] [ कि० जुड़ाना, जुडवाना ] ठढा । शीतल । उपाह। उ.-मोझा डाइन उर से उर जहर जूड हो जाई । विषधर विशेष-ता दो या दो से अधिक चमडे के ट्रकहो को एक में मन मे कर पछित वा बहुरि निकट नहिं पाई। —कबीर सीकर नाया जाता है। वह भाग जो तलवे के नीचे रहता पा०, मा० २, पृ० २८ । है तला कहलाता है। कपर के भाग को उपल्ला कहते हैं। जूड़ी -सचा पुं० [हिं० जूड़ा ] दे० 'जूड़ा'। तले का पिछला भाग एडी या एड और अगला भाग नोक जूड़ा-सञ्ज्ञा पुं० [ देश ] पहाडी बिच्छू जो प्राकार में बड़ा और पा ठोकर कहलाता हैं। उपल्ले के वे अध जो पैर के दोनो काले भूरे रंग का होता है। पोर खडे उठे रहते हैं, दोवार कहलाते हैं। वह चमड़े की पट्टी जूड़ा-सझा पुं० [६० जूट अथवा मै० चूडा] १ सिर के बालो की जो एंडी के ऊपर दोनो दीवारो के जोड पर लगी रहती है, वह गांठ जिसे स्त्रियाँ अपने वालो को एक साथ लपेटकर लगोट कहलाती हैं। देशी जूते कई प्रकार के होते हैं । जैसे,-- अपने सिर के ऊपर यषिती है। उ.- काको मन बांधत न पजावी, दिल्लीवाल, सलीमशाही, गुरगावी, घेतला, चट्टी यह जूडा बाधनहार । --श्यामा०, पृ० २६ } इत्यादि । अप्रेजी जूतो के भी कई भेद होते हैं। जैसे, बूट, विशेष-जटाधारी साधु लोग भी जिन्हें अपने वालो की सजावट स्लिपर, पप इत्यादि। का विशेष ध्यान नहीं रहता अपने सिर पर इस प्रकार बालो महाभारत के अनुशासन पर्व में छाते और जूते के प्राविष्कार के को लपेटकर गांठ बनाते हैं। संवध मे एक उपाश्यान है। युधिष्ठिर ने भीम से पूछा कि क्रि० प्र०वधिना ।- सोलना। श्राद्ध आदि को मे छाता मोर जूता दान करने का जो विधान है उसे किसने निकाला । भीष्म जी ने कहा कि एक बार २. चोटी। कलेंगी। जैसे, कबूतर या बुलबुल फा पूडा । ३ पगही का पिछला भाग । ४ मूज प्रादि का पूला । गुजारी। जमदग्नि ऋषि क्रीडावश धनुष पर बाण चढ़ा चढ़ाकर छोडते ५ पानी के घडे के नीचे रखने की घास प्रादि की लपेटकर थे और उनकी पत्नी रेणुका फेके हुए बाणो को ला लाकर उन्हे देती थी। धीरे धीरे दोपहर हो गई और कडीप पड़ने बनाई हुई गड़री। लगी। ऋषि उसी प्रकार वाण छोड़ते गए। पतिव्रता रेणुका जूदा-सझा पुं० [हिं० जूड ] [ सी० चूडी ] बच्चो का एक रोग जब वाण लाने गई तब धूप से उसका सिर चकराने लगा जिसमें सरदी के कारण सांस जल्दी जल्दी चलने लगती है और पैर जलने लगे। वह शिथिल होकर कुछ देर तक एक मौर साँस लेते ससय कोख मे गड्ढा पड़ जाता है। कभी कभी वृक्ष को छाया के नीचे बैठ गई। इसके उपरात वह वाणो फो पेट में पीडा भी होती है और बच्चा सुस्त पड़ा रहता है। एकत्र करके ऋपि के पास लाई। ऋषि कुद्ध होकर देर होने नसरी–सानो० [हिं० जूड ] एक प्रकार का ज्वर जिसमे ज्वर का कारण बार बार पूछने लगे | रेणुका ने सब व्यवस्था ठीक माने के पहले रोगी को जाग मालूम होने लगता है और ठीक कह सुनाई। तब तो जमदग्नि जी सूर्य पर मत्यत उसका शरीर घटो कांपा करता है । उ०—गो काहू की सुनहि कुद्ध हुए मौर धनुष पर बाण चढ़ाकर सूर्य को मार गिराने चडाई । स्वास लेहिं जनु जूड़ो पाई।-तुलसी (शब्द०)। पर तैयार हुए। इसपर सूर्य ब्राह्मण के वेश मे ऋषि के पास विशेष-यह ज्वर कई प्रकार का होता है। कोई नित्य प्राता पाए और कहने लगे सूर्य ने प्रापका क्या बिगाड़ा है जो प्राप है, कोई दूसरे दिन, कोई तीसरे दिन और कोई चौथे दिन उन्हें मार गिराने को प्रस्तुत हुए हैं। सूर्य से लोक का कितना माता है। नित्य के इस प्रकार के ज्वर को जूडी, दूसरे दिन उपकार होता है ? जब इसपर भी ऋषि का क्रोध पाउन मानेवाले को अंठरा, तीसरे दिन प्रानेवाले को तिजरा और हुमा तो ब्राह्मण वेशधारी सूर्य ने कहा कि सूर्य तो सदा वेग के चौथे दिनवाले को पौथिया कहते हैं। यह रोग प्राय मलेरिया साथ चलते रहते हैं। प्राप का लक्ष्य ठीक कैसे बैठेगा ? ऋषि से उत्पन्न होता है। ने कहा कि जब मध्यान्ह में कुछ क्षण विधाम के लिये वे ठहर क्रि० प्र०-माना। जाते हैं तब मैं मारूंगा। इसपर सूर्य ऋषि की शरण में जूड़ी-सज्ञा ली [हिं॰ जुड़ना ] जुट्टी। माए । तब ऋषि ने कहा कि 'अच्छा? मव कोई ऐसा उपाय जुड़ी-वि० [हिं० जूड़ ] ठडी। शीतल । उ०--किंतु बंगले के बतलामो जिसमे हमारी पत्नी को धूप का कष्ट न हो।' इस