पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१४२

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जुना'---सञ्ज्ञा पुं० [सं० जूर्ण(%3Dएक तृण)]१ घास या फूस को बटकर बनाई हुई रस्सी जो बोझ मादि बांधने के काम में आती है। २. घास फूस का लच्छा या पूला जिससे चरतन मांजते या मलते हैं। उसकन । उबसन । उ-रग ज्यादा गोरा तो नहीं, सांवले से कुछ निखरा हुप्रा है। हाथ में जूना है पौर घरतन मोजते मोजते वह खीझ उठी।-बहकते०, पृ० ६३। जना-11 [सजीर्ण] [वि. श्री० जूनी] दे॰ 'जीएं। उ.- खूना गीर दोहा चारणा भी के सुनाया |-शिखर., जूतीकारी में दवाना = तियो उतारकर भागना जिसमें पैर की पाहट न सुनाई दे। चुपचाप भागना । धीरे से चलता बनना। खिसकना। जूतियों मारला = (१) जूतियों से मारना। (२) फडी बातें कहना । अपमानित करना। तिरस्कृत करना। (३) का उत्तर देना। मुह तोड़ जवाब देना। जूतियां लगना-जूतियों से मारना । जूतियां सीधी करना = अत्यत नीच सेवा करना । दासत्व करना । जूतियो का सदफापरणों का प्रॉप (विनम्र कृतज्ञता ज्ञापन)। जूतीकारी-सचा श्री० [हिं० जूती+फार] जूतों की मार। क्रि० प्र०—करना । होना। जूतीखोर-वि० [हिं० जूती+फा० सोर] १. जो जूतो की मार खाया करे। २ जो निल्संज्जता से मार मौर गाला की परवाह न करे । निलंज्ज । बेहया। जती पार्श-समाबी० [हिं० जूती+छुपाना] १ विवाह में एक एस्म। विशेष-स्त्रियाँ कोहबर घर चलते समय घर का जूता छिपा देतीमोर तबतफ नहीं देती हैं बघतफ वह पूते के लिये कुछ नेग न दे। यधु काम प्राय वे स्त्रिया करती हजो माते में वधू की बहन होती है। २ वह नेग को यर खियों को जूती छुपाई में घेता है। जुती पैजार-संशा सी० [हिं० जूसी+फा० पैजार] १ जूतो की मार पीट । धौल धप्पष्ठ । २. लसाई दगा। कलह । झगड़ा । कि० प्र-करमा। जूथ -स ० [सं० यूप] दे० 'यूय' । उ०-भयो पंक पति रग को तामै गज को जय फैसोरी।- भारतेंदु प्र०, भा० १, पृ० ५०४ । यौल-जूप जूध = मु का मुह। समूहबद्ध । उ०-जूध जूप मिलि पली सुमासिमि । निज छवि निदरहिं मदन विलासिनी। -मानस, १३३४५। रुपमा- खी० [सं० यूथिका] दे० 'यूपिका'। भूथिका-सबा सी इस यूयिका दे० 'यूधिका'। जूद'-वि• प०] शीघ्र । स्वरित । तुरंस । जल्दी यौ०-जूदफहम % कोई पात सुरत सममनेवाला । तीवबुद्धि । जूद'-वि० [फा०] वेष । त [को०] । जन -सा पुं० [सं० चवन् = सूर्य प्रथवा देश०] समय । काल। बेना। जन ---सए पुं० [सं० जूस ( = पुराना)]पुराना । 3.-फा छति लाभ न धनु तोरे । देवा राम नये के भोरे -तुलसी (शब्द॰) । जून-सा पुं० [सं० (पूर्ण= एक तृण)] तृण । घास । तिनका। उन'-सका पु० [म.] अंगरेजी वर्ष का छठा महीना ओ बेठ के लगभग पड़ता है। जून-सञ्ज्ञा पुं० [सं० यवन ?] एक जाति जो सिंधु मोर सतलज के बीच के प्रदेशो मे रहती है और गाय बैल, ऊँट मादि पालती है। जनि-सका ० [सं० योनि] दे० 'योनि'। उ०-सतगुरु ते जोगी जोग पाया। पस्थिर जोगी फिरि जूनि न पाया।--प्राण, पु०१११। जूनियर-वि० [म.] काल क्रम से पिछला । जो पीछे का हो । छोटा। यौ०-जूनियर हाई स्कूल वह हाई स्कूल जिसमें कक्षा छह से पाठ तक पढ़ाई होती है। पूर्व माध्यमिक विद्यालय । जूनी-सच्चा स्त्री० [हिं० जूना] दे० 'जूना'। उ०-जूनी ले कनाता तेष सींची पागि जाली!-शिखर० पू०५२ । नी -सहा श्री० [स. योनि] दे० 'योनि'। उ०-फिर फिर जूनी सकट पावै। गर्भवास में बहु दुख पार्व-सहजी, पृ० ८। जूप-सज्ञा पुं० [सं० धूत, प्रा० जूषा पा नव] १ जूमा । द्यूत। उ०- जैसे, प्रघ रूप, बिनु गांठ धन जूप की ज्यो हीन गुण पाश है न कूप जल पान की। हनुमान (शब्द॰) ।२ विवाह में एक रीति जिसमे वर और बयू परस्पर जूमा खेलते हैं। पासा । उ.--कर कप फगन नहिं छूट खेलत रूप जुगल जुवतिन में हारे रघुपति जीति जनक की।-सूर (शब्द०)। जप-सा ० [सं० यूप] दे० 'यूप' । जूम-सग पुं० [ देश० ] थूक । पीक । उ०-सुरती का जूम पिच से जमीन पर गिरा।-नई०, पृ. ३० । जूमना -क्रि० प्र० [अ० जमा ] इकट्ठा होना । जुटना । एकत्र होना । उ०-( क ) लागो हुतो हाट एक मदन धनी को जहाँ गोपिन को वृंद रह्यो जूमि पहुँषाई में। -देव ( शब्द०)। (स) गिरिधरवास भूमि जूमि मासु यदि, बाज लो दराज लेहिं परन पवाय -गोपाल (पाव्द०)। जूमना-क्रि० स० [हिं० झूमना ] दे॰ 'झूमना' । जूर -सा पुं० [हिं० जुरना ] जोड़ । सचय । उ०-वान मावि सब परवक शुरू। धान लाभ होइ बाँचे मूह -जायसी (शब्द)। जूरना'--क्रि० स० हि. जोड़ना ] जोड़ना। उ०--अवध मे सतन रह दुरि । बधु-सखा गुरु कहत राम को नाते बहुतेक जूरि ।-देव स्वामी (शब्द०)। जूरना-कि०म० [हिं० जोडना ] इकट्ठा होना । जुटना। जूरर-सी पुं० [म.] पच । न्यायसभ्य । जूरी का सदस्य । जूरा-सज्ञा पुं॰ [हि. जुड़ा ] दे० 'जुड़ा'।