पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१४६

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जेर' जेतिक १४१२ जेतिकo+--कि० वि० [हिं० जितना] जितना जिस फदर जिस महा-जेब कतरना=जेच काटकर रुपए पैसे का अपहरण । मात्रा मे । जिस परिमाए में । जेब खाली होना = पास में पैमा न होना । जेन भरी होना- ' जेतिकर-वि० दे. 'जितना'। उ०--जेतिक भोजन बजते श्रायो। पास में काफी रुपया होना । गिरि रूपी हरि सिगरी खायो। तद० ग्र०, पृ० ३०७। जेव--सशास्त्री० [फा० जेब] शोभा। सौंदर्य । फवन । जेती -वि० ख० [हिं० जेता] जितनी। उ०--जेती लहर समुद्र मुहा०-जेव तन बदलना = पहनना । धारण करना । जेब की तैती मन की दौर। सहजै हीरा नोपजै जो मन भावे देना = पोभित होना । ठौर |--कबीर सा०, पु. ५५।। यौ०-जेवदाव = तगंदार । प्रच्छा । सुदर । जेतो'@-कि० वि० [हिं०] जितना । जिस कदर । उ०-धीरज ज्ञान जेवकट--ससा पु० [फा० जेव+हिं• काटना] वह मनुष्य जो चोरी सथान सवै, गॅग जेतोई सारत तेतोई ढाहै ।-गग०, पृ० ७७ । से दूसरो के जेब से रुपया पैसा लेने के यि जेब काटता हो। जेतो'--वि० दे० 'जितना'। जेवकतरा । गिरहफट ! जेतौ---क्रि० वि० [हिं०] दे० 'जेतो'। जेबकतरा-पता पुं० [हिं० जेब कतरना) दे० 'जय कट'। जेतौ वि० दे० 'जितना'। उ०--पर वह रूप अनुपम जेती। जेवखर्च- सपा पुं० [फा० जेबखर्च] वह धन जो किसी को निज के नैननि गयो गयो नहीं तेती । -नद० ग्र०, पृ० १२८ । वर्ष के लिये मिलता हो और जिसका हिसार लेने का किसी जेन केन-क्रि० वि० [सं० येन + केन] जैसे तैसे। उ०-जेन फेन को अधिकार न हो। भोजन, वस्त्र प्रादि व्यय से भिन्न, परकार होइ अति कृष्ण मगन मन । अनाकर्ण चैतन्य कछु न निज फा मोर ऊपरी खच। चितवै साधन तन ।-नद० प्र०, पु०४६ । जेबखास-या पुं० [फा० जेव+.सास राज्य कोष से राजा जेनरल --वि० [म.] १ आम । सामान्य । या बादशाह के निजी खर्च के लिये दिया जानवाला धन । जेवघड़ी--सरा स्त्री० [फा. जेव+हिं० घडीवह छोटी घडी जो यौ०-जेनरल इलेक्शन = माम चुनाव । साधारण निर्वाचन । जे में रखी जाती है। जैवी घड़ी । वाच।। नेनरल मचेंट = सामान्य उपयोग के सामान का विक्रेता। २ वडा । प्रधान । जेवदार--वि० [फा० जेवदार सुदर । शोभायुक्त । यो०-जेनरल सेक्रेटरी = सस्था, सस्थान या विभाग का प्रधान जेवरा-सा पु० [अ० जेवरा] जबरा नाम का जगली जानवर । ६० 'जबरा। __ मत्री। जेनरल स्टाफ % सेनापति का सहकारी मडल। जेवा-वि० [फा० जेबा] सुदर । मनोरम । शोभनीय । लनित [को०] । परल-सझा पु० [अं॰] फौजी अफसर का एक पद जो मेनापति के मुहा०-जेषा देना=पोमा देना। सुदर लगना। अधीन होता है [को०)। जेबी-वि० [फा०] १ जेब मे रखने योग्य। जो जेब में रसा जा ना--क्रि० स० [सं० जेमन] दे॰ जोमना' । सके । जेरो, जेबी घही। न्य- वि० [१०] १ ममिजात । फुलीन। २ असली सच्च।। २ बहुत छोटा। ३ विजेता (को०। जेबोजीनत-सफा सी० [फा० पोव+प्र. जीनत] बनाव सिंगार । न्यावसु-सक्षा पु० [सं०] १ इद्र । २ अग्नि । वेश भूपा । ठाट वाट। शृगार । सजावट [को०)। जेपाल-सज्ञा पुं० [सं०] एक भौषधोपयोगी पौषा । जैपान । जमाल- जमाल- जेमन-सा पुं० [स०] १. भोजन करना। जीमना। २ माहार । गोटा [को०] 1 खाद्य (को०)। जेप्लिन-सञ्ज्ञा पुं० [जर्मन ] एक विशेष प्रकार का बहुत बड़ा हवाई जेय-वि० सं०] जोतने योग्य । जो जोता जा सके। जहाज! जेर'--मचा स्त्री० [दरा०] भोवल । वह झिल्ली जिसमें गर्भगत बालक विशेष—इसका माविष्कार जर्मनी के काउट जेप्लिन साहब ने रहता मोर पुष्ट होता है। किया था । इसका ऊपरी भाग सिगार के प्राकार का लबोतरा जेर-प्रव्य० [फा० शेर नीचे । तले [को०] । होता है जिसके खानो मे गैस से भरी हुई बहुत बड़ी बड़ी थैलियाँ होती है। बडे लबोतरे चौखटे मे नीचे की ओर एक या दो जेर-वि० [फा० शेर] [देश॰ जेरवरी] १. परास्त । पराजित । २. सदूक लटकते हुए लगे रहते हैं जिनमे मादमी बैठते हैं और जो बहुत दिक किया जाय । जो बहुत तग किया जाय । तोपें रखी जाती हैं। सब प्रकार के माफाशयानों से इसका क्रि०प्र०-करना = हराना । पछाडना । भाकार बहुत बड़ा होता है ।। जेर-सद्या स्त्री० [ फा र ] प्ररबी और फारसी के प्रक्षरो के जेब' -समा पु०म० पहनने के कपड़ो (फोट, कुरते, कमीज, अगे नीचे लगनेवाला एक सकेत चिह्न जो इ, ई, भौर ए की आदि ) मे बगल या सामने की ओर लगी वह छोटी थैली या मात्रामों का सूचक होता है। चकती जिसमें रूमाल, कागज भादि चीजे रखते हैं। खीसा। जर'-- सगा पुं० [देश॰] एक पेड। खरीता। पाकेट । विशेष-यह सु दरबन में अधिकता से होता है। इसके हीर की क्रि० प्र०-कतरना ।-कारना। लकडी लाली लिए सफेद होती है पोर मजबूत होने के कारण यौ०-जेवट । जेवखर्च। जेवघड़ी। इसकी लकड़ी से मेज, कुरती, मालमारी इत्यादि बनती हैं। रता