पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१४८

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जेहद जिसकी सीध मे निशान रहता है । चिल्ला | उ०-तिय कत के यहां निवास करने लगे। थोडे ही दिनों में जैगीषष्य यो कमनैती पढ़ी बिन जेह मोह 'कमान । चित चल बेधे चुकति साधन द्वारा परम सिद्ध हो गए और मसित देवल सिबिलाभ नहिं, बक बिलोकनि बान-बिहारी (पाब्द०) २. दीवार न कर सके । एक दिन जैगीषन्य कहीं से घुमते फिरते भिक्षक में नीचे की ओर दो तीन हाथ की ऊंचाई तक पलस्तर या । के रूप में देवल के पास आकर बैठे। देवल यथाविषि उनकी मिट्टी मादि का वह लेप जो कुछ मधिक मोटा और उसके तल । पूजा करने लगे। जब बहुन दिन तक पूजा करते हो गए और से अधिक उभरा हुमा होता है। उ०—गदा, पदम मी चक्र । जैगीषव्य पटल भाव से बैठे रहे. कुछ बोलेवाले नही तब देवल सख पसि, पचतत्व सूचक समुझन । भरु, इन पाचन की गति कबक भाकाश पय से स्नान करने चले गए। समुद्र के किनारे हरि के बस यही जगत की जेह । भस्म गंग' लोचन महि उन्होंने जाकर देखा तो जैगीषव्य को स्नान करवे पायापाश्चर्य उमरू पचतत्व भरु भौरू, हर के बस पांचढ़ यह पंवरू जिनसे से चकित होकर देवल जल्दी से पाश्रम को लौट गए। वहां पिंड उरेह।-देवस्वामी (शब्द०)। .५" उन्होंने जैगीषव्य को उसी प्रकार पटल भाव से बैठ पाया । क्रि० प्र०-उतारना !-निकालना। "- - इस र देवल माकाश मार्ग में जाकर उनकी गति का निरीक्षण जेहड़- सद्या स्त्री० [हिं० जेट+घट ] एक पर एक रखे हुए पानी से करने लगे। उन्होंने देखा कि प्राकाशचारी भनेक सिद्ध जैगीषष्य ' की सेवा कर रहे हैं, फिर देखा कि वे"नाना मार्गों में स्वेच्छा भरे हुए बहुत से घड़े। पूर्वक भ्रमण कर रहे हैं। ब्रह्मलोक, गोलोक, पतिपत लोक जेहन-सका पुं० [प० जेह्न ] [वि. जहीन वृद्धि । क्ति । इत्यादि तर्फ तो देवल पीछे गए पर इसके मागे वे न देख सकें जेहबदार-वि० [अ० जेह्न + फा० दार (प्रत्य॰)] धारणा शक्ति- कि जंगीपव्य कहाँ गए । सिद्धों से पूछने पर मालूम हुआ कि वे वाला। बुद्धिमान [को०। - सारस्वत ब्रह्मलोक में गए हैं जहाँ कोई नहीं जा सकता। इस _ । परी देवल'घर'लोट पाएँ ।' वही जिगीषव्य को ज्यों का त्यों जेहरा-शा स्त्री॰ [ ? ] पैर मे पहनने का घुघरूदार पाजेब नाम । बैठे देख उसके प्राघवयं का ठिकाना न रहा। इसके बाद के का जेवर। जैगीषव्य के शिष्य हुए, मौर उनसे योगशाल की शिक्षा ग्रहण जेहरिसशा श्री० [हिं० जेहर ] दे० 'जहर'। उ०- (क) पग ' करके सिद्ध हुए। : 1 2 . जेहरि विछियन की झमकनि चलत परस्पर बांजत ।-सूर जैन-सा पुं० [हिं०] दे० 'जयचंद , 1-22 (शब्द०)। (स) पग जेहरि जजीरनि जकन्यो यह उपमा जैजैकार-सज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'जयजयकार! 12 th ~~'TAK कछु पावै ।-सुर (शब्द॰) । (ग) भमिल सुमिल सीढ़ी मदन । सदन की कि जगमगै पग युग जेहरि बराय की। केशव जैजैवतो-गाला स्त्री॰ [सं० जयजयवती] भैरव रोग की एक रागिनी (शब्द०)। जो सवेरे गाई जाती है। 51Cr in 15 जेहल -सज्ञा स्त्री० [अ० जल ] [निजेहली ] हाजिद! : जैढक-पञ्चा'[सजय + ढक्का] 'एक प्रकार का बड़ा ढोल । s is जेहल “विजय ढोल। जंगों ढोनी -सच्चा पुं० [अ० जेल ] दे० 'जेल' ', :- जेहलखाना-सज्ञा पुं॰ [हिजेलखाना ] ६० 'जेलखाना' या 'जेन। जैतु'+-सहा स्त्री० [सं० जैत्र] विजय । जीत । फतह ।' जेहली-वि० [म. जेहल] जो समझाने से भी किसी बात की भलाई जैत--सच्चा पुं० [१०] जैतून वृदा । २ जैतून की लकड़ी। । दुराई न समझे मौर अपनी हठ न छोटे । हठी। जिद्दी। जैत–ससा पुं० [मजयन्ती] अगस्त की तरह का,एक पेड।। जेहिल -सर्व० [सं० यस्प, प्रा. जस्स, जिस, जेहि जिसको विशेष-इसमे पीले फूल और लबो फलियाँ लगती हैं। इन उ.-जेहि सुमिरत सिधि होय गण-नायक करिवर वदन । फलियों की तरकारी होती है। पत्तियो और,बीज दवा के —तुलसी (शब्द०)। । " काम मे आते हैं। जेह्र-सबा पुं० [७० जेहन ] बुद्धि । धारणा शक्ति। ... जैतपत्र -सहा पुं० [स० जयति+पं] जयपत्र जीत की सनद । जेता-संशा पुं० [सं० जयन्ती ] जैत का पेड। .

जैतवार -वि० [हिं० जैत+वारों (प्रत्य -जीतनेवाला।

जै -सहा स्त्री० [हि.] दे॰ 'जय'! - - विजयी ।: विजेता सत्ता को सपूत राक सगर को सिंह -वि० [सं० यावत, प्रा० जाव ] जिवने । जिस सख्या मे सोहे, जेतवार जगत करेरी किरवान, की। -मति. १०, पु०:३७७.।।-7.7737 -OF- जैकरी-प्रया पु० [हि°°६० 'जयकरा' ।'-'27 जैतश्री-सक्षा स्त्री [40 जयतिश्री] एक रागिनी जैकारसयात्री. [ हि..] दे० 'जयकार - जैती-सद्या स्त्री० [सं० जयन्तिका एक प्रकार की, घास जो रबी की जैकारा सधा पुं० [हिं० ] दे० 'जयकार'। Fir फसल मे खेतो मेमाप घेसामतगती है । -1 जैगीषव्य-सद्या पुं० [सं०] योगशास्त्र के वेत्ता एक मुनि का नामा) जैतून-सज्ञा पुं॰ [१०] एक सदाबहार पेठ ।।, " विशेष-महाभारत में इनकी कथा विस्तार से लिखी है। प्रसित । विशेष-यह-परब शामामादिसे लेकरे युरोप के दक्षिणी भागों देवस नामक एक ऋषि मादित्य तीर्य में निवास करते थे । एक तक सर्वत्र होता है। इसकी ऊंचाई अधिक से अधिक ४० फुट दिन उनके यहां जंगीषव्य नामक एक ऋषि माए और उन्ही तक होती है। इसका माकारा ऊपर । गोलाई-लिए होता है।