पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१५१

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जो जैसे-कि० वि० [हिं० जैसा ] जिस प्रकार से । जिस ढंग से। जिस मादि हो जाने पर वह का दूषित रक्त निकाल देने के लिये तरीके पर। लोग इसे चिपका देते हैं पौर पर बह खूब खून पी लेती है मुहा०-पैसे जैसे -जिस कम से। ज्यो ज्यो। उ०-जैसे जैसे तब उसे उगलियो ये कसकर दुह सेते हैं जिसमें सारा सून रोग कम होता जायगा वैसे ही वैसे शरीर में शक्ति उसकी गुदा के मार्ग से निकल जाता है। भारत में बहुत भी पाता जायगी। जैसे तैसे किसी प्रकार। बहुत यत्न प्राचीन काल से इस कार्य के लिये इसका उपयोग होता पाया फरके। डी कठिनता से। 10-लेर बैठे से उनको यहाँ है। कमी कभी पशुपों के जल पीने के समय जल के साथ ले माना। जैसे बने, जैसे हो- जिस प्रकार संभव हो। जॉक मी उनके पेट में चली जाती है। जिम तरह हो सके। उ०-जैसे बने वैसे कल शाम तक पर्या-~-रक्तपा। जलुका | जलोरगी। तीक्षणा । रमनी । वेपनी। चले पायो। जैसे कवा घर रहे वैसे रहे विदेश-जिसके जलसपिणी । जनमूची। जलाटनी। जलाका । पटालुका। रहने या न रहने के काम में कोई भतर न पड़े। निरर्थक वेगोवेधनी । जलाहिमका । व्यक्ति । जैसे मिया काठ, वैसी सन की दाढ़ी-मनुपयुक्त क्रि० प्र०—लगाना । लपवाना । व्यक्ति के लिये मनुपयुक्त वस्तु ही उपयुक्त होती है। २. वह मनुष्य जो अपना काम निकालने के लिये वेतरह पीछे पर जैसो'-.वि [हिं०] दे सा ' । उ-मर फैसे पयत सुख मांगे। जाम । वह जो बिना अपना काम निकाले पिठन छोडे। ३. बैसोद वोयै सोई सुनिए कमन भोग प्रभागे। -सूर०, मेवार का बनाया हुमा एक प्रकार का छनना जिससे पीनी 11 साफ की जाती है। जैसो'--क्रि.वि. हि. . 'जैसा'। जॉकी-सा श्री [हिं० जोंक ] १ वह जलन षो पशुपयों के पे४ मे पानी, साय जोंक उतर जाने के कारण होती है। २. मोहे जोग-सपा पुं० [सं० जोङ्ग] मगर । गुरु । फा एक प्रकार का काटा जो दो तस्तों को मजयूती के साय जोगक-सहा पुं० [सं० जोङ्गक 1 दे. 'योग'। जोड़ने के काम में माता है। ३ एक प्रकार का लाल रग का जो गट---सपा पुं० [सं० ओङ्गट] दे० 'दोहर' (को०) । कीड़ा जो पानी में होता है। ४ दे० 'जोक। जो ताला-सशा श्री[सं० जोन्ताला ] देवघान्य । पुनेरा। जाँ जाँ-कि० वि० [हिं०] दे० 'ज्यों ज्यों'। औ-कि विहि . ज्यों ] ज्यों। जैसे । जिस प्रकार से। जिस ऑat-f.. वि० [हिं० दे० 'ज्यों स्यों' । तरह से । जिस माति । महा-----जों तो करके-बढ़ी कठिनाई से। उ०-गरज बों में विशेष-दे० 'ज्यों'। फरके दिन तो काटा ।-खल्लू (पान्द०)। ऑक- श्री[से जलौकस् ] १ पानी में रहनेवाला एक प्रसिद्ध जॉरराज-सज्ञा पुं० [हिं०] 'जोधरी' । कीड़ा जो विलकुल पीले पाकार का होता है और जीवों के जॉदरो-सका. [हिं०] दे० 'जोधरी' । शरीर में चिपककर उनका रह चूसता है। जॉपरा-सा पुं० [सं० जणं] १. को कानों की ज्वार । २ बोघरी विशेप-वशी पोटी घड़ी अनेक जातिया है जिनमें से पधिकांश का सूखा गठन किरपी सिकठा। नाललगे और छोटी नदियों प्रापि में, कृछ सर घासों में और जॉधरी-बा श्री. संजवं] । छोटी ज्वार। छोटे दानो को बहम पोड़ी जातियां समुद्र में होती है। साधारण वॉक हेद वार चित)। दो इंच लंबी होती है पर किमो पिसी जाति को समुद्री जोधया--सका खौ• [सं० पोत्स्ना, लिवोन्हैया] पौरती। पद्रिका । जोक ढार्ग फुट तक संधी होती है। साधारणत' पौफ का शरीर चिपठा पौर झालापन मिले हरे रंग का या जो-सर्व० [सं० य ] पक सवधवाचक सर्वनाम जिसके द्वारा कही भूग होता है जिनपर या तो धारियां पा किया हुई सज्ञा पा सर्वनाम में वर्णन में कुछ और वर्णर को होती है। घाँखें इसे बहुत सी होती है, पर काटने पौर बह योजना की जाती है। जैसे--(क) जो घोगा पापन भेषा पा चूग्ने की पक्ति केवल प्रागे, मुख की पोर ही होती है। वह मर गया। (ख) जो लोग कल पहा पाप ये, पप। माफार के विचार साधारण बौफ तीन प्रकार की मानी विशेष-पुरानी हिंदी में इसके साथ 'सो' का व्यवहार होता था। जाती कागजी, मझोली पोर सिया। सुथ त ने पारह पर भी मोग प्रायः इसके साप 'सो' बोलते पर पयसका प्रकार की जो गिमाईहै-कुष्पा, प्रलपर्दा, इंद्रायुधा, व्यवहार कम होता पा रहा है। जैसे,-बो वोमा सो गोचवना, फोरा और सामुद्रिक पे एस प्रकार को पोंगों काटेगा। पाजल पहुधा इसके साथ 'वह' या 'वे' का प्रयोग जन्नरीमी पौर फपिमा, पिंगला, शंकुमुखी, मूपिफा, पुरीका होता है। मुमी मोर मावरिका ये बहकार को जो बिना जहर से जो -मय० [सं० पद्] १ यदि मगर । 10-(क) को करनी पतलाई गई है। जोंक शरीर के किसी स्थान में चिपककर ममुझे प्रभु मोरी। नदि निस्तार कल्पात कोरी।-तुसकी पून पूसने लगती है मोर पेट में खून भर जाने के कारण सूर (पाम्ब०)। (ग) जो बाम छु अनुचित काही। गुरु, पितु फूल उठती है। शरीर के फिसी मग में फोसफुसी या गिलटी मातु मोद मन मरहीं।---तुमसी (सन्द०)। ४-१८