पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१५२

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बोअंडा जोगनिया विशेष-इस प्रर्य में इसके साथ 'तो' का व्यवहार होता है। जोखा - सखा श्री० [सं० योषा] स्त्री । लुगाई। जैसे,—इसमें पानी देना हो तो भभी दे दो। जोखाई।-सख श्री० [हिं० जोखना] १ जोखने का काम | तोलाई। २. यद्यपि। अगर। (क्व०) । उ०--पौरि पौरि कोतवार २ जोखने या तौलने का भाव । ३. तौलने की मजदुरी। को बैठा । पेमा लुदुध सुरग होइ पैठा ।-जायसी (शब्द०)। . १० जोखि -सा श्री० [हिं० जोखिम] दे० 'जोखिम'। उ०-तुम जोडा -सया पु०[सं० युवन् जवान । युवा । उ०–जोमहा धावहि सुखिया अपने घर राजा । जोखिएत सहहु केहि काजा।- तुरम एचापहि बोलहि गाडिम वोला।--फीतिपृ० ६४ । जायसी (शब्द०)। जोश ..-सवा १० [सं० योजन, प्रा. जोमण] दे० 'योजन'। जोखिम--सजा श्री० [१ भारी भनिए या विपत्ति की प्राशका 1-सिंधु पर सत जोमणे, खिवियो बीजलियाह । सुरहाउ अथवा संभावना । झोकी । जैसे,—इस काम में बहुत लोद्र महक्कियो, भीनी ठोवडियोह।--ढोला, दू. १९०। जोखिम है। जोअना -क्रि० स० [हिं०] दे० 'जोवना'। मुहा०-जोखिम उठाना या सहना ऐसा काम करना जिसमे जोड -सण बी० [म० जाया] जोरू। पत्नी । भार्या । स्त्री। भारी पनिट की आशका हो। जोखिम में पडना-जोखिम उ.-विरघ पफ विभाग हू को पतित जो पति होइ। जऊ उठाना । जान जोखिम होना-प्राए जाने का भय होना। मुरस होइ रोगी तज नाही जोइ।-सूर (शब्द॰) । २ वह पदार्थ जिसके कारण भारी विपत्ति माने की संभावना जोइ-सर्व० [हिं०] दे० 'जो'। हो, जैसे, रुपया, पैसा, जेवर प्रादि । जैसे,—तुम्हारी यह यो०-जो सोह-जो सो। जो जी मे पाए। उ०-जसोदा जोखिम हम नही रख सकते । हरि पासनै अलावै। हवरावै दुलराइ मल्हावै जोइ सोइ कछु जोखुमा-सष्ठा पुं० [हिं० जोखना+ सभा (प्रत्य॰)] तौलनेवाला । गावै ।-सूर०, २०१६६१। वया । जोg3-वि० [सं० योग्य, प्रा. जो, जोम, जोव ] योग्य । जोखुवा-सा पुं० [हिं०] दे. जोखुमा' । उचित । उ.-राजा राणी ने कहा, वात विचारउ जोइ। जोखाँ -सन स्त्री० [हिं॰] दे॰ 'जोखिम' । -ढोला०, दु०७। मुहा०-बान जोखों होना-प्राण का सकट में होना । जोइन -सक श्रो० [सं० योनि, हि० जोनि] दे० 'योनि' उ.- सीन लोक जोइन पौतारा । मावागमन में फिरि फिरि पारा। जोगंधर--सका पृ० म० योगन्धर] एक युक्ति जिसके द्वारा शत्रु के ---कवीर सा०, पृ.८०६ पलाए हुए मस्त्र से अपना बचाव किया जाता है। यह युक्ति तोइसी-मचा पुं० [सं० ज्योतिषी] दे० 'ज्योतिषी' । उ-चित पितु श्री रामचन्द्र जी को विश्वामित्र ने सिखलाई यो । उ- मारक जोग गनि भयो भये सुत सोगु । फिरि हुलस्यो जिय पद्मनाम अरु महानाम दोउ दूदह सुनाभा । ज्योति निकृत जोइसी समुझे जारज जोग ।-विहारी (पान्द०)। निराश विमल युग जोगधर बड भाभा ।- रघुराज (शब्द॰) । जोर--सर्व [हिं०] दे॰ 'जो' जोग'--सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'योग'। जोको-सदा स्रो• [हिं० जोक] दे० 'जोंक' । यौ०-जोगमुद्रा योग को मुद्रा। जोग समाधि = योग की जोक -सक्षा पुं० [म. जीक] उ०--मंगे जीव तो घर बुला भेज समाधि। उसू'। करे जोक फुलोर, भर सेज कू।-दक्खिनी०, जोग-व्य० [सं० योग्य] १ के लिये । वास्ते । उ.-मपने जोग पृ.८७। २ बझान । चस्का । उ०-खुशियां इशरता जोक लागि प्रसोला । गुरु भएउ पापु कीन्ह तुम चेला!-जायसी दायम सो नित नित शहा से मदिर में टिमटिम्यां बजाय ।- (शब्द०)।२ को। के निकट । (पु.हि.)। दविखनी०, पु०७३। विशेप-इस शब्द का प्रयोग बहषा पुरानी परिपाटी की चिट्ठियो जोखा-धापी० [हिं०] जोखने का कार्य या भाव । तौल । के पारभिक वाक्यो मे होता है। जैसे,-'स्वस्ति श्री भाई जोखता - सच मो• [सं० योपिता] स्त्री । लुगाई। परमानद जी जोग लिखा काशी से सीताराम का राम राम जोखना-किस० [सं० जुष( = जाँचना)]तोलना । वजन करना। बाँचना ।' बहुधा यह द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति के स्थान जोखना-कि० म० [सं० जुष - जाँचना] विचार करना। पर काम मे पाता है। जैसे, इनमे से एक साड़ी भाई कृष्ण- सोचना । उ०-काहू साथ न तन गा, सकति मुए सब पोति । चद्र जी जोग देना। मोछ पूर वेहि जानव जो थिर मावत जोखि-जायसी जोगडा-सा पुं० [हिं० जोग+ड़ा (प्रत्य॰)] बना हुप्रा योगी। (थन्द०)। पाखडी। जैसे,-घर फा जोगी जोगड़ा मान गांव का सिद्ध । जोस्तमा-सहमी [हिं०] दे जोखिम'। (कहा०)! जोबा-सक [हिं. जोखना] १. लेखा । हिसाब । जोगता -सज्ञा स्त्री० [सं० योग्यता] दे० 'योग्यता'। विशेप-इस पयं में इसका व्यवहार बहुधा यौगिफ में ही होता जोगनई-सखी० [हिं॰] दे॰ 'जोगिन' । है। जैसे, लेखा जोखा । जोगनिया -सक्षा पुं० [हिं० दे० 'जोगिनी"। २ तोलने का काम करनेवाला मादमी। जोगनिया-सा सी० [हिं०] दे॰ 'जोगितिया।