पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मराबरदार मॅगुप्ती किसी कार्य से प्रेरित होकर लोगों में सहायता या चदा लिया मंपायना-क्रि० स० [सं. झम्पन] १. हिलाना । कपाना । जाता है और चिह्न स्वरूप सहायता देनेवाले को झंडी दी उ०-झनझनात झिल्ली, झपावत झरना झर झर झाड़ी। जाती है (नौसैनिक) ---श्यामा०, पु० १२० । १२ उछालना। कुदाना। उ०- झंडाबरदार-सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं० महा + वरदार ] वह व्यक्ति जो किसी फागुण मासि क्सत रुत मायन जन सुरोसि। धापरिका राज्य या सस्था का झंडा लेकर चलता है। मिस खेलती होली झपावेसि ।-ढोला०, दू० १४५ । मंडी-सक्षा सौ. [हिं० 'झडा' का स्रो० प्रल्पा०] छोटा झडा मंपार-समा ९० [सं० झम्पार ] वानर बदर [को०] । जिसका व्यवहार प्राय समेत मादि करने मोर कभी कभी कभी कभी मंपित-वि० [सं० झम्प ] ढंका हुमा । छिपा हुमा । माच्छादित । ar सजावट यादि के लिये होता है। छाया हुमा ! मुहार-झंडी दिखाना - झंडी से सकेत करना। मपी-वि० सं० मम्पिनु ] कपि । अंपाक । वंदर [को०] 1 मंडीदार-वि० [हिं० झडी+फा• दार] जिसमे झडी लगी हो। झव-सज्ञा पुं० [सं० स्तवफ या हिं० झन्वा ] झोपा। गुन्या । झडीवाला। स्तपक [को०] । मंडोत्तोलन-संशा पु० [हिं० झंडा+#० उत्तोलन ] झंडा फहराना मँकना--क्रि० स० [हिं० दे० 'झोकना। 3.--ब्रज जुवतिन ध्वज फहराने का कार्य। को दर्पन जोई। तामै मुंह झकि माई सोई ।-नद००, क्रि० प्र०—करना ।-कराना !- होना। पु० १२६ । मंप-सज्ञा पुं० [सं० झम्य ] १ उछाल । फलांग । कुदान । मॅका-सा [हिदे० 'झोका'। मुहा०-झप देना= कूदना । ०-फरि अपनों कुल नास बनहि सो प्रगिन भंप दे पाई।—सूर (शब्द॰) । मॅकिया--संज्ञा स्त्री० [हिं० झोकना ] १, छोटी खिड़की । झरोखा। @t२ हाथियो मौर घोड़ों प्रादि से गले का एक प्राभूपण। २. झंझरी । जाली। गलझप। मोरा-सा पुं० [हिं० ] दे॰ 'झकोरा'। मंपण-सदा पुं० [पप.] पाँखों को प्राधा खुली रखना । नेत्रों का मॅकोरना-कि० म० [वि.]० 'झकोरना'। प्रर्पोन्मीलन !-महा पु०, भा० १, पृ० १२ । मकोलना-~कि. भ.हि. ] दे० 'झकोरना। झंपणी-सच्चा स्त्री॰ [देशी ] वरुनी। बरौनी । पक्षम । मॅकोला-सहा पुं० [हि.] दे० ककोरा'। . कंपन-मुना पुं० [ स० झम्पन] १ उछलने की क्रिया । उछाल । मॅखना--कि० अ० [हिं० झंखना ] . "झखना' । उ.-(क) २. झोंका। 10-निराशा सिकता कुपय मे अश्मरेखा सी कीदत प्रात समय दो वीर । माखन मांगत, बात न मानत, सुप्रकित । वायु झपन में धवल से हिमपिशखर सी तुम भकपिन । मखत जसोदा जननी तीर।-सूर०, १०1१६१। (ख) ---पदासि, पु. ६६1 . सूरज प्रभु मावत हैं हलघर को नहिं लखत झंखति कहति तो मंपन -सा पुं० [सं० भाच्छादन, प्रा. झपण, हिं० झापना ] होते सग दोऊ । सूर (शब्द०)। छिपाने की क्रिया। भावरित करने का कार्य। 10-विहि मॅगरा-सधा पुं० [देश० ] एक प्रकार का बांस का जालदार गोल अवसर लालन मा गए उपमा कवि ब्रह्म कही नहि जाई। झापा जिसे बोरा भी कहते हैं। कचन कम के झपन को भुफि झपत चंद मलक्कत झाई |--- मॅगा-सपा पुं० [हिं० झगा ] दे॰ 'झगा'। उ०-(क) नव नील अकबरी०, पृ० ३४६ । कलेवर पीत झंगा झलक पुलकै नुप गोद लिए।-तुलसी मपना -क्रि० स० [म. पाच्छादन, प्रा. झंपण ] छिपाना । (शब्द॰) । (ख) पाव लाल ऐसे मदु पीजे तेरी झंगा मेरी ढकना । माच्छादित करना। 30-कचन कुभ के 'झपन को पेंगिया धीर ।-हरिदास (शब्द०)। झुकि झपत पद झलक्कत झाई-मकवरी०, पु० ३४६। मँगिया-सद्या श्री [हिं० ] दे० 'गुप्ली'। मपाक-सका सं० [सं० झम्पाक ] [ श्री. 'झपाकी ] वानर । मंगा -सा पुं० [देश ] मठिया नामक गहने मे की, कुहनी की बदर फो । भोर से तीसरी चूड़ी। दे० 'मठिया'। मंपाना--संग्रा पुं० [सं० काम्प या देशJ१ है'झपान'। २. मॅगुला-सवा पुं० [हिं० ] दे॰ 'झगा'। कुदान । उछाल । मपापात और -सga [सं० भग+पात ] ऊँचाई मे गहरे पानी में मगुलियासपा खी० [हि. "भगा'का पल्पा पहनने का झगा पा ढीला कुरता। उ०-(क) पुरन चलत झम से कूद जाना। कूदकर प्राणत्याग करना। उ०- कनक मांगन में कौशिल्या छवि देखत । नील नलिन वनु पीस - (क) जोग जज्ञ जपतर तीरथ पनादि मौर, झापान लेत अंगुलिया धन दामिनि द्युति पेखत ।-सूर (चन्द०)। जाद हिवार गरत हैं।--सुदर प्र०, भा० १, पृ० ४५५ । (ख)को बडे पापाती,इद्रिय वसि करि न जाती। मंगुलीन-सा श्री० [हिं०1३० मंगलिया' .-. I tी -सुदर प०, भा० १, पृ० १४७ । कह्यो भोर भयो भंगुलीदै मुदित महरि सखि भातुरताई।- मपापाती -वि० [हिं० मापात] बहुत ऊँचाई से नदी में गिर. तुलसी (शब्द॰) । (ख) कोउ भबुली कोड मृदुल बदनिया कर प्राणत्याग करनेवाला। कोट बावे रचि ताजा-रघुराज ( शन्द०)।