पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७४

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कँगूली मपान मँगली+-संशा की. [ हि. ] दे० 'गुलिया', 'झंगुली'। उ०--- गर्भ के बाल हो। जिसका मुढन संस्कार न हुमा हो । गर्म के कुलही चित्र विचित्र अँगूली। निरखहि मातु मुदित मन बालोवाला (बालक) । २. मुंडन संस्कार के पहले का। फूली । तुलसी प्र०, पु० २५५ । गर्भ का (बाल)। उ०--डर वघनही कठ कठुला झंडूले ममनना--कि०म० [ भनु० ] झन झन शब्ध होना । झनक झनक केस मेढ़ी लटकन मसिविदु मुनि मनहर।-तुलसी ग्र०, पु० २८६ । शब्द होया । झकारना । उ०—नेकु रही मति बोलो मवै मनि पायनि पैजनिया झझनेगी।-(शब्द॰) । विशेष-इस अयं में यह शब्द प्राय बहुवचन रूप में बोला जाता मॅझरा-सका पुं० [स० जर्जर ( = छिद्रयुक्त), प्रा. जज्जर, या हि.] है। जैसे, झंडूले केश, भैरले वार ! 3०-उर धनहाँ. कठ मिट्टी का जालीदार ढंकना जो खोले हुए दूष के बर्तन पर ठुला, झंडूले बार, देनी लटकन मसि बुदा मुनि मनहर । रखा जाता है। मूर ११५१ ३. घनो पत्तियोवाला । सघन । मँझरा-वि० [स्त्री मारी] जिसमें बहुत से छोटे छोटे छेद हो। झोना। मॅडला- पु०१ वह बालक जिसके सिर पर गर्म के बाल हो। मॅझरी-सक्षा बी० [सं० जर्जर, हि. झर झर से अनु० ], किसी वह लरका जिसके गम के वान अभी तक मुंडे न हो। चीज मे बहुत से छोटे छोटे छेदों का समूह । जानी। २ मुंडन सस्कार से पहले फा वाल । गर्म का बाल जो भी उ.--(क) ममरी के झरोखनि ब के झकोरति रापटी हूँ मैं तक महा न गया हो। ३. धनी पत्तियाँवाला वृक्ष । न जात सही ।-देव (शब्द॰) । (ख) मॅझरी फूट पूर सघन पक्ष। होई जाई। सवहि काल उठि घला पराई।-वीर म०, मॅपकना-मि. म. [हिं० झपकना [२. "झपकना'। पु० ५६४ । २ दीवारों मादि में बनी हुई छोटी जालीदार मॅपकी-सश श्री [हिं० झपकी झपकी। खिडकी।३ लोहे का वह गोल जालीदार या छेदार टुकड़ा मँपताल-सपा पुं० [हिं० प्रपताल ] दे० 'झपताल'। जो दमचूल्हे प्रादि मे रहता है सोर जिसके ऊपर सुलगते हुए मॅपक-स पु. [ सं० भम्पाक] अंदर । कोयले रहते हैं। जले हुए कोयले की राख इसी के छेदों में से कँपना'-क्रि० म० [सं० झम्प ] १. ढंकना । छिपना । प्राड पे , नीचे गिरती है । दमचूल्हे की जाली या झरना। ४ लोहे होना। २ उछलना । कुदना । लपकना । झपकना । उ०-- मादि की कोई जालीदार चादर को प्राया खिड़कियों या (क) छकि रसाल सौरभ सने मधुर माधुरी गध। ठोर ठोर वरामदो में लगाई जाती है । ५ माटा छानने को छलनी। कौरत झंपत झोर को मधु प्रध। -बिहारी (शब्द०)। ६.माग मादि उठाने का झरना। ७ दुपट्टे या धोती मादि (स) जहि भैपति तबहि कपति विहंसि लगति उरोज।- के पांचल में उसके बाने के मूतों का, सुदरता या शोभा के सुर (प्राब्द०)।३ टुट. पड़ना । एक दम से मा पडना । लिये बनाया हुमा छोटा जाल, जो कई प्रकार का होता है। उ०-जागत काल सोक्त काल काल झपे पाई। काल चलत ममरी-वि० सी० [हिं० झंझरा का अल्पा.श्री.] दे० 'झंझरा'। काल फिरत कवहूँ ले जाई।-दादू (ब्द०)। ४. ऊपना । मँझरीदार-वि० [हिं• अमरी+फा०दार जालीदार । सूराखदार । तज्जित होना। जिसमे झंझरी या जाली हो।। मँपना -क्रि० स० पकडफर दवा लेना। छोप लेना। डॉक मैं मेरना -क्रि० स० [सं० झझन ] दे० झझोउना' । उ.-- लेना। उ०-नीधी में नीची निपट लौं वीठि कुही दौरि। देख्यौ भक्त प्रधान जब राजा जाग्यौ नाहिं । सुदर सक करी उठि ऊँचे नीचौ दियो मनु कुलिगु भैपि झोरि । -विहारी नही पकरि झंझेरी वाहिं ।-सुदर० प्र०, भा०२,१० ७६१ । (शब्द०)। मझोटी-सशास्त्री० [हिं०] दे॰ 'झिझोटी'। झपरिया-सच्चा श्री० [हिं० झापना ( = ढंकना)] पालकी को मोडना-क्रि० स० [सं० झझन] १ किसी चीज को बहत वेग ढाकने की बोली। गिलाफ । पोहार । उ०-पाठ कोठरिया पोर झटके के साथ हिलाना जिसमें वह ट फूट जाय या नष्ट नौ दरवाजा दस लागि केवरिया। खिडकी खोलि पिया हम हो जाय । झकझोरना । जैसे,-वे सोए हुए थे, इन्होने जाते देखल ऊपर झाँप झपरिया। कबीर (शब्द०)। ही उन्हे खूब झझोहा। २. किसी जानवर का अपने से छोटे झंपरी-सला स्त्री० [हिं० अपरिपा ] ३. 'झपरिया' । जानवर को मार डालन क लिये दाता स पकड़कर खूब फँपाक-सक्षा ५० [सं० कम्पाक ] चदर । कपि । मटका देना। झकझोरना । जैसे, कुत्ते या विल्ली का चूहे को झंझोडना । मॅपान-सहा पुं० [सं० भम्प सवारी के लिये एक प्रकार की खटोली जिसमें दोनो ओर दो लबे वास बंधे होते हैं । झापान । मॅमोरा-सा पुं॰ [देश॰] कचनार का पेड । विशेष-इन बासो के दोनो भोर बीच में रस्सियां बंधी होती है, मॅमोटी-सम वी० [हिं०] दे० 'मिझोटी'। जिनमे छोटे छोटे दो मौर बोस पिरोए रहते हैं। इन्ही सो मँडूलना-सक [हिं०] दे० 'झडूला'। को चार प्रादमी कधो पर रखकर सवारी ले चलते हैं। यह मॅडूना-वि० [हिं० झड+कला (प्रत्य॰)] जिसके सिर पर सवारी बहुधा पहाड की चढ़ाई में काम माती है।