पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७५

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महोबा कुछ ' मुरझाना मपोना १८२१ मकमोरा मँपोला--संथा . [ हिं• झाप+भोला (प्रत्य॰)][खी प्रल्या. मई -संक्ष श्री० [हिं॰] दे० 'माई। 30--को जाने काहू झपोती, झेपोलिया ] छोटा झापा या भागा। यानड़ा। जिय की छिन छिन होत नई। सूरदास स्वामी विधुरे साम भैफाना-संश पुं० [सं० झम्प] काविहीन होना। समाप्त या नष्ट प्रेम मई।--सूर (इन्द०)। होना । गलित होना। 30-रूप रंग ज्यों फुलरा तन तरवर झडया-संध पुहि माना सांचा टोकरा। झाया। ज्यों पान । हरिया झोलो कार को झाड़ झडि हुए झंफान। मतापO--संपाइसंभावकाहि भाऊ] . 'भाऊ' 11.- -राम. धर्म, पु. ६७। साधो एक बन झाकर मठमा । सावा वितिर देहि माह मॅवकार -[हि. झाँवला काला] कृष्ण वर्ण का। झांबले रंग मुलाने सान बुझावत कोपा ।परिया, पू० १२५ । का। कुछ कुछ काला। उ०पॉड गयंद जरे मए कारे। मो मसtinterfa1. 'मा', चन मिरग रोम सेवकारे।-जायसी (पन्द०)। क'-सा बी० [भनु.] १.कोई काम करने की ऐसी धुन जिसमें भवराना-क्रि० म. [हिं० वर] १. कुछ काला पड़ना। २. मागा पीछा या भला बुरा न सके। २.घुन । सनक । तहर। कुम्हलाना । सूखना। फीका पड़ना। मौज। मवा-सा ० [हिं०] ३० झावा'। उ०-झझकत हिये गुलाब के क्रि०प्र०-चढ़ना।-सगना।-समाना! सवार होना। झवा झवावति पाय !-बिहारी (धन्द०)। ३. पाँच ताप । ज्वासा। 10.--मात्रा झक पर जरे, कनक मवाना'-कि. म. [हिं० मावो] १. मावे के रंग का हो पाना। कामिनी सागि । कह कबीर कस पाचिहै, रईसपेटी मागि। कुछ काला पड़ जाना। वैसे, धूप में रहने के कारण चेहरा -संतवावी., पृ०१७ ॥ ४. मीका । झमक झार। झंदाबाना। २. अग्नि का मंद हो जाना। भाग का कुछ क्रि० प्र०-माना । ठंढा हो पाना। ३. किसी चीज का कम हो जाना। घट जाना। ४. कुम्हलाना। मुरझाना। ५. झवि से रगड़ा मक-संच सौ. मन] दे. 'मर। जाना। मक:--वि० चमकीला । साफ। भोपदार पैसे, सफेद मक। संयो० क्रि०-जाना। मककेतु-सा पुं० [सं० मवकेतु] ३० 'झषकेतु' । मॅवाना-क्रि० स० १. झावे के रंग का कर देना । कुछ काला कर मकमक-संवा जी० [अनु.] १ व्यर्थ को हुज्जता फक्त माड़ा देना। बैसे,---घूप ने उनका चेहरा झंवा दिया। २. पग्नि को या तकरार। किनकिम । २ व्यर्थ की कवाय । निरर्षक मंद करना। पाग ठंढी करना। ३. किसी चीज को कम वादविवादपकबक। करना। उ०-ज्ञान को प्रभिमान किए मोको हरि पठले। यो०-बकवक भकभक । मेरोई भजन गामि माया सुख मवायो।सूर (सन्द०)। ४. झकमक-वि० [मनु.] घमकोला। भोपदार। चमकदार। ३०- कुम्हला देना। मुरझा देना। ५. झवि से रगड़ना । ६. झवि झकमक झलकती वह्नि वामा के म त्यो स्यौ।-पपरा, से रगडवाना। पु०४० भयाना-क्रि० स० EिO भवाना ] झवि से रगड़ना या मका-1िोला । रगडवाना। उ०.--झमकत हिये गुलाब के झंवा मवावति झकमकाहट-संक सी० [मनु.] प्रोपा चमक । अपममाट। पाय।-विहारी (शब्द॰) । मकमेलना--क्रि० स० [हिं॰] दे॰ 'झकझोरना। मसना-क्रि० स० [पनु०] १.सिर पा तलुए पादि में मैं तेल या मकमोर-सश घु-[भनु०] झोका । भाटका। 10--तन असपियर मोर कोई चिकना पदार्थ लगाकर हथेली से उसे पार बार चात मा मोरा। तेहि पर बिरह देर झकझोरा। जायसी रगहना जिसमें बह उस मंगके पंदर समा बाय। जैसे- सिर में कवर का तेल भैसने से तुम्हारा सिर दर्द पुर । संयो० कि०-देना। झकझोर'--वि० झोंकेदार । तेज। जिसमें खूब झोंका हो । न.- काम क्रोध समेत तृष्णा पवन मति झकझोर। नाहिं चितवन २. किसी को बहकाकर पा अनुचित स से उसका धन पापि से देति विय सुत नाम नौका मोर।—सूर (शब्द॰) । लेना। वैसे-इस प्रोझा ने भूत के बहाने उससे दस रुपए भैस सिए। झकझोरना-क्रि-स. (मनु०] किसी चीज को पकड़कर खूब संयो० क्रि०-लेना। हिलाना। झोंका देना। मटका देना। उ०-(क) सूरदास तिनको ब्रज युक्ती माझोरवि र मंक भरे। -सूर (शब्द०)। झ-सहा. सं०] १. झंझावात । वर्षा मिली हुई तेज भाँधी। २. (ख) भषिक सुगंधान सेवक चार मलिंदन को झकझोरति सुरगुरु । वृहस्पति ।३ देत्यराज। ४, ध्वनि । गुबार शब्द । है। --सेवक (शब्द०)। (च) पातन ते ५ तीव्र वायु । तेज हवा । रपैए कहा झकझोरत हूँ न परी भरसात है।-(शब्द०)। मई -सहा बी.हि.] दे.'भाई' । उ.-भरतहि देखि मातु उठि घाई। मुरछित मनि परी झाईमाई।-तुमसी (शब्द०)। झकझोरा-सम पुं० [अनु॰] झटका । धक्का । झोंका। उ.-मंद