पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७८

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मेगुलि, मशुलिया १८१४ मटकना को माहि बसै किहि प्रामा।कविता को, भा० १, मन मन यह विचारविमझकि उठ्यौ सोयत हरि भवहीं छ पु.१४ । पडि पडि तन दोष निवारति!-सुर०, १०२.० ३. मालि, मगुखियाgf-संश सी० [हिं० भगा का पल्पा०] दे. संकुचित होना। झिझकना । उ०-मति प्रतिपाल कियो 'झ्या । .-प्रफुलित हानि, दीनी है बसोदा रानी, तुम हमरौ सुनत नंद बिय झमक रहे ।---सुर०, १०३११२ । झोलीय गति तामें कंधन तगा।-सूर०, १0३९ ममनिपुग-संशनी [हिं० सुभकना] दे॰ 'झमकन'। .- भावी/-संधी - [हिं०] दे० 'झगा। वह रस की झमकनि वह महिमा, वह मुसुकनि सो संजोग । मगला-सं० [हिं॰] दे॰ 'झगा। 30-बार दुम पखना -सुर (शन्द०)। बिछौना नव पल्वव को, सुमन झगूला सोहै तन छवि भारी समकाना-क्रि० स० [हि. मानाका प्रे.रूप] १. अचानक है।-पोझार प्रभि.पं., पु. १५७।। किसी प्रकार के भय की माशंका कराके किसी काम से रोक मनभर-सं० [सं०मातिम्बर] कुछ पौडे मुहका पानी रखने देना। धमकाना। भड़काना। उ०--बुज्यों उझकि झापति का मिट्टी का एक बरतन। वदन फुकति रिहॅसि सतराह! तुत्यों गुताल मुठी गुठी माझकावत पिय जाद-विहारी (ग्रन्द०)। २. चौका देना। विशेष---रस बरतन को ऊपरी ठह पर पानी को ठंडा करने के लिये पोड़ी सी धातु नया दी जाती है। इसको ऊपरी सतह पर * ममकार-संशा खो [हि. भकारना ] झझकारले की क्रिया सुधरवासिये तरह तरह की नकाशियाँ भी की जाती हैं। या भाव। सिका व्यवहार प्रायः परमी के दिनों में बल को पषिक ममकारना--कि. सम् [पनु०] १.डपटना। शंटना। २. दुर- ठंढा करने के लिये होता है। दुराना । ३. अपने सामने कुछ न गिनना। किसी को अपने मम्मी -संश सी० [देश०] १. फूटी कौड़ी। २. दलाली का धन- मागे मंद बना देना। उ-नस मानो चंद्र बाण सावि के (दलालों को माषा)। झमकारत तर भाग्यो। सुरवास मानिनि रण जीत्यो समर संग सर रए भाग्यो।-सुर (सन्द०)। ममक-संशबी- [हिं० भभकना] १. झमकने की क्रिया का भाव । किसी प्रकार के भय की मायंका से रकने की क्रिया। चमक। ममकना-कि.म.[भनु.] माझ बाजे का बजना। झांक की मक। वैसे,-पमी लकी झमक नहीं गई है, इसी से ध्वनि होना। 70-झम झम्क त उठवतरण रंग, परि खुलकर नहीं बोलते। उच्चारहि दंद दंद मिरदय।-माधवानल०, पृ० १६४। क्रि०प्र०-जाना।-मिटना होना। ममरीश सी० [सं० बर्बर, हि.भंकरी] जातीदार खिड़को। महा.-ममा निकलना- झझक दूर होना। मय का नष्ट झंझरी। उ०-झझकि मझकि झझारिन जहाँ झांकति मुकि होना। झम्क निकामना= झझक या भय दूर करना। मुकि भूमि । ज.पं.,पु०३६ वैसे, हम पार दिन में इनकी झमक निकाल देंगे। ममियाg --संख खो• [हिं॰] दे० मिझिया। २. कुछ कोष से बोनने की क्रिया या भाव। मुझलाहट। मट-कि० वि० [सं० झटिति ] तुरंत। उसी समय । तत्क्षण। ३.किसी पदार्प में से रह रहकर निकलनेवाली विशेषतः फोरन । पैसे,-हमारे पहुंचते ही वे झट उठकर चले गए। मप्रिय गंध। मुहा०-भट से-जल्दी से । शीघ्रतापूर्वक । कि.प्र--माना।--निकलना। यौ०-ट पट। ४. रह रहकर होनेवाला पागलपन का हुनका दौरा। कभी . मटक -संध - [अनु॰] वायु का मौका। प्राधी। 10. कभी होनेवाली सनक । झटक भाटल छोड़त ठाम, कएल महातरु तर विसराम ।- फि.प्र.-पाना-पड़ना।-सवार होना। विद्यापति, पृ.३.३। ममकर-संशा की० [हिं० मटकना] ममकने या मड़कने का मटकनहार-वि० [हिं० भटकना+हार ] मटकनेवाला। झटका भाव डरकर हटने या रुकने का भाव । मड़का देनेवाला। उ०-मटकनहार भटकनो। मटकनहार झटकबो। माकना-कि०म० [अनु॰] १. किसी प्रकार के भय की माशंका -प्राण-पू. ११ पकस्मात् किसी काम से रुक जाना। अचानक डरकर भटकना-किसाईट. किसी जाना। अचानक बरकर मटकना-क्रि० स० [हिं० झट] १ किसी चीज को इस प्रकार एक- ठिठना। विदाना। चमकना। भड़कना। उ.-(क) मारली मौके से हिलाना कि उसपर पड़ी हुई दूसरी पोज गिर कबहुं चुंबन देत माकषि जिय देत करवि बिन चैत सब हेत पड़े या पलय हो जाय । मटके से हुलका धक्का देना । झटका अपने । मिति भुज कंठ है रहति अंग लकि के जात दुस देना। उ.- नासिका ललित बेसरि पानी प्रघर तट सुभा दर व झझकि सपने।—सूर (शब्द॰) । (ख) छामे परिये तारक छवि कहि न माई। परनि पद पटकि झटकि मोहनि के हरन सकेन हाप छुवाइ । झमति हियहि गुलाव झंवा मटफि पकि तहाँ रीझे कन्हाई। —सूर (शब्द०)। मवावति पार।-बिहारी (इन्द०)। विशेष-समय में इस शब्द का प्रयोग उस 'बीज के लिये भी संगो क्रि०-उठना-बाना !-पड़ना। होता है वो किसी दूसरी चौर पर चढ़ती या पड़ती है। और २. मवाना। बिजलाना। ३. पीक पहना। उ०-सुमति उस चोज के लिये मौ होता है जिसपर कोई दूसरी बीज पढ़ती