पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८३

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झप्पान ममक झप्पान-संथा पुं० [हि. मॅपान ] झपान नाम की एक प्रकार की सूर सवारि।—सूर (मन्द.)। (म) यह मगरी बमरो जस पहाड़ी सवारी जिसे चार मादमी उठाकर चलते हैं। रोषत हरिपद मति अनुरामा । ताते सज्जन रसिक शिरोमणि मप्पानी-संा पुं० [हि. भंसान] झप्पान उठानेवाला कहार यह झवारि सव त्यागा:-रघुराज (इन्द०)। या मजदूर। मषिया संवा सो [हि. मला का खौ• मल्पा०] १. छोटा मन्ना फवक-सा सी-[हिं० भपक ] दे० 'झपनी'। छोटा फुदना । २. सोने या चांदी भादि की बनी हुई बहुत मयको-क्रि० वि० [हिं० फरक झपकी में हो। उ.-सामलि हो छोटी कटोरी जो बाजूबंद, जोखन, हुमेल. भादि गहनों में राजा बोल्या रे प्रवधू सुण मनोपम बाणो जी । निरगुण नारी सूत या रेशम में पिरोकर गूयो जाती है। उ०मदनातुर नेह करता झबक रेरिण बिहाणी जी।गोरख०, पु०१५३॥ ती तिनक पर श्याम हमेलन की झमकै झरिया।-बान भबकना-क्रि०म० [मनु मन भर करना। ज्योति सी उठना । कवि (शब्द॰) । दीप्त होना । चमकना । उ०-काया झनकद कनक जिम, सदर भाषिया-संग सी. [ हि. झाबा का बी० पल्पा-1 वह नवा वाट सरंगा किम स्वर. जिण वेहा वह दस्स।- जो माकार में छोटा हो। - ढोला०, इ.५४६ । मबी-संच सी.[ हिं. मला का बो० प्रल्पा०] दे० 'मबा'। उ०- झवझवी-मञ्च स्त्री॰ [देश॰] कान में पहनने का एक प्रकार का मनी जराक जोरि, पमित गूपननि संवारी । -नंद. तिकोना पत्ते के साकार का गहना। पं०, पृ० ३८६। मवड़ा-वि० [ अनु.] दे० 'भरा। माबुआ-वि० [अनु॰] दे॰ 'भारा'। मवघरी-सम सौ. देश-1 एक प्रकार की घास जो गेहें को मबूकदायुग-सघाखा [अनु॰][पन्य रूप-मबुम्कता, भवका हानि पहुंचाती है। चमका जगमगाहट । 10-(क) ऊँच मदिर माति घणार मावि सुहावा कता वीजलि लियइ मबूकड़ा सिहरी मलि माबरका -संथा पुं० [पनु० ] जलते हए दोपक में मोटी बची। लागत।-ढोला०, दु. २६८१ (ख) बीच न देख चहड्डियों, उ.-कसतरी मरदन कीयो झबरक दीप ले गहरी वाट ।-- प्री परदेश गयोह। पापण लीय बुक्कड़ा पनि लागी वो० रासो, पृ०९। सहरह।-ढोला., ० १५२ । भवरा--वि० [ अनु.] वि० बी० झवरी ] चारों तरफ बिखरे मोर धूमे हए बड़े बड़े वालोंवाला। जिसके बहत लवे लवे बिखरे मबूकना-क्रि० प्र० [ पनु० ] १. चमकना । जगमगाना। दीप्त होना । ज्योतित होना । 10-(क) मदिर माहि भबूकती हुए बाल हो। जैसे, झवरा कुत्ता । 30-लुपा कबरा मोतिया झबरा बुचवा मोहि ठरवावै। मलुक० बानी, पु० २५ । दीवा कैषी जोति । हूंस पटाक चलि गया कादो पर की छोति । --कबीर , पृ०७३। (ख) भमूक उईयों मबूकै झवरा-सा पुं० कलंदरों की भाषा में नर भाल। फुलंगा। मनो अग्नि बेताल नचं खुलंगा ।-सूदन मवरीक्षा-वि० [हिक झपरा+ईला (प्रत्य॰)] [वि॰नी• झम- (सन्द) १२. झमकना। रीली] कुछ बड़ा, चारो तरफ बिखरा और धूमा हुमा (बाल)। मलबा-चंचा पुं० [अनु॰] १. एक ही में बंधे हुए रेशम या सूत मादि मवरैरा -हि. झबरा+ऐरा (प्रत्य॰)] [वि॰स्त्री. भवरेरी] के बहुत से तारों का गुच्छा वो कपड़ों या गहनों मादि में दे० 'झबरीला। उ०-कुंतल कुटिल छवि राजत झावरेरी। शोमा बढ़ाने के लिये लटकाया जाता है। पैसे, पगडी का फन्दा। लोचन चपल तारे दधिर झवररी।-सूर (शब्द॰) । २ एक में लगी गूथी या बैषी हुई छोटी छोटी चीजों का मषा-संवा पुं० [मनु.] दे॰ 'झब्बा150-(क) सीस फूल घरि समूह । गुच्छा । जैसे, तालियों का झब्बा घुघुश्मों का भल्बा। पाटी पौधत फूदन झवा निहारत । वदन विद जराइको उ.-मन्दरा से बहु छोटे बटुए मूलत सुंदर !-प्रेमघन०, बंदी तापर बने सुधारत ।-सुर (शब्द.)। (ख) छहर मा० १, पृ०१२। सिरप छवि मोर पखा उनकी नथ के मुकता पहरें । फहरे झमंकना-क्रि० स० [अनु.] झम् मम् की ध्वनि होना। पियरो पट वेनी इते उनकी चुनरीके झवा झहरें।-वेनी भंकार होना। उ०-वधु सहन नाडी पवन चलेगा, कोटि कवि (शब्द०)। झमकै नादं। बहुवारि चंदा बाई सोष्या किरणि प्रगठी पब फबारी-सका श्री. [ भनु० ] टंटा। बखेड़ा। झगड़ा। उ०- पाद!-गोरख०, पृ०.१६ भरि नयन लखह रघुकुल कुमार । तजि देह भोर जग को ममंकार -संश श्री. [पनु.] झम झम की ध्वनि । झंकार 130- झवार ।-रघुराज (शब्द०)। तमते तमते तमं तेज मारे। ममते झमते झमकार झारे।- मापारिरी-सबा खी.हि.] दे० 'झबार । .-(क) बड़े घर की पृ० रा०, १२।०६। बह बेटी करति वृपा झवारि। सूर अपनो मंश पावै जाहि पर भमक-सश सी० [मनु०] १. चमक का अनुकरण। २.प्रकाश। मस मारि।-पूर ( शन्द०)। (ख) वहुत मचगरी जिन रुपेला । ३. झम झम शब्द । उ०पग चेहरि विछिपनको करी मजहुँ तजी भवारि। परि कस ले जाइगो कासिहि ममकनि पलत परस्पर बाजत । सुर स्याम सुख पोरी ४-२२