पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८५

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करना। सोनी ममेश मरनी Cr को सहायता देठा है . वहः पच्चा पो ढोले ढाले, कपरे झरझर-सका बी: [-अनु. जमके बहने, दरसदे या हवा के . " पहनता हो। कोई प्यारा बच्चा, पमने -पादि का सन्द ! २. किसी प्रकार से उत्पन्न झर झमेल-संश' सी. हि झमेला दे. झमेला'

झरसाद 11.

- झमेला-संचा'| मनु मोव झीवा बखेडा झझटोगदा। झरझराना -क्रि० स० [ मनु• ] किसी मन में से किसी वस्तु "टटा २ लोगों का मुडा मीर भारी -शथुन के को इस प्रकार झाड़कर गिरा देना कि उस वस्तु के गिरने से झमेला वीर पाय शल ठेला प्रान त्यागि मलबेलों टन मह काम करकर यहा - ... - . रेला सो। गोपाल (द)। 27 ~~ रमराना-०५झहरा उठना । कांप उठना । कपित होना। उझरझराति महाति लपट पति, देवियत नही उनार । मेलिया-सशा' [हिं० झमेला + इया (प्रत्य॰)] झमेला -.. -सुर०,१०५६३.1 !.. . -.- करनेवाला । झगड़ालू ! बखेडिया [- - - करन-या बी. [हिक झरना] १. भरने को, किया। २. वह पा __सर-साखौ..[सं०] १. पानी, गिरने का स्थान । निझर । २. . कुछ करकर निकला हो.। वह-जो, झरा हो । ३. ३२ 'झड़न' । झरना। सोता । पश्मा । पर्वत से निकलता हुमा जलप्रवाह। मरना'.-कि.म० [सं० रण.] १. झड़ना। २ किसो ३. समूह । मुई। ४ तेजी। देश । उ.-प्राप्त गई नीके उठि - - कचे स्मान-से जल की धारा का गिरना । ची जगह वे घर। मैं बरजी कहाँ जाति री प्यारी तब खीझो रिस . से सीधे का गिरना। वैसे, पहाड़ों में झरने भर रहे थे। भर ते सूर (शब्द)।.मड़ी।-वगातार-बुष्टि। ६. उ-नद नंदन के बिछुरे मखियो उपमा जोग नही-1 झरना - किसी वस्तु को लगातार वर्षा । - उ.--(क) वर्षत प्रस्त्र , लो, ये झरत रेन दित उपमा-सकल. नहीं। सूरदास मासा " . कवध धर फूटे। मघा मेघा मानो झर जुटे। लाल (चन्द०)। --,-मिसिबे की भव घट साँस-रही-सूर (सब्द०)। वीर्य (ख) पावक भरते मैह भर दाहक दुसह बिसेखि। दह देह को पतन, होना। धीर्य स्खलित होना।-(बाजारू ) १४. वाकै परस याहि गन की देसि ।-विहारी. (सन्द)। (ग) 7 बजना-1 झड़ना । जैसे नौबत झरना । ........ "सूरदासतबही तम नांस-ज्ञानं भगिन झर फूट। -सूर (शब्द०)। विशेष-(१)दे. "झठना'। ... .....- ७.मात्र । ताप-सपट । ज्वाला। माल .उ.--(क) श्याम विशेष-(२) इन ,मयों में इस सन्द का प्रयोग उस पदार्प भकम भरि मीन्हीं विरह मगित झर तुरत -बुझानी। सूर• लिये भी होता है-जिसमें से कोई चीज करती है।...---. -- (सब्द).(ख) श्याम-गुणराशि मानिनि मनाई। रह्यो रस झरना-सशा पुं० [सं० भर ऊँचे स्थान से गिरनेवाला जलप्रवाह । परस्पर मिट्यो तनु विरह भर भरी मानंद प्रिय तरन माई। -सूर (शब्द॰) । (ग) सटपटाति सो ससिमुखी मुख ... पानी का वह स्रोत जो ऊपर से गिरता हो । सोता। परमा। जैसे, उस पहाड़ पर कई झरने हैं। घट पट ढोकि। पावक झर सी झमकि के गई झरोखे - 3.-[सं०क्षरण][ी -प्रल्पा० करनी १ लोहे या पीतल मादि-बिहारी (गन्द०)। (प) नेफुन झुरसी विरह पाधि की बनी हुई एक प्रकार को छलनी जिसमे लवे लये छेद झर नेह लता फॅमिलाति। नित नित होत हरी हरी खरी होते हैं पोर जिसमें रखकर समूचा पनाज छाना जाता है। झालरवि जाति ।-निहारी (धन्द०)। ५ ताले का खटका। २वीड़ी को वह करछी या चम्मच जिसका प्रगला भाग - ताले को भीतर की कल । ताले का कुत्ता!' .. छोटे तवे का सा होता है भोर जिसमें बहुत से, छोटे छोटे छेद मरक -सञ्ज्ञा स्त्री? [हिं० झलक ] ३० झलक'.... होते हैं। पौना। . . , , मरफनाल-किम[हि ], १. दे० 'झलकना' । ३०-सरल विशेष-इससे खुले घी या तेल मादि में तली जानेवाली चीजों विसाल विराजही विदुम सभ- सुजोर। चार पाटियनि पुरट , को उलटते पलटते, बाहर निकालते मथवा इसी प्रकार का को झरकत मरकत. भोर !-तुलसी( पाब्द०)। २..दे० कोई मौर काम लेते हैं। झरने पर जो पोज ले ली जाती है - झिड़कना । उ-रोवति देखि जननि अकुलानी लियो तुरतं । उसपर का फालतू घी या तेल, उसके छेदों से नीचे गिर जाता नोवा को झरको।सूर (शब्द॰) । है पोर तब वह चीज निकाल ली जाती है। मरकना@-कि० प्र० [हिं० झलकना ] दे॰ 'झलकना । ३०- २ पशुमों के खाने को एक प्रकार की घास जो कई वर्षों तक रखी .....हसत,दसन मस.रमके पाहुन उठे झरक्कि । दारि सरि जो ... जा सकती है। . ...... ....


न.के सका फाटेच हिया दरपिक । जायसी J०.०७४ । झरना-वि० [ वि० खो झरनी ] १, झरनेवाला । जो मरवा हो।

झरना@:-किन अ झर -पानीका बहना)] धीरे धोरे *- ..जिसमें से कोई पदार्थ करता हो। . - बहना ! झर झर शब्द .फरते पलना। २०-पौन -झरस्के मरनाइट-- सष्ठा ली [मनु] झनझनाहट । उ०-झाझर झरनाहंद - हिय हरख लागे. सिरि वतास जायसी --- (गुप्त), पर जेहर का झनका था।-नट०, पृ.११।। हा -पू०.३५१- 15T H - झरनि -सा स्त्री० [हिं०] दे० 'झरन'130-नपुर बबत मानि फरफाना--क्रि:RLसेकर = समुह, मुर)-J एकत्र होना। -मग हे प्रधान होत, मीच होत. चरणामृत करनि फो।- x rसे पा जाना। उ इत चौका महे. प्रस-भो भ्राई । बहु प्ररण (शब्द)।--- पिउँटी चूल्हे झरफाई ।कबीर सार १०.४. मरनो-वि: । हि.मना का. मी पल्ला झरनेवाली । दे०