पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८६

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१५२२ करना। 10-मरनी सुरस विंदु घरनी मुकुंद जू को घरली मारहराना" -क्रि० म०[ मनु.] पत्तों का वायु या वर्षा के कारण सुफल रूप चेत कर्म काल की। नरनी सुपरनी उघेरनी वर शब्द करना या शब्द करते हुए गिरना। हवा के झोंके से बानी चार पात तम तरनी भगति नंदलाल की। पत्तों का शब्द करना भयवा शब्द सहित गिरना। उ०- गोपाल (शब्द०)। झरहरात वनपात, गिरत तरु, घरनि तराकि तराकि सुनाई। झरपल-सबा श्री [अनु०] १. झोंका। मनोर। 10-बंधु जल बरपत गिरिवर तर चांचे मन कैसे गिरि होत सहाई। कीए मधुप मदंष कीए पुरजन सुमोह्यो मन गंधी की सुगंध -सूर०,१०१५६४। झरपन सौ-देव (शब्द०)। २. वेग । तेजी। उ.-घेरि फरहराना-क्रि० स० १., भरझर शब्द सहित किसी चीज को, धेरि घहर घन पाए घोर ताप महा मास्त मकोरत झरस सों। विशेषतः पेड़ों के पत्तों को, गिराना। पेट की डास हिलाना। --कमलापति (पन्द०)।३.किसी चीज को गिरने से बचाने २. झटकना । झाड़ना। ॐ खिये खगाया हुमा सहारा । चाड 1 टेक । ४. पिक। चिल- मरहिल-संश पी.[देश॰] एक प्रकार की चिड़ियाँ। मन । चिलवन । परदा। उ०-(क) तासन की गिलम मरा-संज्ञा पुं० [हिं० झरना ] नष्ट होना । बेकार होना। गलीचा मखतुलन के झरप मुमाळ रहीं झूमि रंग द्वारी में :-- पद्माकर (शब्द॰) । (ख) माकै मुकी युवती ते झरोखन मरा-संशा पुं० [देश॰] एक प्रकार का धान, जो पानी भरे हुए सेतों में उत्पन्न होता है। अँडनि ते भर कर टारी।-रघुराज (सन्द०)। ५. दे० 'झड़प'। भारा--संवा खो• [0] झरना । स्रोत । सोता [को॰] । गरपनाtg-कि०म०मिन] १.झोंका देना। बौछार मारना। मराफर-त्रि०वि०मनु०] १. झरझर शब्द सहित । २. नगातार । उ०-वर्षत गिरि झरपत ब्रज ऊपर। सो जस जैह तेहपूरन बराबर । ३. वेग सहित। उक-श्री हरिदास के स्वामी सु पर।—सूर (श्चन्द०)। २. दे. 'झपना'-१॥ ३.दे. स्यामा कुंजबिहारी दोउ मिलि लरत झरामरि। हरिदास 'झड़पना-३11०-एते पर कबह जव मावत झरपत चरत (शब्द०)। घनेरो। सुर (शब्द०)। मेरापना-क्रि-म० [हि. झपट ] हमना करना । मपटना। मारपेटा-संश पुं० [अनु॰] दे॰ 'झपट। भरावोर-संज्ञा (०वि० [हिं०] दे० 'मलाचोर। झरफ-संशा खो. [ मनु.] चिलमन । परदा । झरप। मराहर -संश पुं० [सं० ज्वाला+घर ] सूर्य । भरवेरा-संज्ञा पुं० [हिं॰] दे॰ 'मड़वेरी'। झरि -सवा खो[हिं• झर] दे० 'मही'। 3.-दस दिसि रहे बान मरबेरी-संश स्री. [हिं०] दे० भड़वेरी' 18-महके कटहल, नम छाई । मानहु मघा मेघ झरिसाई:-सुलसी (शब्द०)। मुकुलित जामुन, जगल में झरबेरी भूसी।ग्राम्या, पु०३६। - मरिफ मा -संज्ञा पुं० [हिं० झरप] चिक । वित्तमन । परदा।। भरवेग-संासी० [हिं॰] दे॰ 'झड़वेरी'। . झरी-संज्ञा खो. हि झरना ]१. पानी का झरना। स्रोत । चश्मा। २. वह धन जो किसी हाट, बाजार या सद्री भादि मरर-संश पुं० [सं०] मार देनेवाला । स्पान झाड़नेवाला । में जाकर सौदा वेचनेवाले छोटे छोटे दुकानदारों विशेषतः विशेष-कैटिल्य ने लिखा है कि मार देनेवाले को पर कोई खोनचेवालों भौर कुंजड़ों मादि से प्रतिदिन किराए के रूप में पड़ी हुई चीज मिचती थी तो उसका भाग चंद्रगुप्त का राज्य वहाँ के जमींदार या ठोकेदार मादि को मिलता है। ३. दे. लेतो या भोर भाग उसको मिलता था। "झडी । २०--कुंकुम अगर मरगजा छिरकाहि मरहिं गुलाल मारवाना-क्रि० स० [हिं० मारना का प्रे० रूप] १. भारने का पनीर । नम प्रसुन झरि पुरी कोचाहरु भइ मनमावति काग दूसरे से कराना। दूसरे को मारने में प्रवृत्त करना। भौर-तुलसी (शब्द॰) । २.दे० 'झडवाना। मरुआ-संबा पुं० [देश॰] एक प्रकार की घास । पारसना -क्रि० प्र० [अनु०] १.० 'झुलसना'। २. झरोखा-संका प[सं० जाल+गवाक्ष भयवा मनु० झर झर (=वायु सूखना। मुरझाना। कुम्हलाना। बहने का शब्द)+गौख अपवा सं० बालगवास] [स्त्री० झरोखी] गरसना -क्रि० स०१.. "झुलसाना' । २. सुखाना । मुरझा दीवारों पादि में बनी हुई झंझरी। छोटी खिड़की या मोसा देना। --विषय विकार को जवास करस्यो करे।-प्रेम जिसे हवा और रोशनी मादि के लिये बनाते हैं। गवाक्षागौसा। धन०, भा० १ पृ.२०१६ -होर राणीमा रोखियों पर बैठीमा सो भी सुरणकर मारहरना -कि०म० [मन] झर झर शब्द करना। उ०-अजहू सम के मन पवन इस्थिर हो गए। -प्राण-पु.१५३ । वेति मुड पई दिसि ते उपजी काल भमिनि झर झरहरिसर मकर-संक. सं०1१. हहक नाम का सकड़ी का बाजा काल बल च्याल प्रसत है श्रीपति सरन परति किन फरहरि । जिसपर चमड़ा मदा होता है। २. कलियुग । ३. एक नव का -सुर., १३३१२। नाम । ४. हिरण्याक्ष के एक पुत्र का नाम । १. तोहे मादि मारहरा-नि[हिं० मझरा][वि. सी. झरहरी12. 'झझरा। का बना हुपा झरना जिससे कड़ाही में पकनेवाती चीज •-अकि झुकि झमि झमि मित भिख मेल भेत झरहरी बचाते हैं। मांझपैर में पहनने का झॉम या झांझर मापन में झमकि ममकि उठ। पाकर (बन्द०)। नाम का बहना।