पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१८७

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झमरक मलना मर्मरक-संच पुं० [] कलियुग। आमा देख री नंदलाल । —सूर (शब्द ग) मदन मोर के मग-संबा मोका तारा देवी का नाम । २. वेश्या । रही। चद की झलकनि निवरति तनजोति । नील कमल, मनि जलद मर्मरावती-संशा सौ. [सं०] १. गंगा नदी। २. कटसरेया का की उपमा कहे लघु मति होति।-तुलसीपु० २७८ । पौधा। मलका-समा पु० [सं० ज्वस (= जलना), प्रा. भख+हिं. का गरिका-सश खो-[ सं०] तारा देवी। (प्रत्य॰)] चलने या रगड़ लगने प्रादि के कारण शरीर में पड़ा हुमा छाला। उ०-झलका झलकत पायन्ह कैसे। पकड मर्मरो'-संश पुं० [ सं० झझरिन् ] थिय। कोस मोसफन जैसे 1-तुलसी (शब्द॰) । मर्मरी-संत्री.] माझ नामक बाजा। मालकाना-क्रि० स० [हिं० झलकना का सकर स्म] १ चमकाना। ममरीक-संशा पुं० [सं०] १. देश । २. शरीर । ३ चित्र। दमकाना। ससकाना। २ दरसाना! दिखलाना। कुछ मना-संशपुं० [हिं०] दे० 'झरना'। उ.-नदी, भर्ना, वृद्ध मामास देना। पौर पाकाश में, मुझको आपके साय अत्यंत सुख मिलता मलकावनी--वि० [हिं० झलकना] चमकानेवादी। दीव करने- पा:-श्रीनिवास ग्रं॰, पृ० ३९८ ! वाली। झनकानेवाली। उ०-सुरतरु लतान धार फल मर्प -संवा स्त्री० [मनु.] दे॰ 'झड़प। है फलित किषों, कामधेनु धारा सम नेह उपजावनी । कैषों फर्रा-संवा पुं० [ देश०] १. वया पक्षी। २ एक प्रकार की छोटी चितामनिन की माल उर सोभित, विसाल कठ में घरे हैं चिड़िया। जोति भवकावनी ।-पोद्दार अभि.प्र.,पृ. ३०५॥ मरया-संध पुं० [ देश०] बया नाम की चिड़िया। मलकी-संशा श्री० [हिं०] दे॰ 'झलक'। मल-संग्रा पुहि . भार, सं० झल (= ताप, चिलचिलाती झलकना-क्रि० म० [हिं० झलफना] दीप्त होना। झलकना। धूप)। मथवा सं० ज्वल्, प्रा० झल)] १ दाह । जलन । उ.-झलक्कत मुर चमक्कत सेल:-ह. रासो, पृ० १२ । पाँच । २. उग्र कामना । किसी विषय की उत्कट इच्छा। फलज्मला-सम स्त्री० [सं०] १ दूदों के गिरने का शब्द । वर्षा की 30-(क)जीव दिलंवा जीव सो पलम लक्ष्यो नहिं जाय। झड़ी से उत्पस पद । २. हाथी के कान की फटफटाहर (को०] साहब मिले न झन बुझे रहो बुझाय बुझाय।-कवीर (शब्द.)। (ख) झव बायें मल दाहिने झल ही में फलफल-सबा सी० [हिं० झलकना] चमक दमक । व्यवहार । मागे पीछे मल जले राखै सिरजनहार ।-कबीर न चले ने मिलकर मलमल-फि. वि० रह रहकर निकलनेवाली मामा के साथ। (शब्द०)। ३. काम की इच्छा। विषय या संभोग की जैसे, मलमल चमकना । कामना। ४. क्रोध ! गुस्सा । रिस । ५. समूह । उ०-पुनि मलमाला--वि० [मनु०] झलझल करनेवाली। चमचमाती हुई। पाए सरजू सरित तीर ।""कछु भापुन मष मघ गति चलंति। चमकनेवाली। उ०-तरवार बनी ज्यो झलझला |----पलटु, मल पतितन को करष फलति ।-केशव (शब्द०)। पृ.४५ मनक-संपाश्री. [सं० झल्लिका ( = चमक)] १. चमक। झलझलाना'-क्रि०अ० [अनु॰] चमकना । चमचमाना। उ.--- दमक । प्रकाथ। प्रमा। युति । मामा। उ०-मनि खंभन झलमलात रिस ज्वाल पवनसुत चई दिसि चाहिय ।-सूदन प्रतिदिन झलक छवि छसकि रहै भारी मांगने ।-तुलसी (शब्द०)। २.२० "झल्लाना। (शुन्द०)1२. भाकृति का माभास । प्रतिनिध। से,- मलमलाना-क्रि० स० चमकाना। चमचमाना। खाली एक झलक दिखलाकर चले गए। उ०—मकराकृत मलमलाइट-सच्चा सीमनु०] १ चमफ। दमक । २. झल्लाहट । कुंडल को झलक इवहूं मुज मूल में छाप परी री। पद्माकर - झलनाकि० स० [हिं० झलझल (= हिलना) से अनु.] १ किसी चीज को हिलाकर किसी दूसरी चीज पर हुवा लगाना या मलकदार-वि० [हिं० मलक+फा० दार ] घमकीला । चमकने- पहुंचाना । जैसे,—(क) जरा उन्हे पखा झल हो। (स) वै । वाला। उ०-छोटी छोटी झंगुली मन्नाभल मलकदार छोटी मक्खियां मल रहे हैं। २. हवा करने के लिये कोई चीज सी छुरी को लिए छोटे राज ढोटें हैं। -रघुराज (शब्द)। हिलाना । जैसे, पंखा झलना। मालकना-क्रि०म० [सं० झल्लिका ( - चमक)] १. चमकना। दमकना । 3.-झसका झलकत पायन्द कैसे। पंकज कोस संयो० कि०-देना। भोस कन जैसे। -तुलसी (शब्द०)। २. कुछ कुछ प्रकट ३. ढकेलना । ठेलना। धक्का देकर मागे बढ़ाना । होना। भाभास होना। जैसे,-उनकी प्राण की बातों से गलनारे-क्रि० म०१. किसी चीज के अगले भाग का घर उधर मसकता था कि वे कुछ नाराज हैं। 30-कुंडल लोल हिलना। उ०-फुलि रहे, अलि रहे, फैलि रहे, फनि रहे, कपोलनि झलकत मनु दरपन मैं मारी ।--सर०, झपि रहे, झलि रहे, अकि रहे झमि रहे। -पद्माकर (शब्द०) १०११३७। f२. शेखी बघारना । सँग हाँकना । मलकनि -संयो - हि.] दे॰ 'झलक' । उ०--(क) अवन मलना-क्रि-भ० [हिं० झालना का मक कम] १. दे० 'झालना। कुरत मकर मानो नैन मीन बिसाल । सलिल फलकति स्म २ दे० 'भेचना।