पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०

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जंघायंधु वह खाई जो पालकी के उठानेवाले कहारों के रास्ते में जंजार -संबा पुं० [हिं० जग+पा]. 'जान' उ -कहा पडती है। पड़ावै बावरे और सकल जबार ।-संत र०, पृ० १४३ । जवाबंध-सा पुं० [सं० वडाबन्धु ] एक ऋषि का नाम [को०] | जंजालg+-सा पुं० [हिं० अग+जास][ वि० अजामिया, जंघावल-सक्ष पुं० [सं० जङ्घावल ] दौड़ने की पाक्ति। जॉप की जजाली ] १ प्रपच । झमाट। बखेडा । २०-प्रमु ताकत [को०] । दीनवधु हरि, कारन रहित दयास । सुप्तसिदास सठ नाहि जंघामथानी-सका स्त्री॰ [हि. अघा+मपानी ] छिनाल स्त्री। भजु छाडि फपट जजास । -तुलसी (शब्द०)। ..बंधन । पुंश्चली । कुत्तटा। फेंसान। उलझन । उ.-(क) पाज्ञा ले चल्यो तुपति जपारसमा श्री.हिं० जघा+भार] यह फोदा जो जांघ में हो। वह उत्तर दिशा विशाल । करि तप विप्र जनम जब सीम्हों, विशेष--यह पाकृति में लया और फड़ा होता है और बहुत मिटयो जन्म जजाल ।--सूर० (शम्म.) () की दिनों में पकता है। इसमे भधिक पीड़ा और जलन होती है। कब न पीर घटी। दिन दिन हीन छीन नई काया, दुख जज़ाल जटी।—सूर (शब्द०)। संघारथ--सहा पुं० [सं० जहारथ] १, एक ऋषि का नाम । मुहा०--जजाल तोड़ना=बधन या फेसाव कोररमा। २ जघारथ नामक ऋषि के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । उ.--भव जजाल तोरि तर बन के पल्लव वय पिराचो। जघारा-सा पुं० [देश० प्रयवा सं० जज्ज (-लडना), या सं० जना —सूर (शब्द०)। जजाल में पड़ना या फैसना-कठिनता (=युद्ध)+हि भार (प्रत्य॰)] राजपूतों की एक जाति जो में पहना । संकट में पड़ना । उलझन में फंसना । बनी झगडालू होती है। उ०-तव बंधारो वीर पर स्वामि सु ३ पानी का भंवर । ४. एक प्रकार की बड़ी पलीतेवार या मागे पाइ।-पु. रा०,६१। २४००। जिसकी नाल बहुत लबी होती है। यह बहुत भारी होती है जघारिसमा पु० [सं० बडारि] विश्वामित्र के एक पुत्र पौर दूर तक मार करती है। 30-~सूरज सूरज गहि का नाम । लुट्टिय । तुपक तेग जजालन छुट्टिय ।-सूदन (सम.)। ५. जंघाल-संका पुं० [सं० जङ्घाल ]१ धावन । पावक । दृत । एक बडे मुंह की तोप। इसमें ककर परपर मार भरकर २ भावप्रकाश के अनुसार मृग की सामान्य जाति। फेंके जाते थे। यह बहुधा किले का घुस तोड़ने काम में विशेष-इस जाति के प्रतर्गत हरिण एण, कुरग, ऋष्य, माती पी। ६. बस जाल । पुषत, न्यकु, शवर, राजीय, मुडी प्रादि हैं। तामठे रंग के जंजालिया-वि० [हिं० जजाल+इया (प्रत्य॰)] १. जवान या हिरन को हरिण, कृष्णवर्ण को एण, कुछ ताम्र वर्ण लिए जंजाल रचनेवाला । बखेड़ा करनेवाला। उ.-बाहरे पर। कालेको कुरग, नीलवर्ण को ऋष्य, हरिण से कुछ छोटे तेरे सरीखा जालिया कोई जालिया भी निकर्मना ।- पद्रविदुयुक्त को पृष्त, बहुत से सींगोंवाले को मृग, न्यकु श्यामा०, पू.५१२. झगड़ालू । उपद्रवी । फसाबी। इत्यादि कहते हैं। जजालो'-वि० [हिं० अंजाल ] झगडालू । बखेडिया । फसादी। जंघाल-वि० वेग से दौड़नेवाला [को०)। जंजाली-संशा खी. [हिं० जजाल] वह रस्सी मोर पिरली जंघिल-वि० [सं० जखिल ] शीघ्रगामी। फुर्तीला। प्रजवी। । जिससे पाल पढ़ाते या गिराते हैं। तेजी से दौड़नेवाला (को०)। जंजीर-संज्ञा स्त्री॰ [फा० शीर ] [वि० जौरी] १ सकिन । जंजक-सा पुं० [सं० जजपूक ] मंद स्वर से अप करनेवाला सिकड़ी । कड़ियो की लड़ी। जैसे, लोहे की बजीर । उ.- भक्त । उ.-जजपूक गठरी सो बैठपो झुको फमर सन।- तुम सु छुड़ावहु मत कह, बहुरि अरहु जबीर।-पु. रा., प्रेमघन॰, भा० १, पृ० १६ । ६। १६२ । २. बेड़ी। जजबील-संज्ञा श्री.[म. जजबील ] सोंठ । सूसी अदरक । महा०-जजीर डालना पैर में बेड़ी डालना बांधना। बंदी शुठि [को०] । करना । पैर में जजीर पड़ना=(१) जजीर में पकड़ा जाना। जजर -वि० [सं० जर्जर] ० 'जजल'। पदी होना। (२) स्वच्छदता का अपहरण होना । बाधा पा जंजर सम्रा पुं० [फा. बाजीर ] शृंखला। जजीर। 80--- विवशता । 30-प्रीतम मसत पहार पर, हम पमुमा वीर। प्रम तो मिलना कठिन है, पाँव परी जजीर 1-(शर)। तबई लगि दिढ़ जजर जेरी । मोह लोह की पाइनि बेरी।- नद० प्र.पु. २७३ । ३. किवाड की कुंडी या सिकड़ी। जंजरिद -वि० [हिं० जं (- जनु)+#० जटित, हिजरित] मुहा०- जजीर बजाना-कुंडी सटलटामा ! बीर मामा- प्रथित सा । जड़ा हुभा सा। उ०-नयन उदय पुररिक प्रसन कुंग बद करना। अमरीय सुरागे । गुजहार जजरित तदित बद्दरि सु विराजै। जंजीरखाना-या पु० [फा. पोजीरखानहकाराMOTE -पु. रा०२। ५१. करताना (०] 1 अंजम -वि० [सं० पर्जर, प्रा० अज्जर ] पुराना मोर कमबोर। जजीरा-मा. [f. जंगीर ] एक प्रकार से Santa बेकाम । बीर्णहीर्ण। बचनेचौरकी दरहमातुम पड़ती