पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९०

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मपाशन झाँखना झपाशन--संज्ञा पुं० [सं०] शिशुमार नामक जलजंतु । सूस। मीत रनि की न झाई है।-देव (शब्द०)। ३.घोसा। छस। झषोदरी-सशास्त्री० [सं० ] व्यास की माता । मस्स्यगंधा । मुह०--झांई बताना = छल करना। धोखा देना। झपना-क्रि० स० [हिं॰] दे० "झसना' । यौ०-माई झप्पा- घोखा घड़ी। महनना'-क्रि० स० [मनु०] १ मन्नाना । झन्नाटे या सन्नाटे ४ प्रतिशब्द । प्रतिध्वनि । १०-कुहकि उठे बन मोर कंदरा में माना। २. ( रोएं का ) खड़ा होना। उ०माइन गहन गरजति झाई। चित धकृत मृग वृव षिया मनमय सरसाई।- लागी गावन मयूरमाला झहन झहन लागे रोम रोम छन नागरीदास (शब्द०)। ५ एक प्रकार के हलके काले धब्बे जो में। -यीपति (मान्द०) ३. झन झन शब्द करना। रक्तविकार से मनुष्यों के शरीर विशेषतः मुंह पर पड़ जाते हैं। मामाई-संशा श्री. भन बच्चो का एक खेल जिससे वे भाई भइनना--क्रि० स० दे० 'झहनाना' । माई कौवो की बात भाई फहते जाते पौर घूमते जाते हैं। म्हनाना-क्रि० स० [ भनु.] १ महनना का सकर्मक रूप । २. झनकार शब्द करना । मनकारना। ३०-गति गयंद कुच कुम मुह.-झाई माई होना = नजरो से गायब हो जाना। मध्य किंकिनी मनहु घट महनावै । —सूर (शब्द०)। हो जाना। झाँक-सज्ञा सी० [हिं० झांकना] झांकने की क्रिया या भाव । महरना -क्रि० स० [भनु.] १ झर झर शब्द करना। महने यौ०-ताक झांक = दे० 'ताक झांक'। फा सा शब्द करना । उ०-झहरि महरि मुकि झोनी कर लाये देव छहरि लहरि छोटी दनि छहरिया ।देव (शब्द०) मौकर-सा पुं० [ देरा०] दे० 'झाँख'। मा २ (पारीर मादि का) बहुत शिपिल पडना । ढीला हो जाना। झकिना-कि० म० [सं० चक्ष (चक्षण = देखना) या अधि। उ.-महरि झहरि परे पांसुरी लखाय देह विरह वसाय हाय प्रक्ष, अध्यक्ष, प्रा० भवझवख (माख के समाने)] १. प्रोट कैसे दूवरे भये ।-रघुनाथ (शब्द०)। के बगल मे से देखना। १०-(क) जंह तह उझकि झरोखा महरना-क्रि० स० झिडकन । मल्लाना। 30-सुनि सजनी में रही झॉफति बनक नगर की नारि। --सूर (शब्द०)। (ख) भकेली विरह बहेली इत गुरु जन झहरै। -सूर (शब्द०)। तुलसी मुदित मन जनक नगर जन झोकति झरोखे लागी शोभा रानी पावती । --तुलसी (शब्द०)। २. इधर उधर झुककर महराना--कि०म०[पनु.]१ शिथिल होकर झर झर शब्द के देखना। साथ या लखकाकर गिरना। ३०-(क) असुर ले तरु सों सोतीat-सा श्री.हि. झांकना] 1. झांकी। दर्शन। पछारयो गिरयो तक झहराइ । ताल सो तरु ताल लाग्यो उठ्यो उ.--झांकनी वै फर फॉकनी की सुने कानन बैन प्रनाकनी बन बहराइ । --सुर (शब्द॰) । (ख) मापु गए जमलार्जुन कीने । -देव (शब्द०)। २ कुमो (कहारों की परि.)। तरु तर, परसत पात उठे महराई। सूर०, १०॥ ३८३ । (ग) माफर--सा पुं० [प्रा. भैखर ] दे० 'मंखा। लपट झपट महराने, हहराने बात फहराने भट परथी प्रबल परावनो। -तुलसी पं०, पृ० १७१। २ मल्लाना। किट- झोकरी -वि० सी० [प्रा. मंखर (- शुष्क तरु ] झलसी हई। किटाना। खिजलाना। उ०-(क) एक मभिमान हृदय करि दुर्बल । सूखी हुई। उ०-उमड़ि समडिग रोवत मवीर बैठी एते पर झहरानी --सूर (शब्द॰) । (ख) नागरि इसति भए, मुख दुति पीरी परी विरह महा भरी। 'हरिचंद प्रेम हंसी उर छाया तापर अति महरानी। प्रधर कप रिस मोह माती मनहै गुलाची छकी, काम कर मौकरी सी दुति तन की मरोरी मन की मन गहरानी।-सूर (शब्द॰) । ३ हिलाना। करी-भारतेंदु मं०, मा०२, पृ० १७३। उ०-वालपी फिरावै बार बार महरावै, करें दुदियां सी, झाँका-सा पुं० [हिं० झांकना] १. रहठे का खींचा। जालीदार लंक पधिलाइ पागि पागिई।-तुलसी ग्र०, पृ० १७३। खांचा । २. झरोखा। उ०-सभा माझ द्रौपदि पति राखी झांकृत-समा पु० [सं० झाकृत) १ झरने मादि के गिरने या भुपुर पति पानिप कुल ताको। बसन गेट करि कोट विसं भर परन के बजने भा शब्द । झकार । २ पैर का एक गहना जिसमें न दोन्ही झांकी। -सूर०, १। ११३ । घुघरू लगे रहते हैं । भूपुर (को०)। झाँकी-संवा सो•[ हिं. झांकना ] १. दर्शन | भवलोकन । कोकने झाई-सधा श्री० [सं० छाया] १. परछाई । प्रतिबिंब । छाया। या देखने की क्रिया या भाव। माभा । झलक । 30--(क) झाँई न मिटन पाई पाए हरि कि०प्र०—करना ।-देना।-मिलना।--लेना ।--होना। पातुर है जम जान्यो गज ग्राह लए जात जल में। -सूर २ दृश्य । वह जो कुछ देखा जाय। उ०-कोटे समेटती, फूल (धन्द०)। (ख) बेसरि के मुकृता में झाई बरन बिराजत छौंटती झांकी।-साकेत, पृ० २१०। चारि। मानो सुर गुर शुक्र भीम शनि चमकत चद्र मझारि । क्रि०प्र०-देखना। --सूर (शब्द०)। (ग) कह सुग्रीव सुनहु रघुराई । ससि मह ३. वह जिसमें से झांका जाये। झरोखा । प्रकट भूमि की झाई। -तुलसी (शब्द०)। (क) मेरी भव झखि-सबा पुं० [देश॰] एक प्रकार का बड़ा जंगली हिरन । 10- वापा हरी राधा नागरि सोह। जा तन की झाई परे स्याम ठाढ़े ढिग बाध बिग बीते चितवत झाख पुग शाखामृग सब हरित दुति हो।--विहारी (शब्द०)।२ प्रधकार | अंधेरा। रीमिरीझि रहे हैं।-देव (शब्द०)। उ.-रेशमी सतत चाल लाल पट लपिठे महन भीतरे न शीत झाँखनाल-क्रि० म.[हि. झंखना] दे॰ 'झीखना' । उ०-