पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९१

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माखर मॉट (क) इद्री वश न्यारी परी सुख लूटति प्रालि । सूरदास सग झॉमन-सकसी.[ मनु०] कड़े की तरह का पर मैं पहनने का रहैं वेक भर झांखि!-सूर (शब्द॰) । (ख) एहि विधि एक प्रकार का गहना । पैजनी । पायल । राउ मनहि मन मोखा। देखि कुभांति कुमति मनु मोखा: विशेष- यह गहना चांदी का बनता है मौर इसमें नकाशी और तुलसी (शब्द०)। जाली बनी होती है। यह भीतर से पोला होता है और इसके मॉखर-सबा पुं० [प्रा. झखर; हि० झवा] १. 'झवार' 130- अंदर छरें पढ़े होते है जिनके कारण पैरों के उठाने मौर रखने झांखर जहाँ सुचाउहु पथा। हिलगि मकोय न फारह फंपा। मे 'झन झन' पाब्द होता है। कभी कभी लोग घोड़ो भोर --जायसी (पाब्द०)। २ भरहर को वे खूटियाँ जो फसल बैलों मादि को भी शोभा के लिये भौर झन मन शम्द होने काटने के बाद खेत में रह जाती हैं। के लिये पीतल या तावे की झांझन पहनाते हैं। मोगला-वि० देश०ढीला ढाला (कपड़ा)। 30-पहिर झांगले मार -संधा स्त्री० [अनु.] १. झांझन । पैंजनी । 10-1 पटा पाग सिर टेढो पौधे । घर मे तेल न लोन प्रीत चेरी सों बांहे सुंदरी वहरखा, चासू बुह स वचार । मनु हरि कटि यस साधे।-गिरधर (शब्द०)। मेखला, पग झांझर झरणकार !ढोला०,०४८१। २. दे० 'छलनी'। माँगा -संवा पु० [हिं॰] दे॰ 'झागा'। 10-पीत बसन पहिरे झॉमर -वि. १ पुराना। पर। छिन्न भिन्न । फूटा टूटा। सुठि झोगा। चक्षु चपल पलक बनु नागा। -विश्राम * (शब्द०)। २ छेदवाला । छिद्रयुक्त । उ--मान मनुरागे पिया मान देस माजन-सक्षा श्री[हिं० ] दे० 'झामन। गेला । पिया बिना पांजर झोझर भेखा।-विद्यापति, पृ. १७१। मॉम्-सा श्री० [सं० झल्लङ्ग या झनझन से पनु०] १. मजीर मामरा-वि० [सं० जर्जर] [वि० सी० झांझरी] पोला। जर्जर। की तरह के, पर उससे बहुत बड़े कासे के ढले हए तश्तरी के खोखला । उ०-मलूक कोटा झोझरा भीत परी महराय।- माकार के दो ऐसे गोलाकार टुकड़ो का जोड़ा जिसके बीच में मलूक , पू० ४०॥ कुख उमार होता है। भाख । उ०-(क) घटा घटि पखाउन मॉझरि ग्राउज झांग वेनुफ ताव !---तुलसीप्र०, पृ. २६५। (ख) -सह श्री० [हिं०] दे० 'मांझन'। 30-(क) सहस ताल मृदग झांझ इद्रिनि मिलि पीवा बेनु यजायो।-सूर०, कमल सिंहासन राजें। पनहर झाझरि मितही वा। १।२०५। ~-~परण. वानी, पृ० २६८। क्रि०प्र०-पीटना। -जाना । माँफरी-समा बी० दिश०] झोझ नामक पाजा। झालउ०- बजे झांझरी शंख नगारे। गए प्रेत सब देव पगारे।- विशेष-इमको उभार में एक शेव होता है जिसमें डोरी पिरोई रघुराज (शब्द०)।२. झोमन नामक पैर का गहना। ४०- रहती है। इसका व्यवहार एक ट्रफड़े से दूसरे टुकड़े पर पापात झाझरिया झनकेगी सरी तरकैगी तनी तनी तन को तन फरके पूजन प्रादि के समय घड़ियालों और शखो के साथ यों तारे।-देव (शब्द०)। ही पाने में, रामायण की चौपाइयों के गाने के समय राम- .. झॉमरी-वि० स्त्री० [सं० बर्जर] छिद्रों से भरी हुई। जिसमें बहुत लीला में प्रथवा ताशे भोर ढोल प्रादि के साथ ताल. देने में से छेद हो। उ०-(क) कबिरा नाव त झांझरी फूटा क्षेवना दोता है। हार । हबका हलका तरि गया बडे जिन सिर भार ।-कबीर २. क्रोध । गुस्सा। (शब्द०)। (ख) गहिरी नदिया नाव झाझरी, बोझा अधिक क्रि० प्र०-उतारवा -दाना!-निकालना। भई।-घरम०१०, पृ० २६ । ३. पालीपन । शरारत। 3.-रुक्यो सांकरे कृष मग करत झाँका' मझा ० [हिं० मारा फसल में बमनेवाला एक प्रकार काम करात । मद मंद मारत तुरंग बूंदन पावत पात।- का कोना। विहारी (शब्द०)। ४ किसी दुष्ट मनोविकार फा.मावेग। विशेष-यह बढ़ी हुई फसल पचों को बीच बीच में खाकर ५ सूखा हुपा कुपों या तालाव। भोग की इच्छा । विषय बिल्कुल झंझरा कर देता है। यह छोटा घड़ा कई माकार की कामना । ७.३० झांझर। पौर प्रकार का होता है और पहपा उमाफू पा मुखी मॉम-वि० सं० जर्जर ] षो पाढ़ा पा नवरा हो । मामूली । (मुली) पत्रों पर पाया जाता है। हलका (मांग पादिका नशा)। २ घो पौर चीनी के साथ भुनी हुई पांग की फकी। पेय झॉझड़ी@ - श्री. [हिं० झाझ+को (पश्य.)] 1 ई० वानरे का पीरा। 'झांझ२ दे० 'झांझन'। झाझा-सचा पु० [मनु०] दे० 'झोझ'२ झमठ । बखेड़ा। मॉमण-एका पुं० [देश०] मारवाह में खुशी का एक गीत । उ०- मोमिया-सा पुं० [हिं० झांझ+इया (प्ररप०)] झांझपणानेवाप्ता सुदर पछि विर्ष सुर को धर दूहत हैं पस झांझरण गावै । __ मनुष्य । पाजेवालों में से यह जो झांझ घजाता हो। -सुंदर. में, भा॰ २, पृ. ४५६ । झॉट-पी० [सं० जट, हि. झा (बाल)] १ पुरुष पा स्त्री ४-२३ के समय राम. मॉमारी -(क) कवि स र भार-कार