पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९२

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माँटा १सार मासा का मुद्रिय पर के पास । उपस्य पर के बाल । पशम । मामा-वि• [ देशी या सं० दग्ध ] १.दीप्त । दग्ध। २ अनुज्वल । शष्प । उ.-मावरू की मास में एक गांठ है। पावरू सब झाँ समा सी० [हिं०] दे॰ 'झा। उ.-चंद्रकांति मनि शायरो की झांट है।-कविता कौ०, भा.४, पृ०१०। माझ जिमि, परति पद की झाय।-नद००, पृ. १३१। महा०-झाँठ उखाडना=(१) विलकुल व्यर्थ समय नष्ट करना। माय माय-पक्ष श्री० [अनु०] १ किसी स्थार को वह स्थिति को कुछ भी काम न करना । (२) कुछ भी हानि या रुष्ट न पहुंचा सन्नाटे या सुनेपरक कारण होती है। २.३० 'झाँव झाद। सकना । इतनी हानि भी न पहुँचा सकना जितनी एक झोट र माँव झॉव-समा श्री० [मनु०] १ शोर गुल । २ रभ ढग । भाव उखा पाने से हो सकती है। झांट जल बामा या रास हो ताव । उ.--बनिय झांव झाव दिखलाने के लिये । जाना=किसी को पभिमान प्रादि की बातें करते देखकर बहुत ---प्रेमघन०, मा. २, पृ. ४३९। बुरा मालूम होना। क्रि० प्र०करना1 --शिखाना।-होना।। विशेष-इस मुहावरे का व्यवहार प्रधिमान करनेवाले के प्रति भावना-क्रि० सं० [हिं० झावा ] झवि से रगड़कर (हाथ पर बहुत प्रषिक उपेक्षा दिखलाने के लिये किया जाता है। पादि) घोना । उ०-हो गई भेंट भई न सहेट मैं ताउँ खाइव २ बहुत तुच्छ वस्तु । बहुत छोटी या निकम्मी पौष । मो मन छाययो। कालिंदी के तट झवित पाय हो पायो वहाँ महा०-झार बराबर- (१) बहुत छोटा। (२) प्रत्यंत तुच्छ । बखि खे सुमायपो ।-प्रतापसिंह सवाई (प.)। झाँट की मदुल्ली - प्रत्यत तुच्छ (पवार्थ या मनुष्य)। मॉपर-तबा बी० [हिं० राबर] वह नीधी भूमि जिसमें वर्षाकाव झाँटा-सहा पु० [देश०] १. झझट । २ झाडू। ३ झापड़। __ मे पल भर लाता है और जिसमें मोटा मन्न बमता है। पप्पड़ । मोटि -सशास्त्री० [हिं• झांस] दे॰ 'झाँट । उ०-एकोह पापुदि विशेष-ऐसी भूमि धान के लिये बहुत उपयुक्त होती है। भयो द्वितीया दीन्हो काटि। एकोह कासों कहे महापुरुष को झॉवर ।-वि० [सं० श्यामल] [वि० खो० झावरी] १. झावे के रंप का । माठि ।---कबीर (शब्द०)। कुछ कुछ कारी रग का।२ मधिन । १०-साधी हों रावरे भाँती@t-संशा स्त्री॰ [देश०] देह । शरीर । उ०-दादू झांती पाप सौ झावरे लगें तमाल ।-(शन्द०)। ३. मुरझाया हमा। पसु पिरी प्रदरि सो माहे। होणी पाणे बिच मैं मिहर कुम्हलाया हुमा। ४. रिसमव । सुस्त । 1.-निसि न न लाहे ।-दादू• बानी, पृ० १९३।। नीद पावै दिवस न मोषन पावै चितवत मग भई दृष्टि झावरी। कॉप-सका स्त्री० [हिं० झांपना] वह जिससे कोई चीज ढकी जाय -सुर (धन्द०)। टोकरा, मावा मादि। २.पड़ी हुई चीजें निकालने की एक कालने की एक माचरा मnि ..... Trea -वि० [हिं० झावर] कुछ कुछ काले रण का । उ.- प्रकार की कख । ३. नीद । झपकी । ४ पर्दा । चिक । उ.- बलिहारी प्रब क्यो कियौ सैन सांवरे यम । नहि कछु गोरे मग झकि झकि झूमि झमि झिक्ष मिल झेल झेल झरहरी झोपन ये भए झावरे रग -१० सप्तक, पृ० २४६ । मे झमक झमकि उठे। पद्माकर (शब्द०)।५ निकासा। मावशी-समा श्री• [हिं० धांव (छाया)] १. झलक । २ मांस मस्तूल का झुकाव (ल.)। ६ मज का बना पिटारा। की कलखी। कनखो। झापा। यौ०-झावधीबाडा झॉपर--सा पुं० [सं० कम्प] सघज कूप । कि०प्र०-देना= दे० 'झप' का मुहा० प देना। महा०-झावली देना = (१) पांख से इशारा करना। (२) "बातों से फंसाना । नुलावा देना। झापना'-क्रि० स० [सं० उज्झम्पब, हि० झापना] १. ढोकना। पावरण गलना। प्रोट में करना। भार में करना । 80- झॉवा-संच पु० [सं० झामक बसी हई ट। वह इंट वो जमकर काली हो गई हो। इससे रगड़कर पस, शस्त्र पादि पीजों जया गगन पर पटल निहारी।मांपेउ भानु कहहिं कुविचारी। को, विशेषत परों की मैल छुड़ाते हैं। उ०-झांको वेवै -तुलसी (शब्द०)।२ पकहकर दवा लेना। छोप लेना। जोग तेग को मले बनाई।-पलटू०,पु.२ झॉपना-फि.प. सपाना । शरमाना । झपना। झाँसना-क्रि० स० [हिं. झांसा] १. ठगना । धोखा देना। झॉसा झापा- पुं० [हिं० झापना] 1. ढाने का बांस धादिका वना देना । २ फिसी स्त्री को म्यभिचार में प्रवृत्त करना। सी को हपा बड़ा टोकरा | २ मज का बना हुमा पिटारा। झांसना। मापो-सबा श्री [हिं० झापना] १.कने को टोकरी। २ गूज माँसा-सबा पुं० [सं०पध्यास (-मिथ्या शास), प्रा० सम्झास] ___ की बनी हुई पिटारी, जिसमे कभी कभी चमडा भी मढ़ा होता मपना काम साधने के लिये किसी को बहकाने की क्रिया। _है। ३ झपकी । नींद। घ। धोखा । दमबुत्ता। छल । १०-परे मन उसे क्या है दुनियाँ मॉपी--समा स्त्री० [देरा०] १ घोबिन चिड़िया। सजन पक्षी। २. का झाँमा। लिया हात मे भीक का जिसने कोसा।- छिनाल स्त्री। पुंश्चली। दनिखनी०, पृ० २५७ । यौ०-झापोक-एक गाली। क्रि० प्र०-वेना । उ०-प्रवासीलल्सी पत्तो करके कहाँ से गई