पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९३

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झाँसिया ५५३६ माटो कैसा झांसा दे गई।फिसाना, भा० ३, पृ. ४१०। भाग-सज्ञा पुं० [हिं० गाज] पानी मादि का फैन । गाज । फेन । -बताना । उ०—रुपया पैसा अपने पास रक्खड, यारन के दुर क्रि०प्र०-उठना । -घटना।-छोड़ना। --निकमना ।-- से मांसा बतायड-भारतेंदु म., भा०१, पु. ३३५. फेकना। यो०--मौसा पट्टी = धोखा घड़ी। मागढ़ -सका पुं० [हिं०] दे० 'झगया। ३.-सहज ही सहज मुहा०-झांसे में प्राना-धोखे में माना । उ०-यहाँ बड़े बड़ों पग धारा जब मामम को दसौ परफार झागड बजाई।-- की प्राखें देखी हैं। प्रापले झांसे में कोई उनेला माए तो पाए परण. बानी, पृ०५५। हमपर चकमा न चलेगा।-फिसाना०, भा० १,५०५ वि०प्र०-बजाना । मासिया-सया पु. [हिं० झांसा+इया (प्रत्य॰)] झांसा देनेवाला। मागना" -क्रि० प्र० [हिं० झाग ] झाग उत्पन्न होना। फेन धोखेबाजा निकलना। झाँसी-सक्ष पुं० [देश॰] १. उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध नगर जही मागनारे-क्रि० स० झाग उत्पन्न करना । फेन निकालना। की रानी लक्ष्मीबाई ने, जो झांसी की रानी नाम से प्रसिद्ध हैं, माज -सक्षा पुं० [प. महाज] २० 'जहाज'। 30-किया था सन् १९५७ में स्वतंत्रता संग्राम (गदर) के अवसर पर मप्रेजों बुदा उसे सरफराज, जो थे सातों दरिया उपर उसके से जमकर लोहा लिया और युद्धक्षेत्र में लड़ती हई मारी झाज !-दक्खिनी०, पृ००७ । गई पौ। २ एक प्रकार का गुवरेला जो दाल पौर तमाखू " माज-सम मुं० [2] महीन कागज। बैलुन । गुब्बारा । 10-बम्बा की फसल को हानि पहुंचाता है। गिरा गिरा को तोपों चबा बला को। भाजी में भर को ग्यास झासू-सा पं० [हिं० झांसा] झांसा देनेवाला । धोखेबाज । हवा में तू उड़ा को।-दक्खिनी०, पृ० २९६ । मा-सा पुं० [सं० उपाध्याय, पा० उपज्झाय प्रा० उवज्झय, मान-सहा श्री.हि.1दे० 'झोझ'। उवज्झाय, उन्झ, उज्झाय, उज्मामो, मोजमाय, हि. मोझा झाम -सा [अ० जहाज, दक्खिनी, माज] दे 'जहाज' । प्रयवा से० ध्या (= ध्यान, चिंतन]; प्रा० झा] मैथिली झामन -सबा खी० [हिं०] दे॰ 'झांझन'। उ०-बाजे शल या गुजरावा ब्राह्मणों को एक उपाधि । बीन स्वर सोई। मामन केरी बाजन होई 1-कबीर सा०, माई-संवा मी० [हिं०] दे॰ 'झाई । 30-मनि दर्पन सम प्रवनि पृ० ५८४। रमरि वापर छबि देही। दियुरति कुंडल मलक तिलक झुकि झाई देही ।-नंदन., पृ. ३२ । मामी -वि० [सं० वष, प्रा. दाम, दाम राज. झाझ ] १. दग्ध करनेवाली । जलानेवाली। इतनी अधिक शीसस माई-संशा खी० [हिं०] ६० 'झाई। जिससे जलने का भाव प्रतीत हो। उ०-मति घण कनिगि भाऊ-सबा पुं० [सं० झावुक] एक प्रकार का छोटा भाई जो दक्षिणी मावियां, झाझी रिठि झवाइ। बग ही भला त बप्पड़ा, पशिया में नदियों के किनारे रेतीले मैदानों में अधिकता से धरणि न मुक्का पाइ।-ढोला०, दु० २५७ । होता है। पिघुल । मफल । बहुप्रथि। माट'-सका पुं० [सं०] १ कुंज । निकुज। २. झाड़ी। ३. व्रण विशेष—यह झाड़ बहुत जल्दी जल्दी भौर खूब फैलता है। का प्रक्षालन । घाव को धोना। इसकी पत्तियां सरो की पत्तियों से मिलती जुलती होती है पौर गरमी के मन में इसमें बहुत अधिकता से छोटे छोटे माटर-सक्षा पुं० [ देश० ] वस्त्रों का प्रहार। उ०—पड झाट पाठ क इस गुलाबी फूल लगते हैं। बहुत कही सरदी मे यह झाड छल राज पाट, दिल्लीस जले दल बले दाट। --रा. रू०, नहीं रह सकता। कुछ देशों में इससे एक प्रकार का रण पु०७४। निकाला जाता है मौर इसकी पत्तियो प्रादि का व्यवहार माटकपट-सन्ना पुं० [सं० थाटक पट] एक प्रकार की ताजीम पोषयों में किया जाता है। इसमें से एक प्रकार का क्षार भी जो राजपूताने के राजदरबारों में अधिक प्रतिष्ठित सरदारों निकलता है। इसकी टहनियो से ठोकरिया और रस्सियों को मिला करती थी। मावि बचती है पौर सुखी लकड़ी चलाने के काम में माती मोट'-समा यु० [सं०] १ एक प्रकार का लोध । गोलोढ । घटा- है। कहीं कहीं रेगिस्तानों में यह झाड बहुत बढ़कर पेड़ का पटलि । २. मोरवा नामक वृक्ष । रूप भी धारण कर लेता है। विशेष-यह सफेद और काला होने के कारण दो प्रकार का माक -सबा पु० प्रा० मक] पचपात । मनिपात । उ०-(१) होता है। पाक की भांति इसमें से भी दूध निकलता है। बह बह एक कैवाका पजे विषम मावष झाका-पू० इसके पत्ते बड़े बड़े होते हैं और फल पटियों की भांति रा०, १६३१ लटकते हैं। भाकर--सस पुं० [देशी झंखर] कटीली झाड़ियों मोर पोषों का माटल -वि० [?] पाहत । स्त। 10-झटक झाटल घमूह खाए। उ.-साघो एक बच माकर झउमा। खावा छोडल ठाम । फएल महासरु तर बिसराम। -विद्यापति, वितिर तेहि माह मुलाने सान वुझावत कोमा :--सं० दरिया, पु०१२५॥ मादा-सदा स्त्री॰ [सं०] १. जूही। २.सुई पावला ।