पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१९७

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मिगिनी' झालड़ा बी• [सं० झल्सरी ] १ घडियाल जो पूजा मादिर भावरी पाजे जग मग जोति प्रवमि पुर छाये।--रामानंद, समय बजाया जाता है। २ दे० 'झालर । पुं०७। झालना -क्रि० स० हि? 1 १.घातको धनी हुई वस्तुओं में माला-संह पुं० [ देश०] १. राजपूतों की एक जाति जो गुजरात टांका देकर जोड़ सगाना। २. पीने की चीजों को बोतल पौर मारवाड़ में पाई जाती है। २. सितार बजाने में गत अंत में दूत गति से बाज पोर चिकारी के बातों का झाड़ा मादि में भरकर ठंडा करने के लिये वरफ या सोडे में रखना। बजाना।३ बकझक । झाझा। संयो०क्रि०देना। झाला -सहा खो- [सं० ज्वाला, प्रा० काला ] दाह । ताप । भालना -क्रि० स०सं० वेल, प्रा. भैल; हि० झेलना] जलन होस । तपन तक, जिव उठत झाला, कठिन दुख प्रहस करवा । धारण करना । उ०-जिरिए दीहे तिल्ली मब को सहे। संतवानी०, भा०२, पृ०१५। विश, हिरणी झालइ गाभा तह दिहारी गोरडी पड़तट कान पाथ। - डोला., दु. २८२१२ कबूल करना। में ता। झालि-समाधी० [हिं० मर] पानी की झड़ी मास । 30- स्वीकार करना । 30-केत झाली पाकरी, टूण इजाका झालि परे दिप प्रयए पंतर परि यह साझा बहुत रसिक के दीष।-रा०, पृ. १२६ । लागते वेश्या रहिगाम --कबीर (शब्द.)। मालर--संवा पी.[सं० मल्वरी] १. किसी चीज के किनारे पर क्रि० प्र०-छावा ।-पड़ना। योमालिये बनाया, लगाया या का हा वह हाधिया पो झालि- बी. [सं०] एक प्रकार की कांपी जो कन्चे पाय बरकता रहता है। को पीसकर उसमें राई, ममक और सुनी हींग मिलाकर बनाई जाती है। मारी। बिशेष-इसकी चौड़ाई प्राय कम प्रा करती है और उसमे सुंदरता के लिये कुछ बेल बूटे मादि बने रहते हैं । मुस्थत माय झाव-सा खो [ मनु०] १ बकवाद । बकबक । २ इज्यत झालर कपड़े में ही होती है, पर दूसरी चीजों में भी शोभा तकरार। के लिये झालर पाकार की कोई चीज बना या लगा लेते क्रि० प्र०-करना।-मचाना। है। वैसे, गद्दी या तकिये की झालर, पखे की भाबर। भावरि -सहा पुं० [हिं. अमर ] दे० 'झूमर' १०-कदत गोल २ झासर माकार को या किनारे पर लटकती होई की गोल खेल खेलन झावरि हित ।-प्रेमघन०, पा० पृ०३३ चौड।३ सितारा । छोर। -(व.)। ४. झाझा झाल। भावना-फि० - [हिं० झावों से नाम.] झौवें से रगडकर उ.-(क) मुन्न सिखर पर झालर मालकै परसै घमी घोना । मैल साफ करता। 30-नायन न्हवायके गुसायनिक रस बुंद धुमा।-कबीर श०, भा०३, पु.१०। (ख) धुरत पाय भाष, उझकि उझकि उठेवा कर लसन ते ।-नट, निस्सान सह गैव की झालरा मैद के घट का नाद पावे।--- पु०७४। कबीर पा., पृ.८ । ५ घड़ियाल जो पूषा मादि के समय मावर-मक्ष पु० [देश॰] दे॰ 'झोवर। बजाया जाता है। 30-घटे क्रिया वाभण, मिटे झालर भावु, भावुक-मुना पु० [सं०] दे० 'झा । परसाँदा । ईन प्रजा उपजे, निरक्ष दुर रीत निसादां!-रा० झिगा-सक स्त्री० [सं० झिङ्गाक] तरोई। तोरी। तुरई। । .०,१०२० मिंगनसहा पु. [ देरा०] १ एक प्रकार का पेड़ जिसको पसी से लाल मालर -सबा पु० [ देश०१ ] एक प्रकार का पकवान जिसे झसरा रग बनता है। २. सारस्वत बाह्मणों की एक पाति। भी कहते है। उ.-भालर माउ पाए पोई। देखत उजर पाग किंगरि बस घोई-पायसी (चन्द०)। -सक० दे० प्रा. झिगिर]। उ०- झिगरि प्रसर पावस निगाष ।-प. रा०,11 ४३४। झालरदार-वि० [हि. भावर+दार प्रत्य.] जिसमें कालर भिंगा- विदेश? झिगिर झिग्गर] झींगुर समान । मगी हो । झींगुर की ध्वनि सा। उ.-पचहब झिंगा पन्य सुनायो।- मालरना-कि.प.[हि.] दे. 'मलराना' 13.-नेहन भरसी कबीर २०, था.१,०१०। विरह झर नेह लता कुँपिलाति । निति निति होति हरी हरी । मिंगाक-सवा पु० [सं० झिङ्गाक] वोरई। तरोई। सरी भालरवि जाति-विहारी (धन्द०)। मिगिनी'-सा मी० [सं० मिङ्गिनी] एक प्रकार का जगसी वृक्ष मालरा -सका पुं० [हिं० झालर] एक प्रकार का रुपहला हार। जो बहुत ऊँचा होता है। इसके पत्ते महय के समान मौर हमेन। शाखापों में दोनों पोर लगते हैं। फूल सफेव भौर फल मेर झालरा-सदा पुं० [हिं० ताल ] चौड़ा कुभो । बावली। कुछ। समान होते हैं। मालरिसमा श्री० [हिं० झालर] वदनवार । लटकते हुए पर्या-झिगी। झिगिनी । झिगिनी। प्रमोदिनी। सनिर्यास। मोती प्रादि की पक्ति 130-कना कलस परि मंगल गायो, २ प्रकाश । ज्योति । घमक । लुक (को०)। मोतिपन झासरि लाव हो।-धरम, पृ०४९। मिगिनी -सक्ष खी० [देश॰] क्षुद्र कीटविशेष। खद्योत । मालरी-सखी० [सं० झल्लरी] दे० 'झाल'130-~-घंटा ताल सुगन। उ०-चमकत सार सनाह पर, हय गय नर भर