पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०१

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मीझो तो उखया, ०] प्रकाथ। दीप्ति (को०)। ५. उबटन, मंगराग मादिरीर पर विशेष-इस मछली के अगले भाग में छाती के नीचे बहुत पतले मलने से गिरनेवाली मैल (को०)। ६. रग मादि लगाने में पतले और लवे माठ पैर होते हैं। इसीलिये प्राणिशास्त्रज्ञ प्रयुक्त वस्ल (को०)। इसे केकड़े मादि के प्रतर्गत मानते हैं। पाठ पैरों के अतिरिक्त मिल्ली '-सका पु० [सं०] १ कोंगुर । २. चर्मपत्र (को०)। ३. एक इसके पो बहुत लबे धारदार उक भी होते हैं। इसकी छोटी वाद्य (को०)1४. दीए की वत्ती (को०)। ५. दे० 'झिल्लिका'। पड़ी अनेक बातियां होती हैं और यह सवाई में चार प्रगुल झिल्ली-सहा स्त्री॰ [सं० चैल अथवा से० झिल्लिका (= धमकदार से प्राय. एक हाय तक होती है। इसका सिर और मुह मोटा पारदर्शी पतला मावरण) या भ० जिल्द (=प्रावरण) मपवा होता है और दुम की तरफ इसकी मोटाई बराबर कम होती सं० झुट] १. किसी चीज की ऐसी पतली तह जिसके ऊपर की जाती है। यह मछली मपना शरीर इस प्रकार झुका सकती चीज दिखाई पड़े। मैसे, चमडे की मिल्ली। २. बहुत बारीक है कि सिर के साथ इसकी दुम लग जाती है। इसके सिर छिलका । ३. माख का जाला । पर उंगलियों के भाकार के दो छोटे छोटे मग होते हैं जिनके मिल्लोवि० स्त्री० बहुत पतला। बहुत बारीक । सिरों पर पाखें होती है। इन माखो से बिना पुढे यह चारों मिल्खीक-सा पुं० [सं.] झींगुर । मोर देख सकती है। यह अपने भड़े सदा अपने पेट के अगले मिल्लीका-सा श्री. [सं०] १. झोंगुर 1 झिल्ली। २. सूर्य को दीप्ति भाग में छाती पर ही रखती है। इसके शरीर के पिछले पाये या प्रकाश । ३. उबटन भादि का मैल । झिल्ली [को०] । भाग पर बहुत कड़े छिलके होते हैं जो समय समय पर माप- मिल्लीदार-वि० [हिं० झिल्ली+फा०दार] जिसके ऊपर किसी से भाप सांप को केंचुली की तरह उतर जाते हैं। छिलके बोर की बहुत पतली तह लगी हो। जिसपर झिल्ली हो। उतर जाने पर कुछ समय तक इसका शरीर बहुत कोमल मीका-सहा ई० [२०] दे॰ 'झोका'। रहता है पर फिर ज्यों का त्यों हो जाता है। इसका मास क्रि० प्र०-लेना!--डालना। खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है। बहुधा मास के लिये यह सुखाकर भी रखी जाती है। माकना-कि०म० [प्रा.शख] दे० 'झीखना'। 30-तुम्हें हर २ एक प्रकार का पान जो प्रगहन में तैयार होता है। इसका समय झींकते रहना पडता है।-सुसवा, पृ० ७८ । चावल बहुत दिनो तक रह सकता है। ३. एक प्रकार का माकना -क्रि० स० [देश०] फेंकना । पटकना। कीड़ा को कपास की फसल को हानि पहुंचाता है। झाँका-सबा पुं० [देश॰] १. उतना मन्न जितना एक बार पीसने के माँगुर-सबा पुं० [ मनु० मी+कर] एक प्रसिद्ध छोटा कीड़ा। लिये चक्की मे डाला जाता है। २. सीका । छोका। धुरघुरा । जजोरा । झिल्ली। मोखा-संवा सो [प्रा० शख] झींचने की क्रिया या भाव । खीज । विशेष—इसकी छोटी बढी अनेक जातियां होती हैं। यह सफेव, माखना-क्रि० स० [प्रा० शख, हिंखोजना] १. किसी अनिवार्य काला और भूरा कई रंगों का होता है। इसकी छह टाँगे पौर मनिष्ट के कारण दुखी होकर बहुत पछताना और कुढ़ना। दो बहुत बड़ी मूछ होती है। यह प्राय मंधेरे घरों में पाया खोजना । २. दुखडा रोना । अपनी विपत्ति का हाल सुनाना । पाता है तथा खेतों और मैवानों में भी होता है। खेतों में यह उ०-खाट पड़े नर भीखन लागे, निकसि प्रान गयो चोरी कोमल पत्तों मादि को काट मलता है। इसकी मावाज बहुत सी।-कबीर सा० स०, मा०२, पृ०५। तेज झी भी होती है और प्राय. बरसात में अधिकता से सुनाई माखना-सपा पुं० १. झीखने की क्रिया या भाव । २ दुख का देती है । नीच जाति के लोग इसका मांस भी खाते हैं। वर्णन । दुम्खड़ा। मॉगट-सा पुं० दिश०] पतवार थामनेवाला । मल्लाह । कर्णधार । मीझड़ा-सबा पुं० [देश॰] ३० छिछड़ा'। उ०—जैसे चील भीमड़े -(लस०)। पर छापा मारें।-शराबी, पृ.७३ । माँगन---सा पु० टेरा०] मझोले पाकार का एक प्रकार का पक्ष भीमना-कि०म० [अनु॰] झुंझलान।। खिजलाना। जिसका तना मोटा होता है और जिसमें हालिया अपेक्षाकृत झीमो-सबा पुं० [देश०] १ एक रस्म । झिझिया। बहुत कम होती है। विशेष-इस रस्म में पाश्विन शुक्ल चतुर्दशी को मिट्टी की एक विशेष-यह सारे उत्तरी भारत, पासाम, बरमा मौर लका में कच्ची हाड़ी में बहुत से छेद करके उसके बीच में एक दीया पाया जाता है। इसमें से पीलापन लिए सफेद रंग का एक बालकर रखते हैं। इसे कुमारी कन्याएं हाप मे लेकर अपने प्रकार का गोद निकलता है जिसका व्यवहार छोटों की छपाई सबंधियों के घर जाती है और उस दीपक का तेल उनके सिर और भोषधि के रूप में होता है। इसकी छाल से टस्सर रंगा में लगाती हैं और वे लोग उन्हें कुछ देते हैं। उसी द्रव्य से के जाता है और चमडा सिझाया जाता है। इसकी पत्तियां चारे सामग्री मेंगाफर पूर्णिमा के दिन पूजन करती हैं पौर प्रापस के काम में माती है और होर की लकड़ी से कई तरह के मे प्रसाद बांटती हैं। लोगों का यह भी विश्वास है कि इसका सामान बनते हैं। तेल लगाने से सेंहमा रोग नहीं होता अपवा अच्छा हो झींगा--सहा पु० [सं० चिङ्गट] १. एक प्रकार की मछली जो प्राय. जाता है। सारे भारत की नदियों मोर जलाशयों मादि में पाई जाती २. मिट्टी की वह कच्ची हाड़ी जिसमें येव करके इस काम है। मावा। चिये दीपा रखते हैं।