पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०२

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मीटना अँगरा मीटना-कि.अ. [देश०] दे० 'झोकना'। मोल-सप्मा श्री० [सं० क्षीर ( जल)] १ वह बहुत बडा प्राकृतिक झीपना-क्रि० म० [देशी कप] १ . 'झपना' । २. 'ढपना'। जलाशय जो चारों मोर जमीन से घिरा हो । भीमना-कि०म० [हिं० झूमना] दे० 'झमना'। 80-मानो झीम विशेष-झीलें बहुत बड़े मैदानो मे होती हैं और प्राय इनकी रहे है तर भी मद पवन के झोको से।-पचवटी, पृ०५॥ सवाई मौर चौडाई सैकड़ों मील तक पहुँच जाती है। बहुत सी मीवर --संज्ञा पुं० [सं० षीवर] दे० 'घीवर'। उ०--उज्जल उदक झीलें ऐसी होती हैं जिनका सोता उन्ही के तल में होता है मौर धुवायो मोयण, लंघे पार सरिता मृदु लोयण । प्रभु कीवर जिनमें न तो कही बाहर से पानी पाता है मोर न किसी मोर कोषो भवपार ।-रघु० रू०, पृ० ११० । से निकलता है। ऐसी झीलों के पानी का निकास बहुधा माप कि रूप में होता है। कुछ झीखें ऐसी भी होती हैं जिनमें नदियाँ माँसा-संशा ० [हिं० झीसी] दे० 'झीसी'। पाकर गिरती है और कुछ झोलो में से नदियो निकलती भी मीसी-सश बी (मनु० या हिं० झीना (-बहुत महीन)] फुहार। हैं। कभी कमी झील का सवष नदीमादि के द्वारा समुद्र से छोटी छोटी वू दो की वर्षा । वर्षा की बहुत महीन बूदें। भी होता है । अमेरिका के संयुक्त राज्यो मे कई ऐसी भोले हैं जो क्रि० प्र०--पडना। पापस में नदियों द्वारा सब एक दूसरे से सबद्ध हैं। झोले खारे मीफ'--सा पुं० [हिं॰] दे॰ 'झोंका' । उ०-फाम कोष मद लोभ पानी की भी होती हैं भोर मोठे पानी फी भी। चक्की के पीसनहारे । तिरगुन गरे भोक पकरि के सवै २ तालाबो मादि से बड़ा कोई प्राकृतिक या बनावटी जलाशय । निकारे।-पलटू०, पृ. ६४।। बहुत बढा तालाब तासर । मी -कि० वि० [हिं०] झटके से । शीघ्रता से । ३०-कावाड़ी झीलणा+-क्रि० स० [सं० स्ना, प्रा. भिल्ल ] स्नान करना । नित काटता, झीक कुहाड़ा झाड। -चौकी० प्र०, मा० १, बहाना। उ०-ढोला हूँ तुझ बाहिरी, भील गइय तलाइ। पृ० ३२ । उजल काला नाग जिउँ लहिरी ले ले खाइ ।-ढोला०, मीका-सक्षा पुं० [सं० शिकव ] रस्सी का लटकता हुमा जालदार पु० ३६३ । फंदा जिसपर बिल्ली पादि के हर से दुष या खाने की दूसरी मोलम-खया श्री. हि झिलम ] दे० 'झिलम'। 30--सौगि वस्तुएं रखते हैं। छोका । सिकहर । समाहि कियो सुर ऐसो, दुटि परा सिर झीलम जाई 1-स० झीखना-क्रि०प० प्रा० झख ] दे॰ 'झीखना। ।' दरिया, पृ०६३। भीमा-वि० [सं० क्षीण] [वि॰ स्त्री. झीझो ] झीना | मझरा। मोलरा--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० झोल, मघवा छोलर] छोटी झील । मीण, झोणा -वि० [सं० क्षीण, प्रा० झोण ] दे॰ 'झीना' । छोटा तालाव । छीलर ! उ स वसे सुख सागरे, झोलर उ०-(क) पाणी हो ते पावला, घूषा ही ते झोण ।-कवीर नहि भाय।-फबीर भा० ३, पृ. ४ । ग्र०, पु० २६ (ख) मनवा तो पषर बस्या बहुतफ झोण मीली-सहा स्त्री० [हिं० झिल्ली] १. मलाई । २ दे० 'मिल्खी' । होइ ।-फबीर ग्र०, पृ० २०। (ग) मारू सेकइ हत्पडा, मीवर -ससा पुं० [सं० धीवर ] माझी । मल्लाह । मछुमा । झीरो मंगारे ।--ढोला०, दु० २०६ । दे० 'धीवर'। मीव--सपा पुं० [ला० ] जहाज के पाल का वटन । मुंट-स० [सं० मुण्ट] १.पेड़ । २ झाड़ी [को०]। मीन:-वि० [सं० क्षीण, प्रा. झीण ] दे॰ 'झीना' । झुड-सा पुं० [सं० यूष ] बहुत से मनुष्यो, पशुमो या पक्षियों पादि मीना-वि० [सं० क्षीण ] [वि०सी० झीनी] १ बहुत महीन । का समूह । प्राणियो का समुदाय । दुद । गिरोह। बेसे, बारीक । पतला। उ.-प्रफुल्लित ह के मानि दीन है बसोवा भेडियों का , कबूतरो का झं। रानि भोनियै झंगुली तामें कंचन को तगा।-सुर (शम्म.)। मुहा०-मुंह के अह- संख्या में बहुत अधिक (प्राणी)। २. जिसमें बहुत से छेद हों। झंझरा । ३ गुल दुबला । दुर्वल । झुड मे रहना-भपने ही वर्ग के दूसरे बहुत से जीवो मे ४.मद। धीमा। मीनासारी-सहा पुं० [हि.] धान का एक प्रकार। मुस-सपा स्त्री० [ देशी बुट ( खूटी) या सं० झण्ट (- भीमना--कि०म० [हिं० झूमना ] दे० "झमना'। उ-गव नील झाड)] १. वह खूटी जो पौधो को काट लेने के बाद कुंज हैं भीम रहे, कुसुमो की कथा न बंद हुई।-कामायनी, खेतो मे खडी रह जाती है। २ चिलमन या परदा लटकाने पु. ६५। का कुलारा जो प्रायः कुदे में लगा रहता है। झीमर--सच्चा पुं० [सं० षीवर ] २० 'झीवर'। वाई-सा खोहिं०] ३० झोंकवाई। मीर -सहा पु० देश०] मागं । रास्ता । उ०-हरिजन सहजे उतरि मॅकवाना-क्रि० स० [हिं॰] दे० 'मोकवाना' । पए ज्यों सूखे ताल को झोर ।-मीखा ०, पृ०२४ । मुंकाई-सका श्री [हिं० ] दे॰ 'झोका। मीरिका-सका सी० [सं०] झींगुर [को०] मुगना-सशकुं० [हिं०जिंगवा, जुगना ] जुगनू । मीरुका-सबी० [सं०] झींगुर । झिल्ली को। मँगरा-सा पुं० [ देश० ] सांवा वामक मन्द ।