पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०३

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___ झंझना १८॥ झुंझना -संस पृ० [ मनु.] बच्चों का एक खिलौना । झनझना। झुकाना-क्रि० स० [हिं० मुकना ] १ किसी खड़ी चीज के ऊपरी मलाना-कि० ० [अनु.] खिझलाना । किटकिटाना। बहुत भाग की टेढ़ा करके नीचे की पोर लाना। निहराना। दुखी और क्रुद्ध होकर बात करना । चिड़चिड़ाना । नवाना । जैसे, पेड की हाल मुकाना। २.किसी पदाप के एक मलाइट-सा स्त्री० [हिं० मुझलाना ] खोजचिद । या दोनो सिरो को किसी मोर प्रवृत्त करना । जैसे, वेट झाई-सम मी० [देश॰] निंदा । चुगली । चुगलखोरी। झुकाना, छड़ झुकाना। ३ फिसी खड़े या सीधे पदार्थ को किसी भोर प्रवृत्त करना। ४. प्रवृत्त करना। एनु करना। मझायोg+समा स्त्री० [हिं०? ] खीझ । झलाहट । 30--- ५. नम्र करना। विनीत बनाना । ६.भपने अनुकूल करना। माखन चौर री में पायौ । नितप्रति रीती देखि फमोरी मोहि अपने पक्ष मे करना। पति लगत मुकायो ।-सूर०, १०.१६८।। झुकामुकीसम्म खी• [हिं०] दे॰ 'झुकामुखी'। उ०-सखि बिस्तर मुकमोरना-क्रि० स० [ मनु० ] दे॰ 'झकझोरना'। गई हैं फलिया। कहाँ गया प्रिय झुकाएको मे करके वे रग- मुकना-कि०म० सं० युज, युक, हि. जुक ] १. किसी खडी रलियाँ।-साकेत, पृ०२९७ । चीज के ऊपर के भाग का नीचे की मोर टेढ़ा होकर लटक झुकामुखी-समा बी० [हिं०] दे० 'भुकमुख'। 50-जानि झुका- पाना । ऊपरी भाग का नीचे की भोर लटकना । निहरवा । मुखी भेष छपाय के गागरी ले घर त निकरी ती।-ठाकुर नवना । जैसे, पादमी का सिर या कमर मुकना। ( शन्द०)। मुहा०-झुक झुक पड़ना=नशे या नीद मादि के कारण किसी झुकारी-सम्रा पुं० [हिं० झकोरा ] हवा का झोका । भकोरा। मनुष्य का सीधा या मच्छी तरह खडा या बैठा न रह सकचा। झुकाव-संवा पु० [हिं० झुकना ] १ किसी पोर लटकने, प्रवृत्त 30-अमिय हलाहल मदभरे सेव स्याम रतनार। जियत होने या झुकने की क्रिया । २ झुकने का भाव । ३ ढाल । मरत झुकि कि परत जेहि चितवत एक वार ।-(शब्द०)। उतार।४ प्रवृत्ति । मना का किसी पोर लगना । २. किसी पदार्थ के एफ या दोनों सिरो का किसी मोर प्रवृत्त झुकावट-सहा बी० [हिं० झुकना+मावट (प्रत्य॰)] १. अफने या होना। जैसे, घड़ी का मुकना। ३ किसी खड़े या सीधे नम्र होने की क्रिया या भाव । २. प्रवृत्ति । चाह । मुकाव । पदार्थ का किसी मोर प्रवृत्त होना । जैसे, खर्भ या तस्ते का मुगिया@f-सा बी० [? या देश. ] झोपड़ी। कुटिया । उ०- झुकना। ४. प्रवृत्त होना। दत्तचित्त होना। रुजू होना। हरि तुम क्यों न हमार पाए। ताके पिया मैं तुम बैठे, झोन मुखातिब होना। ५. किसी चीज को लेने के लिये मागे बड़प्पन पायो । जाति पाँति कुखत ते न्यारो, है दासी को ' घटना । ६. नम्र होना । विनीत होना। अवसर पड़ने पर जायो। -सुर०, ११२४४ । पमिमान या उग्रता न दिखलाना। संयो० कि०-जाना !-पड़ना । झुग्गी-समा खो० [हिं० झुगिया ] दे॰ 'झुगिया'। ७ ऋद्ध होना। रिसाना। उ०-(क) सूनि प्रिय वचन मलिन झुमकाना, मुझकावना-क्रि० स० [सं० युद,प्रा० झुज्झ, हि. मनु जानी । मुकी रानि पवरह घरगानी।-तुलसी (शब्द०), अमलाना ] उत्तेजित करना। भागे बढ़ाना। भिड़ा देना । (ख) भव झूठो अमिमान करति सिय मकति हमारे ताई। संघर्ष कराना। सुख ही रहसि मिली रावण को अपने सहज सुभाई।-सूर झुमाऊ -वि० [ जुझाऊ ] दे० 'जुझाक'। उ०-वाजत अझाक (शब्द०)। (प) प्रनत वसे निसि की रिसनि उर वर सहनाई सिधू राग पुनि सुनत ही फाइर की टि पात कल है। रह्यो बिसेखि तक लाज माई अफत खरे लजौहें देखि ।- -सुंदर० म., मा० १, पृ० ४८४ । बिहारी (शब्द०)।1८ शरीरात होना । मरना। मुमार -वि० [हि• मुझ+भार (प्रत्य॰)] दे॰ 'जुझार'। मकमुख-साधा पुं० [हिं० किना+मुख ] प्रात फाल या सध्या का उ.-गुजरात देश सित्तर हजार। बालुफा राइ चालुक यह समय जब कि कोई व्यक्ति स्पष्ट नहीं पहचाना जाता। झुझार ।-पृ० रा., ११४३० । ऐसा अंधेरा समय जब कि किसी व्यक्ति या पदार्थ को पहचानने मुट - सम पुं० [हिं० झूठ ] दे॰ 'झूठ' । उ०-देख सखि मुट मे कठिनता हो । झुटपुटा । कमान। कारन किछयो बुझर नाहि पारिए तब काहे रोखल मुकरना -कि० अ० [मनु.] अझलाना | खिजलाना । कान। -विद्यापति, पु. ४२६ । अकराना-फि०म० [हिं० कोका ] झोंका खाना । उ०---मक्यों झुटपुट-सपा ३० । ह.६० 'मुटपुटा'। 30--परे, उस धूमिल सौकरे कुज मग करतु झोझ झुकरात । मंद मद मारत तुरंग विजन में ? स्वर मेरा या पिकना ही, मन धना हो पना सूंदन मावत जात ।-विहारी (शब्द०)। झुटपुट। हरी घास०, पृ० ३२ मुकवाई-सक्ष श्री. [हिं० झुकवाना झुकवाने की क्रिया या मुटपुटा-सका पु० [मनु० कुछ मंधेरा और कुछ नजेला समय । ऐसा भाव ।२ मुकवाने की मजदूरी। समय जब कि कुछ मंधकार मोर कुछ प्रकाश हो । झुकमुख। मुकवाना--क्रि० स० [हिं० झुकना ] झुकाने का काम द्वारे से शुटलाना-क्रि० स० [हिं० झूठ ] दे॰ 'झुठलाना'। कराना । किसी को झुकाने में प्रवृत्त करना । भुटालना-क्रि० स० [हिं० जूठा भयवा सं० मध्यस्त> > मुकाई-सधा बी० [हि. भुकता] १ झुकाने की क्रिया या भाव । ममुट्ठ> झूठ जूठा करना । जुठारना । २. अकाने की मजदूरी। भटग-वि० [हिं० झोटा ] जिसके खड़े बड़े पौर बिखरे हुए चार