पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुमना र ना अमहि धन गगन धन भौं तम तोम बिसेन । निसि बासर समुझ संयो०कि०-जाना |-पड़ना (क्य.)।-परना। उ.- न परत प्रफुलित पकज पेख --स० सप्तक, पृ. ३१३ । सिदिन की सिद्धि दिगपासन की रिवि वृद्धि वेषा की समृद्धि सुरसदन मुरै परी1-रघुराज (शब्द॰) । मुमना'-वि० [हिं० झूमना ] [वि०सी० सुमनी ] झूमनेवाला। हिलनेवाला। झुरमुट-सबा पुं० [सं० झुट (झाडी)]. कई झाड़ो या पतो मूमना-सझा पुं० [देश०] वह बैल जो अपने खेटे पर बंधा हपा पपने प्रादि का ऐसा समूह जिससे कोई स्पान दक जाय। एक ही पिछले पैर उठा उठाकर झूमा करे । यह एक कुलक्षण है। में मिले हुए या पास पास कई झाड या क्षुप । 30-मानंदघन बिनोयझर झुरमुट लखें बनै न परत भाख्यो। -धनानद, अमरन -समा बी० [हिं० झूमना ] झूमने का भाव । लहरने पृ०४५। २. बहुत से लोगो का मूह। गिरोह । उ०-- का कार्य । उ०-बेनी सिथिल खसित कच झुमरन लुसित पीठ खन इक मह झुरमुट होर बीता। दर मह पड़े रह सो बीता। पर सोहै।-भारतेंदु म०, भा॰ २, पृ० ५३२ । -जायसी (शब्द०)। ३. चादर या भोग्ने मादि से शरीर मुमरा-सपुं० [देश॰] लुहारो का एक प्रकार का घन या बहुत को पारों भोर से छिपाने या ढक लेने की गि। भारी हयोड़ा जिसका व्यवहार खान में से लोहा निकालने में मुहा०-झुरमुट मारना - चादर या मोढ़ने मादि से सारा शरीर होता है। इस प्रकार ढक सेना कि जिसमें जल्दी कोई पहचान न सके। अमरी-सही [ देव.] १. काठ की मुगरी। २. गच पीटने मुरवना-मक्ष स्त्री० [हिं० झरना+वन (प्रत्य०)] वह पक्ष पो का प्रोजार । पिटना। किसी चीज के सुखने के कारण उसमे में निकल जाता है। मुसुमाक-वि• [हिं० झूमना ] झूमनेवाला । जो झूमता है।। मरवनाल-कि० महि० अरना या झरना ] दुखी होना। मुमाना-क्रि० स० [हिं० झूमना का स० रूप ] किसी को झूमने में चिता से क्षीण होना। दे० 'झुरना। 30--मन मम झुरमै प्रवृत्त करना। किसी चीज के ऊपरी भाग को चारो मोर दुलहिनि काह कीन्ह करतार हो।-कबीर '५०२। धीरे धीरे हिलाना। अरवाना-क्रि० स० [हिं० झुरना] १ सुखाने का काम दूसरे से झुमिरना-क्रि०म० [हिं० ] दे० 'भूमना'। से कराना । दूसरे को सुखाने में प्रवृत्त करना। २. मुराना। मुरकुट----वि० [मनु.] 1. मुरझाया हुमा। सूखा हमा। २. दुवला। 3०-कोउ रजक अरवावहिं सोली भारहिं पोहिं ।- कृत। प्रेमपन०, भा० १, पृ० २४ । झरकुटिया'-.-सहा पुं० [देश॰] एक प्रकार का पक्का लोहा जिसे अरसना-क्रि० प्र०कि० स० [हिं० झुलसना] दे मुखसना'। खेड़ी कहते हैं। उ.-मानंदघन सो उधरि मिलोगी फुरसति बिरहा कर मैं। विशेष-३० 'खेड़ी'-१। -धनानद, ५.५३३ । मुरकुटिया ---वि० [ अनु० ] दुबला पतला । कृय । झरसाना-क्रि० स० [हिं० झुलसाना ] दे॰ 'झुलसाना'। भरका -सया पुं० [हि. भर+कण किसी चीज के बहुत छोटे करहरी-समाक्षी [हिं० झरझरी] दे० 'झुरझुरी'। छोटे टुकड़े। चूर। भराना -कि. स० [हिं• झुरना ] सुखाना। तुम करना। मरमरी-सका श्री० [अनु.] १ कपकपी षो जूडी के पहले माती झराना-कि० म.१. सूखना। २ दुःख या भय से घबरा जाना। है। २. कपकपी । कपन । दुख से स्तब्ध होना । -यह बानी सुनि ग्वारि झुरानी। पुरना-कि.प० [हिं० धूल या चूर] १ सुखना। बुक होना। मीन भए मानों बिन पानी।-सूर (शब्द०)। ३. दुवषा दे. 'झुराना' । ३०-छाड भई झुरि किंगड़ी नसें भई सब होना । क्षीण होना । 'झुरना। तांति। रोष रोव तन धुन उठ कहाँ विमा केहि भौति ।- संयो० क्रि०-जाना। जायसी (शरद०)। २ बहुत अधिक दुखी होना या शोक अरावन-संग खी० [हिं० झरना वन (प्रत्य॰)] वह मंश जो किसी करना। उ.-(क) साँझ भई झुरि झुरि पप हेरी। कौन घौ घरी करी पिय फेरी।-जायसी (शब्द०)। (ख) इनका चीज को सुखाने के कारण उसमें से निकल जाता है। झुरवन । बोझ भापके सिर है। माप इनकी खरर न लेंगे तो ससार मुरावना-क्रि० स० [हि. मुराना ] दे॰ 'झुराना' । उ०-मंजन मे नका कहीं पता न लगेगा। वे बेचारे यो हो अर अर के नित न्हायक प्रग मंगोछि के बार भरावन लागी।-मति०, कर मर जायेंगे | -श्रीनिवासदास (शम्द०)। ३ बहत पु. ३८३।। अधिक चिंता, रोग या परिश्रम मादि के कारण दुबल मुरी-सहा श्री. [हिं० झरना ] किसी पीज की सतह पर लबी रेखा होना। घुलना । उ०-(क) ये दोऊ मेरे गाइ चरैया। के रूप में उभरा या महमा पितो उस चीज के सूखने, जानि परत नहिं सौच मुठाई चारस धेनु झरया। सूरदार मुढ़ने या पुरानी हो जाने मादिके कारण पढ़ जाता है। जसुदा मैं चेरी कहि कहि लेति बसया--सूर०, १०५१३ । सिकुन । मिसवट । शिकन । जैसे, माम पर की भरी, चेहरे (क) सूनो के परम पद, ऊनो के मनव मद मुनी के नदीस पर की झरी बददिरा मुरै परी। -देव (शब्द॰) । कि०प्र०-पाना। अपन०, मा." करवावहि