पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०६

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अलकना १८५२ मूंकना विशेष-बहुधा इसका प्रयोग बहुवचन मे ही होता है। जैसे--प्रम इस प्रकार मंशत जलाना कि उसका रंग काला पड़ जाय मौर ये बहुत बुद्धे हो गए, उनके सारे शरीर मे झुर्रियां पड़ गई है। वल खराब हो जाय । झाँसना । जैसे-उन्होंने जानबूझ कर मुलकना -क्रि०स० [हिं० मुलना ] दे० "झुलना' 130---सुरह अपना हाथ मुतस लिया । २ अधिक गरमी से किसी पदार्थ सुगधी यास मोती काने झलकते। सूती मदिर खास जार के ऊपरी भाग को सुखाकर अघजला कर देना। जैसे,--माज ढोलइ जागवी।-डोला०, दू०५०७ । दोपहर की धूप ने सारा शरीर झुलसा दिया। संयो० कि०-डालना-देना। मुलका-सा पं० [ मनु०] दे० 'झुनझुना'। मलना-सक्षा पुं० [हिं० झूलना] स्त्रियों के पहनने का एक प्रकार मुहा०-मुह झुलसना= देखो 'मुंह के मुहावरे । का ढीला ढाला कुरता । मुल्ला । मुला। मुलसवाना-क्रि० स० [हिं० मुलसना का प्रे०रूप ] मुलसने का काम दूसरे से कराना । दूसरे को झुलसने में प्रवृत्त करना। मुलना--वि० [हिं० झूलना ] झूलनेवाला । जो झूलता हो। मलना-सका पुं० [सं० दोलन या दोला ] दे० 'मूला'। मुलसाना-क्रि० स० [18] दे० 'झुलसना' । २. दे. 'झुलसवाना'। मुलनिया-समा स्त्री० [हिं० मुलनी+इया (प्रत्य०) ] दे० मुलाना-कि० स. [६० झूलना] हिंठोसे या झूले में बैठाकर 'मुलनी' । उ०-झुलनियावाली हंसि के जियरा से गैली हिलाना। किसी को भूलने में प्रवृत्त करमा । उ०-रहो रहो हमार |--प्रेमघन०, भा०२, पृ० ३६३ । नाही नाही अब ना मुलामो लाल बाबा की सौं मेरो ये जुगल जय पहरात ।---सोप (शब्द॰) । २. अधर में लटकाकर या मुलनी-समा बी• [हिं० झूलना] १, सोने आदि तार मे गुया टांगकर इधर उधर हिलाना।बार मार झोका देकर हिलाना। हुमा छोटे छोटे मोतियो का गुच्छा जिसे स्त्रियां शोमा के लिये ३.कोई चीज देने या कोई काम करने के लिये बहुत प्रषिक नाक की नथ में लटका लेती है भयवा बिना नपरी एक समय तक प्रासरे में रखना। मनिश्चित या प्रनित अवस्था प्राभूषण की तरह पहनती हैं । २.३० "झूमर'। में रखना। कुछ निष्पत्ति या निपटेरान करना । जैसे-इस मुखनीयोर-सवा पु० दिश०] धान का बाल |---(कहारों की परि०)। कारीगर को कोई चीज मत दो, यह महीनो मुलाता है। मुलमुला-वि० [मनु०] दे० 'झिलमिल'। 10-फाननि कनिक मुलापना+-क्रि० स० [हिं० अलाना ] दे० 'मुलाना' 30--- पत्र चक्र पमकत पार ध्वजा झुनमुल झलकति पति सुखदार। लेइ उछंग कबहक हलरावद। कबहुँ पालने घालि मुलावर । --केशव (पन्द०)। -तुलसी (शब्द०)। झुलमुला-वि० [अनु॰] [वि॰ स्त्री. मुलमुली ] दे० 'मिलमिल'। झुलावनि+-सक्षा स्त्री० [हिं० झुलाना ] झुलाने का भाव या 8.-झीने पट में मुलमुली झलकति झोप अपार । सुरतरु की क्रिया । मनु सिंघु मै लसति सपल्लव सार ।--बिहारी (शब्द०)। मुलुया-~सधा पुं० [हिं० झूला ] दे॰ 'झूला' । झुलवना-क्रि० स० [हिं० मुलाना ] दे॰ 'झुलाना। 10-- मुलीवा -सया पुं० [हिं० झूला (=कुरता )] जनाना फुरता। निकट रहति जद्यपि थी ललना। कब बाँध कर झुलवै पलना। मुलौवा -नि० [हिं० झलना ] जो झूलता या अलाया जा -नंद.म., पु० २५०1। सकता हो। झूलने या मूल सकनेवाला।। मसया--सपा पुं० [ देश०] १. एक प्रकार की कपास जो पहराइच, बलिया, गाजीपुर भोर गोडा प्रादि में उत्पन्न होती है। यह मुलाधा-सधा पु० झूलना। पालना । झूला। मच्छी जाति की है पर कम निकलती है। यह जेठ में तैयार मल्ला -सा पु० [हिं०] ३० "झूला'। होती है, इसलिये इसे जेठवा भी कहते हैं 1२ दे० 'मूला'। मुहिरना--कि० अ० [हिं०? ] लवना । लादा जाना। उ०- रतन पदारथ नग जो वखाने । पौरन मह देखे अहिराने ।- मलवाना-त्रि० स० [हिं० झूलना ] अलाने का काम दूसरे से कराना । दूसरे को मुलाने में प्रवृत्त करना । जायसी (शब्द०)। अहिराना-क्रि० स० [हिं.? ] लादना । चोक रखना। मुलसना'-क्रि० स० [सं० ज्वल+मश] १.किसी पदार्थ के ऊपरी भाग या तल का इस प्रकार अंशत जल पाना कि उसका रंग मॅक'-संवा पु० [हिं० झोक ] दे॰ 'झोंका'। उ०-(क) मुहमद काला पड़ जाय । किसो पदार्थ के ऊपरी भाग का अघजला गुरु जो विधि खिखी का कोई तेहि फूक। जेहि के भार जग होना। झौंसना । जैसे,--यह लड़का अंगीठी पर गिर परा पिर रहा उडे न पवन झूक ।-जायसी (शब्द०)। (ख) पा इसी से इसका सारा हाथ झुलस गया। २ बहुत अधिक त्यों पनाकर पौन के झंकन स्वैलिया कूकन को सहि हैं ।- गर्मी पड़ने के कारए किसी चीज के ऊपरी भाग का सूखकर पधाकर (शम्द०)। कुछ काला पड़ जाना । जैसे,--गरमी के दिनो में कोमर मक -सा श्री. दे० 'झोंक' । ---किंकिनी की झमकानि पौधो की परिशयाँ झुलस जाती हैं। मुलावनि फनि सो झूकि जाच कटी की।-देव (शब्द॰) । संयो० कि०-जाना। पूँकना -क्रि० स० [हिं० ] १. दे० 'झोंकना। २. दे० मुलसनार-वि. स. १. किसी पदार्थ के ऊपरी भाग या तलको 'भखना'।