पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०७

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मूळा' मृका -सा पुं० [हिं०] दे० 'कोका'। १०-यह गढ़ छार भावइ नही सो बाठ न वूझी रे। साई सो सनमुख रहे इस होइ एक मूके।-जायसी (शब्द.)। मन से झूझो रे।-दाद (चन्द०)। खना -क्रि० स० [हिं०] 'झोखना'। उ०---मशिगनत मार -वि० [सं० युद, प्रा.कमहि० मार (प्रत्य॰)] ३. इकटक मग जोवन तब इतनी नहीं भूखी है--सूर (शब्द०)। 'जुझाऊ13.बाजत झार सिंधू राग सहनाई पुनि सुमत ही मूमल---संस श्री० [हिं० ] दे० 'झुंझलाहट। फाइर की सृष्टि पात कल है। सुदर० प्र० मा० १, ममा-वि० [देश०] [वि॰ स्त्री० झूमी] इधर की उपर लगानेवाला। चुगलखोर निंदक ।। मुमार-वि० [हिं० झूम+मार (प्रत्य॰)] [वि० सी० मुनारि] 1-संशा पुं० [हिक झोंटा ] पेंग । दे० 'झोंटा'। दे० 'जुझार। उ-पंच महारिवि वहाँ कुटवाल। तिनकी पूँटा-वि॰ [ हि झूठा ] दे॰ 'झूठा' । तृया महा झूमारि ।-प्राण, पु०२६७ । मूंठा-वि०, सम पुं० [हिं० झूठ ] दे० 'झूठ'। मूट-सया पु० वि० [देशी मुठ्ठ] दे॰ 'झूठ! मठा -वि.हि. मठ, मुठा झठो 'भठी' उ.-मंजन मूठ'-संघा पुं० [सं०भयुक्त, प्रा० मजुत्त अथवा रशी मुद्र] वह पघर घरै, पोक लीक सोहे माछी काहे को लजात झूठो सौंद कपन जो वास्तविक स्पिति के विपरीत हो। वह बात को सात ।-नद००, पृ० ३५७ । यथार्थ न हो। सच का उलटा । मूठी-सया बी० [हि० जुट्टो ] वह डंठल जो नौल के सड़ाने पर क्रि० प्र०-कहना ।-बोसना । बघ रहता है। मुहा०-झूठ सच कहना=निदा करना। शिकायत करना । मठ म पड़ा -सया पुं० [ देशी झुपड़ा ] दे० 'झोपड़ा'। 30--सुरिण का पुल बांधना लगातार एक के बाद एक झूठ बोलते करहा ढोलह साधी पाखे जोह। प्रग्गर बेहा अपड़ा तर जाना । झूठ सच जोड़ना-दे. "झूठ सच कहना' । मासगे मोह। - ढोला०, दु. ३१४ । यौ०-झूठ का पुतला = भारी झूठा । एकदम असत्य बाते कहने- पाहार -वि० [?] जानेवाली। उ०-हिव सूमर वाला । झूठमूठ । भूठसच।। हेरा हुवा, मारू झूचरणहार । पिंगल बोषावा दिया, सोहड़ २-वि० [हिं॰] दे॰ 'भूग।-(य०) •-मुख संपति सो असवार ।- दोला, दु. २६७ । दारा सुत हय गय झूठ सबै समुदाइ । छन भंगुर यह सबै स्याम बना -कि.. [प्रा० मप ] ३० 'मना'। उ०-टोलउ दिनु मत नाहि सँग जाद।-सूर०,१।३१७ । हल्लागउ करद, पण हल्लिवा न देह । झवझव झंबह पागढइ, २, पण हाल्लवा न दह । झवझव झूबह पागढ, मूठ मन बी• [हिं० जुठ ] दे० 'जूठन' । उबडव नयन भरेह !-ढोला०, दू. ३०४।। मूठन-संश बी• [हिं० जूठन ] दे० 'जूठन'। मना--क्रि० स० [हिं•J दे० 'झूमना' । उ०-झूमत प्यारी मूठमूठ-क्रि० वि० [हिं० मुठ+मनु० मूठ ] बिना किसी वास्तविक सारी पहिर, पलत सु कटि लटकाइ ।-नंद प्र., पु० ३८६ । पाषार के । झूठे ही। यों ही । व्यर्थ । जैसे,—उन्होंने झूठमूठ म सना" -क्रि० प्र०, क्रि० स० [हिं० मोसना ] दे॰ 'झुलसना'। एक बात बनाकर कह दी। मेंसना-क्रि० स० [मनु०] किसी को बहकाकर या दसपट्टी देकर मठसच-वि• हि.] ठीक बेठीक । जिसमे सत्य पोर प्रसत्य का उसफा धन प्रादि लेना। तना। मिषण हो। फँसा-सपा . [देग०] एक प्रकार की घास । मूठा'-वि० [हिं. झूठ ] १. जो वास्तविक स्थिति के विपरीत हो । मकटी-मराठी [हिं० जूट+काँटा छोटी झाडी। उ.--(क) जो झूठ हो। जो सत्य न हो। मिय्या पसत्पी, झूठी वह भूकटी तिरस्कृत प्रकृती को मनुसरती है।--श्रीधर पाठक घात, झूठा ममियोग । २. जो झूठ बोलता हो । मूठ बोलने- (शब्द०) । (ख) जिमि पठंत नव फूल झूकदी तले लखाई। वाला। मिथ्यावादी। जैसे-ऐसे झूठे मादमियों का क्या -श्रीधर पाठक (अन्द०)। विश्वास । माना - िम. [ हि. भूखना ] दे० 'कोसना'। उ० कि० प्र०-ठहरना ।-निकलना।-धनना। (क) जाको दीनानाथ निवाजे । भवसागर में कहुँ न झू ३ जो सच्चा या पसलीन हो। जो केवल रूप मौर रंग माधि में भमप निसाने वाजे।-सुर०, १२३६ । (४) पावस रितु असली चीज के समान हो पर गुण प्रावि में नहीं। जो केवल बरसै अब मेहा । कति मरों हो सुमिरि सनेहा ।--हि. विखीमा भोर बनावटी हो या किसी प्रसती घोन के स्पान प्रेमगाथा०, पृ० २२० । पर यों ही काम देने, सुभीता उत्पन्न करने मथवा किसी को मुखना-कि०० [हिं० ] दे० 'झीखना। घोघे में डालने के लिये पनाया गया हो। नकदी। पैसे- झम -संशा पुं० [से० युद्ध, प्रा० झूझ] २० 'युद्ध'। 30-परे खर जवाहिरात, झूठा गोटा पटठा, भूठी पठी, झूठा मसाला या खड निजं सामि म न को हारि मन्ने न को झूम मगे। काम (जरदोजी का), झूम दस्तावेज, झूठा कागज । ---पू०रा०, ६।१५३ ॥ विशेष-इस भयं में "मठा' शब्द का प्रयोग कुछ विशिष्ट पदार मृझना--कि०म० [हिं० झूझ] दे० 'जुझना' । १०-साइब को साय हो हो है ताजिनमें से कुछ पर उदाहरण में दिए गए हैं।