पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२०९

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SERIE १८५ मूलना

  • होनेवाला नाच । ५. एक प्रकार का गोत जो विहार प्रात मे मूल'- मी स्त्री० [हिं० झूलना] १ वह चौ गोर कपडा -जो प्रायः

.. सर्व ऋतुभी में गाया जाता है ।। ६. एक ही तरह की बहुत सी शोभा के लिये पोषायां को, पीठ पर डाला जाता है । उ०- "" पोजो की एक स्थान पर इस प्रकार एब्ध होना, फि उनके शेर के समान जब लीन्हे सावधान पवान झूलन ढगान "जिन फारण एक गोल घेरा सा बन जाय । जमघटा । पैसे, नावो पैग बेधमान है। रघुराप (शब्द॰) । का झूमर । FA u r , , ,, विशेप-स, देश में हायियों मोर घोड़ों ग्रादि- पर जो झूल डाली जाती है। वह प्राय. मखमल, की. और प्रधिक दामों की ७ बहुत सी लियो या पुरुषों का एक साथ मिलकर इस प्रकार होती है भोर उसपर, कारोवी भादि का काम किया होता घूम घूमकर नाचना, कि उनके कारण , एक गोल घेरा सा ।। है। बड़े-बड़े राजाओं के हापियो की झूलो मे मोतियो की

  • बन जाय । ८ भालू को खड़ा करने पर रस्सी लेकर भागना। .....झालर तक की होती हैं। ऊंटो तथा रथो के, बैलों पर भी

--(कलंदरो को भाप्रा) 15 गांडीदानों की मोंगरी। १० इसी प्रकार की झूलें डाली जाती हैं। आजकल कुत्तो तक झूमरा नामक तास । ६० मरा'। ११. एक प्रकार का काठ पर झूल डाली जाने लगी है।. ., .. का खिलौना जिसमें एक गोल टुकड़े में चारो मोर छोटी छोटो मुहा०-गधे पर झूल पड़ना = बहुत ही अयोग्य या कुरूप मनुष्य 5 गोलियों सटेकती रहती हैं। में शरीर पर बहुमूल्य भोर दिया वस्त्र होना । --(व्यंग्य)। . मुमरा- सम्म ० [हिं० झूमर एक प्रकार का-ताल जो चौदह मात्रामों २. वह कपड़ा जो पहना जाने पर भद्दा भौर वेहगम जान पडे ।- का होता है । इसमे तीन माघात मौर एक दिरामा होता है। * ( व्यग्य ) 1 ३' ३० "झूला' । 'उ०---मखतूल के झल अलावते केशव भानु मनो शनिमक लिए केशव (शब्द०)। बिधि तिरकिट, घिधिं घी, पा, तित्ता तिरफिट, विधि.घा था। मूला–शा पुं० [हिं०] अँड । समूढे । उ०—जो रखवालत जगत झूमरा - वि० [हि. झूमना झूमनेवाला । उ०-वहरि पनेक मैं, माही जवक झूल ।-बाँकी०प्र०, मा०१, १०१४।। मगांध जु सरवर । रस झूमरे, धुमरे तरवर नव० प्र०, मूल -सा पुं० [हिं० झूलन] झूलते समय-भूने को पागे पौर ५. २८५1 1 - - पीछे झोंका देना । पेंग । 'उ० विच झुरमुट झूला चलत, पल । भूमरिसमा पी० [हिं०-झूमर] दे॰ 'झूमर'::: -लागे भूली-धनानंद प० २१५ --- मूमरी-पण 'स्त्री० [देश०], पालक राग के पांच भेदो मे से एक। मूलदंड--सधा पं० [हि० मूलना + सं० दण्ड] एक प्रकार को कसरत है जिसमें बारी बारी से वैठक भौर मूलते हुए दडे करते है। मूर -वि० [हिं० घर या चर) सूखा । खुश्क । शुष्क । मूरल वि० [हिं० झूठ] १ खाली । रीता।। २ व्यय । मूलनसमा पुनहि झूलनो] १. ए उत्सर्व । हिडोल। मरल वि० [सं० जुष्ट] जठा । उच्छिष्ट ' विशेष-इस उत्सव में देवमूर्ति विशेषत, श्रीकृष्ण या रामचद्र मादि की मूतियों को झूले पर बैठाकर भुलाते हैं और उनके मर -सहा सी० [सं० प्रवल,..हिक-मार],१. जलन । दाह । २ . “सामने नुत्य गीत'मादि करते हैं। यह साधारणत" वर्षा ऋतु परिताप । दुख। उ०-अजहूँ कह सुना कोई करें -कुविजा में भीर वियोपत श्रावण शुक्ला एकादशी से पूणिमा तफ दूरि। सूर दाहनि मरत गोपी कूधरी यो भूरि -सूर (पान्द.) होता है। ... ' - , ...- मरणाहु-क्रि० म०. [हिर र] दे॰ 'झुराना' । उ० मन ही २. एक प्रकार का रपोच या चलता गाना। .... . माह झरणा, रो मनही माहि। मन ही माहि पाह दे, दादू मलना-सी -मूलने की क्रिया या,भाव 1-- - , .... बाहरि नाहि ।-दाद०,५०१३ ). मूलना-क्रि०प० [सं० दोनज] १२.किसी लटकी हुई वस्तु पर मूरना--क्रि० स० [हिं० अर] दे॰ पुराना - स्थित होकर मथवा किसी -याधार फे- सहारे नीचे, की भोर : मरा -वि० [हिं० झूर] १ शुष्क । सूखा । खुश्क ।। २ 'खाली। लटककर-बार पार भागे पीछे या इपर उपर हटते बढ़ते .. उ.--किंगरी गहै बजाए-री ।। भोर साझ सिंगी तित-पूरी रहना । लटक कर, बार बार.इधर जुपर हिलना । जैसे, पखे जायसी (शब्द॰) ।,३९३०, झूर'। - की रस्सी झूलना, झूले पर बैठकर झलना। २. मले पर मूरार-सबा पुं०.१ सूक्षा स्थान.। वह स्थान जोरपानी से भीगा बैठकर पेंग लेना। 30-(क) प्रेम रग.वोरी, भोरी, नवल- न हो । २ जलवृष्टि का प्रभाव । प्रवर्पण । मूखा । ...किसोरी गोरी मलति हिढोरे यो सोहाई सखियान में। काम नि-प्र०-पड़ना।। . . . , उर में. उरोजन में दाम झूले स्याम झूले प्यारी की -३: न्यूनता कमी। ३०-करीफराह साज सब पूरा काढह म न्यासपखियान में पद्माफर..(शब्द०)। (स) फली ! पूरी परी न झूरा। रघुराज (शब्द०)। - "बेली सो को पलवेली वधू कलति पकेली काम केली भूरि -सा श्री० [हिं० झूर] दे॰ 'झूर। । मकर (शब्द०),। ३ कित्तो कार्प के होने समय तक पडे रहना। पासरे में प्रयवा मुरै-कि० वि० [हि रे व्ययं । निष्प्रयोजन। - 1 . .।। वैसे-जो लोग बरसों भूस रे वि० दे० 'झूर"1"3.-बोधि पची भेरी नहि पूरे । बार ig ही नही मोर भाप बार खोजत रित झरे। सूर (शब्द०)। . ८.