पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२२

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जधालापाडी और १२ हाथ जंतुकंदु १६६५ जंबीरी नोवू से होम करने के पीछे सौ पुत्र हो गए। ३. प्रात्मा। जीवस्य जंत्री-सहा मी [ हिं०] एक प्रकार का तिथिपत्र । पत्रा। पात्मा (को०)। ४. क्षुद्र जीव । निम्न कोटि का जानवर । कोट जंतरी। पतग मादि (को०)। जंद-सधा पुं० [फा. जद, मि० सं० छन्दस ] १. पारसियो का ततकंधु-सका पुं० [सं० जन्तुकम्] १. शंख का कीड़ा । २. शख। प्रत्यत प्राचीन धर्मग्रथ ।। जंतका-सबा स्त्री॰ [सं० जन्तुका ] लाख । जतुका । लाक्षा। विशेष-इसकी भाषा वैदिक भाषा से मिलती जुलती है। इसके जंतुन्न-वि० [सं० जन्तुघ्न ] प्राणिनाशक 1 कृमिन । लोक को 'गाथा' या मथ (मि० सं० मत्र ) कहते हैं। इसके जंतन्त:-समापुं०१. विग। वायविष्टग । २ हौंग। ३. बिजोरा छद मौर देवता वेदों के छंदों पौर देवतामों से मिलते हैं। नीबू । ४ वह पौषध जिसके सपके से कीडे मर जाते हों। २ वह मापा जिसमें पारसियों का जद अवेस्ता नामक धर्मग्रय जंतुघ्नी-सया श्री [सं० जन्तुघ्नी ] वायविडग । विडग । लिखा गया है। जंतुनाशफ-साधा ० [सं० जन्तुनाशक ] होग। यो०-जद अवेस्ता जरथुस्त्र रचित पारसियों का धर्मप्रथ। जंतुपादप-सहा . [ जन्तुपादप ] कोशाम्र या कोसम नाम का जंदरा-सा पुं० [सं० यन्त्र > हि• जतर > जदरा] १. यंत्र । मुक्ष । वि० दे० 'कोसम' [को॰] । कल । जतुफल-सबा पुं० [ सं० जन्तुफल ] उदु वर ! गूलर । कमर । मुहा०--जदरा ढीला होना = (१) कल पुर्जे बेकार होना। जंतुमति-समा स्त्री॰ [सं० जन्तुमती ] पृथ्वी । धरती [को०] । (२) हाथ पैर सुस्त होना । थकावट माना | नस ढीली होना। जतुमारो-सज्ञा स्त्री॰ [सं० जन्तुमारी नीबू । २ जाता । जैसे, कुछ गेहूँ गोले, कुछ जदरे ढीले । । ३. ताला। जंतुला-संज्ञा स्त्री० [सं० जन्तुना ] कास नाम की घास । जंदा सच्चा पुं० [सं० यन्त्र हि० नन्त्र ] ताला। उ०—जिस विषम तुशाला-सक्षा ० [ म० जन्तुशाला ] चिहियाघर । कोठडी जदे मारे। बिन बीनी क्यों खूलहि ताले ।-प्राण, जंतुहंत्री-सहा सी० [१० जन्तुहन्त्री ] वायविडग । जतुध्नी । जंत्र-सज्ञा पुं० [सं० यन्त्र] १. कल । भौजार । २ तात्रिक यत्र । जघाला--सधा प्री० [सं० यत्राला ] १२८ हाप लवी, १६ हाथ यौ०-जनमत्र । ३ ताला। ४. तंत्र वाद्य । वाजा । वि० दे० 'यत्र'। उ०-फबीर जंपती-सप्ता पुं० [सं० जम्पतो] दपती। पतिपत्नी। जनन बाजही, टूटि गपा सब तार ।-कवीर सा० सं०, पृ० ७६ जंपना -कि०म० [सं० जल्प; प्रा. बप्प, जप, सं० अल्पना ] जत्रना'--क्रि० स० [हिं० जा J ताला लगाना। ताले के भीतर कहना । कथन करना। उ० (क) इम जपे चद वरहिया बद करना। जकहवद करना। उ०-सभा राउ गुरुमहिमुर कहा निष? इय प्रलो।-पृ० रा०५७ । २३६ । (ख) मत्री । भरत भगति सबके मति जनी !तुलसी (शब्द०)। सम वनिता वर बदि पद चपिय कोमल कल ।-पृ० रा०, १।१३। (ग) यों कवि भूषण जपत है लखि सपति को जत्रनार..-सहा श्री० [सं० यन्त्रण ] दे० 'यत्रा '। मलकापति लाजै ।-भूपण ( शब्द०)। जंत्रमत्र-सपा पुं० [सं० यन्त्र मन्त्र ] दे० 'जतर मदर', 'यत्र मन'। २०-जयति पर जत्र मत्राभिचार प्रसन, कारमनि कूट जंब'-सझा पुं० [सं० जम्न ] कर्दम । कीचड । पक । कृत्यादि हता। तुलसी ग्र० प्र० ४६७ । जब-पक्षा पुं० [अ० ज व ] पाप । दोष । गुनाह । २०--मफ्स तेरा जंत्रा--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० जतरा ] दे० 'जंतरा'। जब प्रती बोले है जान ! लायक उस है बेजप्न पछाम ।- जंत्रित-[सं० यन्त्रित ] १. नियत्रित । बद। बंधा। 30-जयति दक्खिनी०, पृ० ३८१ । निरुपाधि भक्तिभाव जत्रित हृदय मधु हित चित्रकूटादि जंवक-सका पु० [म. पदक, तुल० सं० चम्पक 1 चपा का चारी ।-सुलसी (शब्द०)। २ ताला लगा हुमा । ताले में फूल (को०। बद। उ०-नाम पाहरू राति दिन, ध्यान तुम्हार कपाट । जवकर-सषा पुं० [सं० जम्वुक जवुक १०-ऐसा एक अचभा लोचन निजपद जनित नाहि प्रान केहि बाट ।-मानस, देखा । जबफ करे केहरि सूं खेला ।-कधीर पं०, पृ. १३५ । ५। ३०॥ जंबान-सा पुं० [सं० जम्बाल ] १. फीचट । कोदो। पंक। २. जंत्री-सक्षा पुं० [सं० यन्त्रिक ] वीणा मादि बजानेवाला । वाजा सेवार । यौवाल । ३ काई । ४ फेवड़ा । बजानेवाला। जत्री-वि० यषित करनेवाला। बद्ध करनेवाला। जकडबद करने- जंबाला-सशास्त्री० [सं० जम्बाला ] केतकी का वृक्ष । वाखा जंवालिनी-सच्चा सौ० [सं० जम्वालिनी J नदी । सरिता (फो। बाज री जरा जंबीर-सज्ञा पुं० [सं० जम्बीर] १. जमीरी नीबू। २- माया। जत्री ना छेड । तुझे विरानी क्या पडी अपनी प्राप निवेर ।- ३ सफेद या हल्के रंग की तुलसी। ४ बनतुलसी। कबीर (पान्द०)। जंबोरी नीबू-सा पुं० [सं० जम्बीर ] एक प्रकार का खट्टी नीत पती । पतिपत्नी