पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२३

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जंघोलें
जधूर
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विशेष-इसका फल कागदी नीबू से बडा होता है। इसके फल जंबप्रस्थ-सा पु० [सं० जम्बुप्रस्थ ] एक प्राचीन नगर । के ऊपर का छिलका मोटा मोर उभड़े महीन महीन दानो के विशेष-इस मगर का उल्लेख वास्मीकि रामायण में है। भरत कारण खुरदुरा होता है। फच्चा फल श्यामता लिए गहरा जब अपने ननिहाल केकय देश से लौट रहे थे तब मार्ग में हरा होता है, पर पकने पर पीला हो जाता है। इसका पेड उन्हें यह नगर पहा था। कुछ लोग प्रमुमान करते हैं कि का धौर कंटीला होता है। सत ऋतु मे इसमें फूल लगते माषकस का जम्वू या जम्मू काश्मीर) यही मगर है। पौर परसात में फल दिखाई पड़ते है जो कातिफ के उपरांत जंबुमत--सया पुं० [सं० जम्बुमत् ] १ एका नगर का नाम बिसे खाने योग्य होते है । फल इसमे बहुत पाते हैं और ना त दिनों जादवान् भी कहते है।२ पर्वत (को०)। तक रहते है। जंवमति-सण स्त्री० [सं० अम्बुमति ] एक भप्रा का नाम । अंथीन-पमा बी० [फा० जम्पील] झोली । पिटारी। टोकरी । जंघुमान- समा० [सं० अम्युमत् ] दे॰ 'जंबुमद [को०)। अंब-HE. [सं० जम्यु] १. जवू वृक्ष । जामुन । २.जामुन का फल । 30-जुत जचु फल चारि तकि सुख करों हौं। जबुमाली-सा पुं० [सं० जम्बुमालिन् ] एक राक्षस का नाम । पनानद०, पृ० ३५२। ३ जाधवान् । उ०-वधि पाज जंचुरल-पर। पु. [फा०जबूर ] 'जबूर 13०-लामन मीर सागरह एनुप पंगद सुग्रीवह । नील जबु सु जटाल घली राहुन बहादुर जगी। जंबुर बमाने तीर पदगी ।-जायसी प्रप पीवह । -पृ. रा०, २२२७१। (शब्द०)। जबक- पुं० [सं० जम्बुक ] [ सी. जनुको ] १. बटा जामुन । जंबुल-संशा पुं० [ मै० जम्बुल] १. जबू। जामुन । २ फेतीमा फरेंवा। २ श्योनाक वृक्ष। ३. सुवर्ण केतकी। केमड़ा। पेठ । ३. कम्पाली मामक रोग। इसमें कान को सौपक्र ४ श्रमास । भीदर। ५ वरुण । ६ एक वृक्ष । ७ देंटू पाती है। सुपकनवा। का पेड़। सोना पाढ़ा। स्कद का एक अनुचर । ६ नीष जघुवनल-सचा पुं० [सं० जम्बुवन ] दे० 'जदूयनज'। व्यत्तिा निम्मकोटि का प्रादमी। (को०] । जबुस्वामी-सहा पुं० [सं० जघुस्वामिन् ] एक जेन स्थविर का जबका - सं• अम्बुक] शृगाल । गीदड़ । जंबुफ। नाम जिनका जन्म राजा पिक के समय में पमदत मेठ उ.-सरली मा मन जंबुका बहुत प्रभोजन खात।-सत- की स्त्री पारिणी के गर्भ से हुपा था। बानी., मा.१,पृ. ११६ । जंबू'--सबा पुं० [सं० जम्मू ] १. जामुन । २ जामुन का फल । ३ 1-सहा पुं० [ अनुसरह ] दे० 'जवुदीप' । नागदमनी। दोना। ४ काश्मीर का एक प्रसिद्ध नगर । जंबद्वीप-सका[सं-कमीप पुराणानुसार सात द्वीपों में से पकडीए। विशेष--सस्कृत में यह शन्द म्यो है पर जामुन फस के मयं में __पलीच भी है। विशेष-यह द्वीप प्रविधी के मध्य में माना गया है। पुराण का मत है कि यह गोस है और चारो मोर से खारे समुद्र से घिरा जंबू -वि० बहुत बड़ा । महत ऊना । है। यह एक सास योजन विस्तीरणं है और इसके नौ वह जयूका-सबा श्री. [सं० जम्बूका ] किशमिय। माने गए हैं जिनमें प्रत्येक खट नौ नौ हजार योजन विस्तीर्ण जंवूखर-पा० [सं० जम्चूसएट ] ३० 'जबुखद' । है। इन नौ सरों को वर्ष भी कहते हैं । इलादत खड इन जंबूद्वीप-सशा० [सं० जम्बुद्वीप ] दे० 'जबुदीप'। खरों के बीच मे बतलाया गया है। इसात लह के उत्तर मे जवृनद -सहा पु० [२० जाम्बूनद ] स्वर्ण। सोना 1 30-- तीन खह है-रम्यक, हिरण्मय, पौर कुरुवर्ष । नौल, श्वेत जवूनद को मेरू बनायव । पप वृक्ष सुर तहाँ गायद । दुतिय पौर शृगवान नामक पर्वत ऋमा इलाधूत मौर रम्यक, रम्यक रजत गिरि जहाँ सुहायव । ताहि नाम फैलाश परायव । पौर हिरएमय तथा हिरण्मय और कुरुवर्ष के मध्य में है। -प० रासो, पृ० २२॥ इसी प्रकार इलावूत के दक्षिण मे भी सीन वर्ष है जिनके नाम हरिवर्ष, पुरुष मौर भारतवर्ष है, भौर दो दो वर्षों के, न जवूनदी-समा पी० [ मं० जम्बूनदी ] १ पुराणानुसार जदीप की बीच एक एक पर्वत है जिनके नाम निषष, हेमकूट पौर एक नदी। हिमालय है। इलायत के पूर्व में मद्राश्व पौर पश्चिम में विशेष-यह नदी उस जामुन के वृक्ष के रस में निकली हई मानी केतुमाल वर्ष है, तथा गधमादन पर माल्य नाम के दो जाती है जिसके कारण द्वीप का नाम जवुद्वीप पटा है मौर पवंत क्रमश इलावत खड के पूर्व और पश्चिम सीमारूप। जिसके फल हाथी के बराबर होते है। महाभारत में इस नदी पुराणों का कपन है कि इस द्वीप का नाम जवुद्वीप इसलिये को सात प्रषान नदियों में गिनाया है और इसे ब्रह्मलोक से पड़ा है कि इसमें एक बहुत बहा जंबु का पेड है जिसमें हावी निकली हुई निखा है। के इसने बड़े फल सगते हैं। पौद्ध लोग जंबुदीप बरा अंबर- [फ़ा दूर जदूरा । २ खोप की परख । भारतवर्ष का ही ग्रहण करते हैं। ३ पुरानी बोटी ठोप जो प्राय ॐो पर लादी पाती पौ। जबुब्बज-सका . [ सं जम्बध्वष ] जद्वीप। जंदूरक । ४.मिड़ा (को०)। ५हद की मामी (को०)। जंयनदी-सहा वी० [सं० पम्बुपी ] ३० अगु नदी'। एक पोवार (को०)।