पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२२५

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दे टपमाल टप-सपा पुं० [अ० टोप ] कानों में पहनने का स्त्रियों का एक ६.बी का सभोग की पोर प्रवृत्त होना । ढल पड़ना :- पाभूपणा (बाजारू । टप-क्रि.वि. मनु०] शीघ्र। तुरत। उ०--कै कहै कछ सयो० क्रि०-पढ़ना। पोई सवाब मिले बड़ी बेरमों पाहि मिल्यो टप ।-घनाचय, ७. घाव, फोड़े पादिका मवाद प्राचे के कारण रह रहकर दर्द करना । चिलकना। दीस मारना ! टोसना । ८ फोडेका महा०-टप से= चट से। झट से बड़ी जल्दी । जैसे,—(क) पककर रहना। बिल्ली ने टप से चूहे को पकड़ लिया। (ख) टप से पामो। संयो० क्रि०-पड़ना। विशेष-खट, पट मादि मौर मनुकरण पमी, समान इसका ६. लड़ाई में घायल होकर गिरना। सयो० कि०-पड़ना। प्रयोग मी अधिकतर से विक्ति के साय फ.विश्वत् ही होता है। प्रत इसका लिंग उतना निश्चित नहीं है। टपकवाना-क्रि० स० [हिं० टपकाना ] किसी को टपकाने के। कार्य में प्रवृत्त करना । टपकाने के लिये प्रेरित करना। टपक-संत्रा श्री० [हिं० टपकना] १ टपकने का पाव । २ वूद दूध गिरने का पन्ध । ३. एक बककर होनवादा दर्द। ठहर टपका-सा पुं० [हिं० उपकना] १ दवू'द गिरने का भाव । ठहरवार होनेवाली पीडा। जैसे, फोड़े को टपक। यो०-टपका टपकी। २ पह जो दूंद दूंद कर गिरा हो । टपकी हुई वस्तु । रसाव । टपकन-सा सी० [हिं० टपकना ] १ टपकचे की क्रिया या भाव। ३ पककर मापसे पाप गिरा हुमा फल । ४. रह रहकर उठने- २ लगातार बूंद बूंद गिरने की स्थिति । ३. एक कककर वाला दर्द। टीस। ५ चौपायों के बुर का एक रोग । खुरपका। पीड़ा होना । टोसना । टकसना । ६ हाल में पका हुप्रा माम । पकना-कि .[अनु० टपटप ] १ बुंद वूद गिरना। किसी टपका टपकी-समानी [हिं० पकाना ] १. दाबू दी। ( मेह द्रव पदार्थ का विदु के रूप में कार से थोड़ा थोड़ा पड़ना। की ) हलकी झडी। फुहार फही। २ फलों का लगातार चूना । रसना। जैसे, बड़े से पानी टपकना, छत टपकना । एक एक करके गिरना। ३. किसी वस्तु को लेने के लिये उ.-टप टप टपकत दुख भरे नैन ।- हरिश्चद (शब्द॰) । भादमियो का एक पर एक टूटना। ४. एक के पोछे दूसरे विशेष-इस किपा का प्रयोग को वस्तु गिरती है तथा जिस मादमी की मृत्यु । एक एक करके बहुत से मादमियों को वस्तु मे से कोई वस्तु गिरती है. दोनों के लिये होता है। मृत्यु (जैसे हैजे भादि में होती है। संयोकि-जाना।-पड़ना। क्रि० प्र०-लगना। २. फल का पककर मापसे माप पेड से गिरना । जैसे, माम टपका टपकी-वि० इक्का दुक्की । मूला भटका। एक माघ । बहत टपकना । महुमा टपकना । कम | कोई कोई। संयो० क्रि०-पड़ना। टपकाना--क्रि० स० [हिं. टपकाना] १.बूंदद गिराना । चुमाना। ..किसी वस्तु का ऊपर से एकबारगी सीध में गिरना । कपर २.भरक उतारना । नवके से भरक खीचना पाना । जैसे, से सहसा पतित होना । टूट पड़ना। शराव टपकाना। संयो०क्रि०-देना ।-लेना। संयो० क्रि०-पड़ना। मुहा०-टपक पड़ना - एकवारगी मा पाँचना । भरत्मात टपकाव- पुहि• टपकाना टपकाने का भाव । प्राकर उपस्थित होना । जैसे,--हैं ! तुम बीच में कहाँ से टपक टपना'-कि०. [ हि० तपना] १ विना कुछ साए पोए पदा पड़े। मा टपकना = दे० 'टपक पड़ना। रहना । बिना दाना पानी समय काटना । जैसे,-सवेरे से ४ किसी बात का बहुत अधिक प्राभास पाया जाना । अधिकता पड़े टप रहे हैं, कोई पानी पीने को भी नहीं पूछना।२ रिना किसी कार्यसिद्धि के बैठा रहना। व्यथ मासरे में बैठा कोई वाव प्रगट होना। बधारण, शब्द, चेष्टा या रूप रग है कोई भाव पडित होना । जाहिर होना । झलना। रहना ---(दलाल)। जैसे,—(क) उसके चेहरे से उदासी टपक रही थी। (१) विशेष-दे० 'टापना। सपना-क्रि० प्र० [हिं. टापना] १ कूदना । उछनना। मुहल्ले में चारों पोर उदासी टपकती है। (ग) उसकी टपना उपकना । फापना। २. बोड़ा खाना । प्रसग करना। दातों से बदमाधी टपरुती है। संयो० कि०-पड़ना । जैसे,—उसके पग पग से पौवन टपका दपना'-क्र० प्र० । राह तापना ] ढकिना। प्राददित करना। पड़ता था। टपनामा-मया पुं० [हि टिप्पन ] बहाव पर या वह रजिस्टर . (चिप्त का) तुरत प्रवृत्त होना । (हुदय का) मट जिसमें समुद्रयात्रा के समय तूफान, गमी मादि का लेखा माकषित होना। ढल पड़ना । फिसलना। सुभा जाना। रहता है ।-(ल.)। मोहित हो जाना। टपमाल-सचा [म. टपमाल ] एक बढ़ा भारो लोहे का पन जो मंयो-क्रि-पवा। बहानों पर काम पाता है।