पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२४

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जंवरक १६६० जमाई जंबरक-संवा सो जम्बूरक ] छोटी तोप जो प्राय ऊंटो पर जंदाजिनी-सचा स्त्री० [सं० जम्वासिनी] नदी। लादी जाती है। २ तोप को चखें। ३ भवर कली। जगरा--सझा पुं०1देश० पर्व, मंग इत्यादिके ये उठत खो दाना रची-सहा पुं० [फा० जदूरची ] १. जदूर नामफ छोटी तोप निकाल लेने के बाद शेष रह जाते हैं। गरा।

  • का चलानेवाला । तोपची। चर्कदाज । सिपाही । तुपकची। जैगरैत-वि० [हिं० जागर+एत (प्रत्य॰)] [वि. गरेतिम]

जंबूरा-सा पुं० [फा. जबूरह ] १ घर्ष जिसपर तोप चढ़ाई १ जांगरवाला । २ परिश्रमी । मेहनती। जाती है। २ भंवर कडी। मॅवर कली । ३ सोने लोहे आदि जंगला-सशपुनहि. जगला] १. दे० 'जगला"। २.३० 'पगसा धातुनो के बारीक काम करनेवालों का एक औजार जिससे वे जचना-फ्रि० स० [हिं० जौचना] १. जांचा जामा। देश भाल हार आदि को पकड़कर ऐंठते, रेतने या धुमाते हैं। करना । २ जांच में पूरा उतरना । दृष्टि मे ठीक बा अच्छा विशेष-यह फाम के अनुसार छोटा या बडा होता है पोर प्रायः ठहरना । उचित तथा मच्छा ठहरना। पिव या मन्छा लकड़ी के टुकड़े में बड़ा होता है। इसमें चिमटे की तरह प्रतीत होना। ठीक या अच्छा जान पड़ना। -(क) चिपककर बैठ जानेवाले दो चिपटे पल्ले होते हैं। इन पल्लों हमें तो उसके सामने यह कपड़ा नहीं जंचता। (6) मुझे । की बगल में एफ पॅच रहता है जिससे पल्ले खुलते और कसते उसकी बात जंच गई। ३. धाण पड़ना । प्रवीत होना। हैं। कारीगर इसमें चीजों को दवाकर ऐंठते, रेतते, तथा प्रोर निश्चय होना । मन में बैठना। बेटे-मुझे तुम्हारी बात काम करते हैं। नही जपती। ४ लकड़ी का एक बल्ला जो मस्तूल पर आहा सगा रहता है जैचा-वि० [हिं० जेंचना ] १.पा एमा। सुपरीक्षित। २. और जिसपर पाल का ढांचा रहता है।-(लश.)। अव्यर्थ । अचूक । जैसे,—ांचा हाच । सबूल-समा पुं० [सं० जम्बूल ]१ जामुन का वृक्ष । २ फेवरे जॅजाल-सपा पु० [हिं० जग+पास] एक प्रकार की प्राचीन फा पेड़। घदक । जजाल । १०-छुट्टी एक कास बिसावे जाले- हिम्मत०, पू० १२॥ जयूखनज-सका पुं० [सं० जम्बवनम ] श्वेत जपा पुष्प । सफेद जंजीरनी-वि० [हिं० जजीर] बापनेवाली। उ०-फच भेषक गुरुहल का फूल । जाल जजीरनी तू।-प्रेमघन०, माग १, पु. २१०। सम-सहा पुं० [सं० जम्भ ] दाढ़। धौमर। २. जबड़ा। ३ एफ । जैतसर-संज्ञा पुं० [हिं० जात+सर (प्रत्य॰)] [श्री जैतसरी, दैत्य का नाम जो महिपासुर का पिता था और जिसे इद्र ने मारा था। 30-इंद्र ज्यों जभ पर, बाहौ सुभम पर रावण जैतसारी ] वह गीत जिसे स्त्रियां चपकी पीसते समय गाती है। जति का गीत। सदभ पर रघुकुलराज है ।- भूषण ( शब्द०)। जवसार-संशश्री० [सं० यन्त्रीला] जाँता गाड़ने का स्थान । वह यौ०-भविष । जंमभेदी । जंभरिपु-इद्र का नाम । स्थान जहा जाता गाड़ा जाता है। ४ प्रह्लाद के तीन पुत्रो में से एक। ६ जबीरी नीबू । ७ कधा जवाना--कि०म० [हि. जाता जांत मे पिस जाना। २. पौर हसली । ८ भक्षण । ६ जम्हाई । कुचल जाना । चूरचूर होना। जभक'-सहा . [सं० सम्भक] १ जैदीरी नीवू । २ शिव । ३. जयर -मशा पुं० [फा. जवूर] एक प्रकार की तोप जो प्राय: एक राजा का नाम । ऊंटों पर चलती थी। जबूरक । उ०-लाखम मार यहादुर अभफर-वि०१. जम्हाई या नींद लानेवाला । २. हिंसक । भक्षक। जमी। जंबुर, फमान तीर खदगी।-जायसी 1०, पृ० २२२ । ३. कामुक । जंभाई-सहा मी० [सं० जम्भा] मुंह के खुलने की एक स्वाभाविक जमका-सहा बी• [सं० जम्भका) जम्हाई । किया जो मिद्रा या मालस्य मालूम पडने, भारीर से पहव भन--सदा पुं० [सं० जम्मन] १. भक्षण । २ रति । सयोग । अधिक खून निकल जाने या दुर्वलता मादि के कारण होती ३ जम्हाई। है। उवासी। जंभा-सक्षा बी० [सं० जम्भा जंभाई । जमुहाई। विशेष-इसमे मुंह के खुलते ही सांस के साथ बहुत सी हवा धीरे धीरे भीतर की पोर खिंच माती है और कुछ पारण जभाराति-सज्ञा पुं० [सं० जम्भाराति] जम भसुर के शत्रु इद्र [को०)। ठहरकर धीरे धीरे बाहर निकलती है। यद्यपि यह क्रिया जंभारि-सझा पुं० [सं० जम्भारि] १ इद्र । २ अग्नि । ३ बच । स्वाभाविक पौर बिना प्रयत्न के प्रापसे पाप होती है, ४ विष्णु तथापि बहुत अधिक प्रयत्न करने पर दबाई भी जा सकती जंभिका-सहा स्त्री० [सं० जम्भिका] जम्हाई । जमा [को०) । है। प्राय दूसरे को जाई लेते हए देखकर भी जंभाई माने जंमी, जभीर- सहा पुं० [स० जम्भिन , जम्भीर] दे० 'जवीरी नीबू'। लगती है। हमारे यहां के प्राचीन ग्रथो मे लिखा है कि जिस उ०-११ दास दाडिम सेव कटहल तूत भर जभीर है।- वायु के कारण भाई प्राती है उसे 'धेयदत्त कहते हैं। विद्यक भूषण ग्र०, पृ० ४। के अनुसार जंभाई माने पर उत्तम सुगषित पदार्थ खाना जभीरी-सहा पुं० [सं० जम्भीर] दे० 'जबीरी नीबू'। चाहिए। जंभूरा-सया पुं० [फा० जदूरहू, >जबूरा) ३० 'जबूरा' । क्रि०प्र०-झाना।-सेना ।