पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२४३

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टीका १५मा टोपदार कि०प्र०-देना!-होना । टीका टिप्पणी-संहा सौ. [सं० टीका+टिप्पणी]१ मालोचना। वह राषकुमार जो राजा के पीछे राज्य का उत्तराधिकारी तर्क वितर्क। २.भप्रश्नसा। निदा। होनेवासा हो। युवराज । जैसे, टीका साहब।..माधिपत्य टीकारोवि .हि.टीका ] टोकाई। प्रधान । साच्च । उ.- का चिह्न । प्रधानता की छाप। जैसे, क्या तुम्हारे ही माथे टीकारो मालक तिको धोकारो मुख मास । -की.. पर टीका है और किसी को इसका पधिकार नहीं है? मा० ३.१.७७। मुहा०-टोके का विशेषता रखनेवाला । मनोखा । जैसे,-क्या टीसी-संशा खी० [हिं० टीका १ टिकुली । २ टिकिया । टिक्की। वही एक टीके का है जो सब कुछ रख लेगा? -(त्रि.)। ३ टीका । 70-चंद्रभागा से बीसगावत पिय के टोकी। ५.यह भेंट जो राजा या जमींदार को रेयत या असामी देते हैं। -नंद० प्र०, पृ. ३८६ । ९. सोने का एक गहना विसे सियां माथे पर पहनती १० टोकुरी-सहा . [देश॰] १. ऊपी पृथ्वी। नती के बाहर की उंची पोरेकी दोनों पांडों के वीर मापे का मध्य भाग यहां भवरी मोर रेतीली भूमि । २ जंगल । वन । होती है। ११. पव्वा । दाग। चिह्न। १२. किसी रोप से टीटा-सा पुं० [देश॰] खियों की योनि में वह मारा जो कुछ बाहर - बचाने के लिये उस रोप के चेप या रस से बनी भोषधि को निकला रहता है। टना। सेकर किसी के शरीर में सुइयों से घुमाकर प्रविष्ट करने की टीटरि-सका सी० [हिं॰] दे० 'टो' उ.-बाप ज्यूमरहर किया। पैसे, शीतला का टीका, प्लेग का टीका। की टीरि, मावत पात विगूठे। कबीर ग्र०,१० १५५ । विशेष-टीके का व्यवहार विशेषत, शीतया रोम से बचाने के टाला हरी टोड़ी-सबा खी. [हिं॰] दे॰ 'टिड्डी'। उ०—(क) कोटि कोटि लिये ही इस देश में होता है। पहले इस देश में माली लोग कपि धरि परि साई।पनु टोड़ी पिरि गुहा समाई।-मानस, किसी रोगी की खोतला का भीर लेकर रखते थे और स्वस्थ ६६६ । (ख) मानो टोड़ी दल गिरत साँझ परुण को पार। मनुष्यों के शरीर में सुई से गोदकर उसका संचार करते थे। -शकुंतला, पृ० २५। संपाल सोग माग से शरीर मे फफोले पालकर उनके फूटने पर दोन-सा पु. पाटन ।' रागा । २. रोग की कलई की हुई चीतला का नीर प्रविष्ट करते हैं। इस प्रकार मनुष्य को लोहे की पतली चद्दर । ३. इस प्रकार की चद्दर का बना सीतमा के नीर द्वारा जो टीका लगाया जाता है, उसमें ज्वर बरतन या डिना। वेग से माता है, कमी कमी सारे शरीर में शीतला मी टोप'- बी. [ हिं. टीपना] १. हाप से दबाने की क्रिया या माती है मौर पर भी रहता है। सन् १७९८ में गजेनर भाव । दबाव । दाव। २. हलका प्रहार । धीरे धीरे ठोंकने नामक एक अंगरेज ने गोयन में उत्पन्न घीठसा के दानों के की क्रिया या भाव । ३. गच कुटने का काम । गच की पिटाई। नीर से टोका सपाने को युक्ति निकाली जिसमें ज्वर मादि का ४.बिना पलस्वर की दीवार में ईटों के जोड़ों में मसाला उतना प्रकोप नहीं होता पौरन किसी प्रकार का भय रहता देकर नहले से बनाई दई सकीर। ५. टंकार । ध्वनि । घोर है। इंग्लैंड में इस प्रकार के टीके से पड़ी सफलता हुई मौर शब्द । ६. गाने में ऊंचा स्वर जोर की तान । बीरे धीरे इस टोके का व्यवहार सब देशों में फैल गया। कि०प्र०-बगाना। मारतवर्ष में इस टीके का प्रचार अंग्रेजी शासनकाल में हमा हामी सरीर पर लेप करने की प्रोषधि । ६ दूध पौर है। कुछ लोगों का मत है कि गोथन शीतला के द्वारा टीका पानी का शीरा जिससे धीमी का मैल छेटता है। ६. स्मरण सगाने की युक्ति प्राचीन भारतवासियों को शात थी। इस के लिये किसी बात को भठपट लिस लेने की क्रिया। टॉक बात के प्रमाण में घम्वतरि के नाम से प्रसिद्ध एक पाक्त पंप मेने का काम । नोट 1१०. वह कागज जिसपर महाजन को का एक श्लोक देते है- मह मौर भ्याज के बदले में फसल के समय मनाज मादि देने धेनुस्तन्यमरिका नराणां च मसुरिका । का इकरार लिसा रहता है। ११ दस्तावेज। १२. हुंटी। तज्जसं वाहमुखाप पास्त्राउन गृहीतवान् ।। चेक । १३. सेना का एक भाग । रुपनी। १४. पजीफे पाहमले शस्त्राणि रक्तोत्पत्तिकराणि च। खेस में विपक्षी के एक पत्ते को दो परों से मारने की क्रिया। उनलं रक्तमिलित स्फोटकज्वर संभवम् ।। १५ सयकी या सरके की बग्मपत्री । कुंडली। टिप्पन । टीकार--सहा मी० [से किसी पाक्य, पद या पंथ का अर्थ स्पष्ट टोप-वि० पोटी का। सबसे अच्छा । युनिया । पदिया। -(स्त्रि.)। या व्याख्या। अयं का विवरण | टीपटाप-समी० [देश०] १. ठाटबाट । सजावट | उड़क भड़क। विवृत्तिासे, रामायण की टीका, सतसई को टीका। विसावठ।२ दरारों या सषियों में मसाला भरना। टीका-विगह टीका टीका लेनेवाला । टीका किया हुमा। टीपयाधु-सच . [सं० टिप्पणी]० 'टीपना"13-पोयो पस्तक उ.--लासवास पीके दालकृष्ण बी टीकाई चेले गद्दी बैठा टीपणो जग परितको काम !--राम धर्म०, पृ.५७ । -सुंदर प्र०, भा. १, (जी०), पृ. १४० । टीपदार-वि० [हिं० टीप+वार (प्रत्य॰)] सुरीमा। मपुर । काकार-सपुं०सं०] व्याख्याफार। किसी ग्रंक का भयं लिखने उ०-वल्लाह क्या टोपदार मावाज है, बस यह मालुम पड़ता बाला सिकार। है कि कोई बीन बजा रहा है।—फिसाना०, मा०, पृ०२१॥