पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२४९

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टेकन विशेष-पह भारत के पनेफ भागों में, विशेषकर मवध विहार उ0-तुमको इन बातों में क्या दखल है। नाहक दिन,नाहक भोर बंगाल उत्तर के जलाशयों में पाई जाती है। यह टेढ़ की टेंट लगाई है!-फिसाना, भा० ३, पृ. ३७१। वालिद सबी तथा सफेद या कुछ कालापन लिए बादामी ट- पी1 देटिंडसी'। होती है। इसके शरीर में सेहरा नहीं होता और इसके मुह में ब -सका श्रीहिं०] . 'टेव'। उ०-गुन गोपाल उचारत किनारे सबी मूछे होती हैं। इसके घरीर मे तीन फोटे होते रसना, टॅव पह परी। सतवाणी०, पृ. ४८ । है, दो प्रगत बगस पोर एक पीठ में। ऋद्ध होने पर यह इन कांटों से मारती है। सबसे बड़ी विलक्षणता इस मछली में यह टेट-सहा स्त्री [हिं०] २. टेव'। है कि यह मुंह से गुनगुनाहट के ऐसा शब्द निकालती है। टउकना-संशा पुं० [हिं०] दे० 'टेकन'। टॅघुना-मका पु० [सं० प्रष्ठीवान ] [ो० टेंघुनी ] घुटना ।। टेउका-सा पु. हिं० टेक] [बी. टेउकी] दे॰ 'टेकन'। टेघुनी-सच बो• [हिं०] १० 'घुना'। देचकी-सका पी० [हिं० टेक] १. किसी वस्तु को लुदकने या गिरने से बचाने के लिये उसके नीचे लगाई गई वस्तु । २. जुलाहों टॅबता- हि. टेक ] खमा । टेक । पाठ की वह लकडी पो ताने की मंडी में इसलिये लगाई जाती टेट'-समायोहिं० उट+ऐंठ ] पोती की वह मंडलाकार ऐंठन है जिसमें ताना जमीन पर न गिरे, ऊपर उठा रहे । ३. साघमों पोकमर पर पड़ती है और जिसमें लोग कमी कभी रुपया को अपारी। पैसा भी रखते हैं। मुरी।। टेक---सपा सोहि टिकना] १.वह लकड़ी या खभा को किसी मुहा.-टेंट में कुछ होना=पास में कुछ रुपया पैसा होना। भारी वस्तु को प्रगाए या टिकाए रखने के लिये नीचे या टॅट--संवा बी• [हि टोट , कपास की ढोढ़ । पास बगल से मिढ़ाकर लगाया जाता है। वादा धूनी। थम । का रोग जिसमें से कई निकलती है। २. करील का कि०प्र०-लगाना। फस । ३. करील । ४. पशुमों के शरीर पर का ऐसा धाव २. टिकने या भार देने की वस्तु। पोठंगने की चीज। ढासना। जो कार से देखने में सूखा जान पड़े पर जिसमें से समय समय सहारा। ३.भाषय। अवसर। उ०- मुद्रिका टेक देखि पर रक्त बहा करे । ५. दे० 'टेंदर'। पवसर सुचि समीरसुत पैर गहे री।—तुलसी (शब्द०)। टेटर-मक्ष पुं० [हिं०] ३० 'टेंटर' ! ४. बैठने के लिये बना हमा ऊचा पत्तरा मा बेदी। बैठने टॅटर-सहा . [ देव.] रोप या चोट के कारण मास के नेते पर का स्थान । जैसे, राम टेक। ५. केंचा टोला । छोटो पहाड़ी। का उभरा हुमा मास ! टेंडर। ६.पिरा में टिका या बैठा हमा संकल्प । मन में ठानीई प्रि -निकलना। बात । दृढ़ संकल्प । मड़। हठ । जिद। -सोर गोसा टॅटा-सा . [देश॰] एक सा पक्षी । जो विधि गति की। सका को टारि टेक पो टेकी।- बिशेष-इसकी पोषबालिस्त भर को पोर पैर डेढ़ हाय तक तुलसी (शब्द॰) । होते हैं। इसका पदत चितकारा पर पोप काली कि.प्र.-करना। होती है। महा-टेक गहना-दे० 'टेक पकड़ना'। टेक पकड़ना-जिद टॅटार-सहा ई० [हिं० टॅट+पार (प्रत्य॰)] ३० 'टेंटा'। पकड़ना । हठ करना । टेक निमना=(१) जिस बात के टिहा-वि० [हिं०] ३० 'टेंटो'। लिये पाग्रह या हठ हो उसका पूरा होना। (२) प्रतिज्ञा पूरी होना। टेक निवाहना-दे० 'टेक निभाना।' टेक टिहा- ० [देश॰] एक प्रकार के क्षत्रिय जो प्राय. बिहार निभाना-प्रतिज्ञा या पान का पूरा होना। टेक निभाना- दाहाबाद जिले में पाए जाते हैं। प्रतिज्ञा पूरी करना । टेक रहना = दे० 'टेक निभाना'। टटी- सी.हि. टेंट1१.करील। उ०-सूर कही फैछे ७ वह बात जो प्रभ्यास पर जाने के कारण मनुष्य अवश्य करे। रुषि माने टेठी के फल खारे ।--सूर (चन्द०)। २ करील बान । मावठ | सस्कार। का फम । कपड़ा। मि. प्र.-पड़ना। -वि० [मनु बाठ बात में विगइनेवाला । व्यर्थ भगदा ६.पीत का वह टुकडा को पार वार गाया जाय । स्थायी।. करनेवाला। पृथ्वी की नोक जो पानी मे कुछ दूर तक चली गई हो।- टेटु-सं० [सं० एटक ] श्योनाक । सोनापान (मथ०)। देंटवा-- {देरा०] १ गला । घंटू । पाँचौ । २. मंगूठा । टेकडी---सुहानी. ह. टेक+दी (प्रत्य०)]१. टोला। ऊंचा देर-संबोधित की पोली। २. व्यपं को पकवाद । पुस्स। २. छोटी पहाड़ो। उ०-टेकड़ियों के पार, हो हजता पृष्टतापूर्ण बात से,-कहाँ राम राम कहा है। कैसे पढ़कर पाते हो ?--हिम०, पु.१०१। कि०प्र०-करना। मचाना होना। टेकन--सहा पुं० [हिं. टेकवा] [खी टेकनी] वह वस्तु जो भारी मुहा०-टे सगावाबकवाद करना। मनावश्यक बोलना। पा लुबकनेवाची स्तुको टिकाए रखने के लिये उसके मीरे ना।