पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२५३

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देखिषिजन टैया यदि एक चोंगे में कोई बात कही जायगी और दूसरे चोंगे में देवकी-सा बी.[हिं० टेवकन, टेकन] १. दोनों छोरों पर कुछ पुर (पो दूर पर होगा) किसी का कान लगा होगा तो वह तक बांस की एक चिरी लकड़ी जो पुलाहों की रोगी में बात सुनाई पडेगी। पर यह युक्ति पोडी ही दूर के लिये काम इसलिये लगी रहती है जिसमे वागा गिरने न पाये। २. नाव दे सकती है। अधिक दूर के लिये बिजली के प्रवाह का सहारा के पालों में से सबसे ऊपर का छोटा पाल । लिया जाता है। युवक की एक छड, जिसमें रेशम ( या मोर देवनारे-क्रि० स० हि० दे० 'टेना'। कोई ऐसा पदार्य जिससे होकर बिजली का प्रवाह न जान टेवा-सक्का पुं० [सं० टिप्पन] १ जन्मपत्री। जन्मकुंटसी। २. लग्न- सके) से लिपटा हमा तवे का तार कमानी की तरह घुमाकर पत्र जिसमे विवाह की मिति, दिन, घड़ी प्रादि सिखी रहती अड़ा रहता है, एक नली के भीतर बैठाई रहती है। चुपक है और जिसे लडकी के यहां से सकुन के साथ नाईले जाकर के एक छोर के पास मोहे का एक पत्तर बंधा रहता है। यह लड़के के पिता को विवाह से १० या बारह दिन पहले पत्तर काठको खोली में रहता है-जिसका मुह एक मोर देता है। चोंगे की तरह सुसा रहता है। इस प्रकार दो चोगों की देवैया-सपा पुं० [हिं० टेवना] १. टेनेवाला। सिल्सी पर पार से मावश्यकता टेलीफोन में होती है एक वोलने के लिये, दूसरा तेज करनेवाला । २. चोसा करनेवासा । तीपण या पना सुनने के जिये। इन दोनों चोपों के बीच तार लगा रहता करनेवाला। उ०-जहाँ जमजातन घोर नदी मट कोटि है। चन्द वायु मे उत्पन्न तरण या कंप मात्र है। मुहले बलच्चर दत टेवैया ।-तुलसी (पद०)। मिकमा एमा पर चोंगे के भीतर की वायु को फपित करता है जिसके कारण बरे हए लोहे के पत्तर में भी कप होता है टेसुधा-संक्षा पुं० [हिं०] 1. 'टेसू'। मर्याद वह पागे पीछे जल्दी जल्दी हिलता है। इस हिलने टेसू-सा पुं० [है• किंशुक] १ पलास का फूल । ढाक का फूल। से मुंबक की शक्ति एक बार घटती और एक बार पढ़ती विशेष-इसे उबालने से इसमें से एक बहुत अच्छा पीला रंग रहती है। इस प्रकार तार की मंडलाकार मानी के एक निकलता है जिससे पहले कपड़े बहुत रंगे जाते थे। दे० 'पसाय'। बार एक मोर दूसरी बार दूसरी ओर बिजली उत्पन्न होती २. पलाश का पेड़ । ३. लड़कों का एक उत्सव। -जे कष रहती है। इसी दिखती प्रवाष्ठ द्वारा पहल पर स्थानों कनक कचोरा भरि भरि मेलत तेल फुलेन । तिन किसन को पर भी शब्द पहुंचाया जाता है। टेलिफोन के द्वारा स्थल पर भस्म घढ़ावत टेंसू से खेल।-सूर (शब्द०)। हमारों कोस दूर तक की भौर समुद्र में सैकड़ों कोस तक की विशेष-इसमें विजयावामी के दिन बहुत से लड़के इकटे होकर' कही बातें सुनाई पड़ती है। घास का एक पुतला सा लेकर निकलते हैं और कुछ गाते हुए टेलिविजन-सक पु० [प्र. ] किसी वस्तु, हरप या घटना के चित्र घर घर घूमते हैं। प्रत्येक पर से उन्हें कुछ मन या पैसा को बेतार तार से या तार द्वारा संप्रेषित करने की वह मिलता है। इसी प्रकार पाँच दिन तक पर्याद शरद पूनो ठक प्रक्रिया जिससे दूरस्थ व्यक्ति भी उसे तत्काल ज्यो का त्यो करते हैं मोर पो कुछ भिक्षा मिलती है उसे इकट्ठा करते पाते - देस सुन सके। है। पूनों की रात को मिले हुए द्रव्य से सावा, मिठाई मादि विशेष-रेषिविजन में प्रकाशतरगों को किसी दृपय पर से लेकर वे रोए हुए खेतों पर जाते हैं जहाँ बहुत से लोग इकट्रे विद्युत रगों में परिवर्तित कर दिया जाता है वो बेवार होते, पौर बलाबल की परीक्षा संबंधी बहुत सीकसरतें पोर तार या मार द्वारा प्रेषित होती पोर इसके बाद उनको सेव होते हैं। सबके प्रत में चावा, मिठाई लरकों में बंटती पुन:प्रकाशतरगों में परिवर्तित कर दिया जाता है जो टेलि- है। देसू पोत इस प्रकार होते -जमलो. जसे विजय पट पर उस प्रय को चित्रित करती। निकली पतप । नौ सौ मोती नौ सौ रया रंग रंग की बनी कमान । टेसू माया पर के द्वार।बोबो रानी पंदन किवार । टेलिस्कोप-सका पुं० [१०] वह यत्र जो दूरस्य वस्तुों को निकस्तर और विशालतर दिखाने का कार्य करता है। टेहना-सबा पुं० [देश०] विवाह व्यवहार। ब्याह की रीति देखी-पा० [देश०] मझले माफार का एक पेड़ जिसको लरूरी बाम और मजबूत होती है तथा चारपाई, प्रौजारों के दस्ते टेहुना-सबा पुं० [हि• घुटना ] घुटना। पारिश्नाचे काम में पाती है। देहुनी-- स्त्री० [हिं०] दे० 'कोहनी'। विशेष-यह पेड पासाम, कधार, सिलहट पीर घटगांव में रहत टेक-सा ई० [म०] १ मोटर को तरह का एक यल्यानको होता है। मजवूठ इस्पात का बना होता है और जिसमें वो लयो रहती हैं । २. तालाव । टेव-सहा मी० [हिं० टेक] अभ्यास । पादत । बान । स्वभाव। am...वि.mचल । १०-पैठत प्रान सरी मनखीली सुनाफ --वि० [ चचल । 70-पैठत प्रान गरी प्रकृति । उ0-15) सून मैया याकी टेव लरन की, सकुच टठी देबि सी खाई। तुलसी (शब्द०)। (ख) तुम तो टेव चढ़ाएई डोलत टैंठी ।-धनानद, पृ. ३७ 1 मोशिप प्रात उठट मेरे लास टेयों-सज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की छोटी कोरी जिसकी लहि माखन रोटी भावै।सूर (शब्द०)। पीठ साधारण फोडी से कुछ चिपटी होती है और उसपर दो कि.प्र.-पढ़ना। चार उमरे हुए से दाने से होते हैं।