पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२५४

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टैयार टोकना विशेष--सका रंग नीखापन लिए या बिलकुल सफेद होता है। टॉस-सश श्री० [हिं०] दे० 'टॉस'। फेंकने से यह चित अधिक पडती है इसी से इसका व्यवहार टोया-सा पुं० [सं० तोय (=पानी)] गट्टा ।-(पंजाबी)। जुए में अधिक होता है। इसे चित्ती भी कहते है। टोया- सं० [सं० तोक्म] अंकुर (को०)। दैयाँ २-वि० नाटा पोर हृष्ट पुष्ट । टोया-सम ० [हिं० टोहना] जहाज या नाव के मागे • भाम टैक्स-सम्म पुं० [पं०] कर या महसूल जो राज्य अथवा नगरपालिका पर पानी की याद लेने के लिये वैठनेवाला मल्लाद । अथवा जिला परिषद् या पचायत की ओर से किसी वस्तु पर कसा वस्तु पर टोआ

-सबा पु.[हिं० टोह दे० 'टोह'। लगाया जाय । जैसे, इनकम टैक्स । टोइयाँ-समा बी. [देश० या हिं० तोतिया] छोटी जाति का समा टैक्सी-सक श्री- [मं०] किराप पर चलनेवाली मोटर गाड़ी। जिसकी चौर तक सारा भाग बैगनी होता है। तोती। टेन-सा स्त्री॰ [देश०] एक प्रकार की घास जो चमहा सिझाने के काम में प्राती है। टोई।-सबा श्री० [देश] पोर । पर्व। एक गांठ से दूसरी गांठ तक का भाग। टैना-सक्षा ० देश०] घास का पुतला या पर रखी हुई काली हाँडी पादि जिन्हें खेतों में पक्षियों को हराने के लिये टोक'-सक्ष पुं० [सं स्तोक] एक बार में मुंह से निकला हमा शब्द । किसी पाया रामद का टुकड़ा। उच्चारण किया हमा टेनी-सका बी० [देश॰] भेड़ों का झु।-(गड़ेरिप)। मखर । जैसे,- एक टोक मुंह से न निकला। टेरा- हिं०] १. 'टेरा' । टोकर-सवा बी.१. छोटा सा वाक्य जो किसी को कोई काम करते टैरी--संशा स्त्री० [हिं०] दे० 'टेरी'। देख उसे टोकने या पूछताछ करने के लिये कहा जाय। पूछताछ । प्रश्न प्रादि द्वारा किसी कार्य में बाषा। जैसे,- टैबलेट-संझ ० [40] दे० 'टेबलेट' । 'क्या करते हो", 'कहाँ जाते हो ?' इत्यादि। टॉक -सं० [हिं०] दे॰ 'टोका। टॉकर--सशस्त्री० [हिं०] दे॰ 'टोक'। उ०-उलझन की मोठी यौ०-टोक टाक पूछताछ। प्रश्न प्रादि द्वारा बापा । जैसे,- रोक टोंक, यह सब उसकी है नोक झोंक ।-कामायनी, बड़े जरूरी काम से जा रहे है, टोकटाक न करो। रोक पु०२३५ टोक = मनाही । मुमानिमत । निषेध। 'टॉका-संवा पु० [सं० स्तोक ( = थोड़ा)] १ छोर। सिरा। २. नजर । नुरीष्टि का प्रभाव।-(वि.)। किनारा । २ नोक । कोना। ३. जमीन जो नदी में कुछ दूर मुहा०--टोक में पाना= नजर लगानेवाले मादमी के सामने तक गई हो।-( मल्लाह )। पड़ जाना । जैसे-बच्चा टोक में पड़ गया। टॉगा-समपु० [हिं॰] दे॰ 'टाँगा' । टोकर-सका श्री० (हिं. टेक] टेक। प्रतिज्ञा। उ०---विप्र सूद्र टोंग-संक्षा पुं० [देश॰] फैलनेवाली एक झायो जिसको छान के रेशों से जोगी तपी सुकवि कहत करि टोक!--ज० प्र०, पृ. १५८ । रस्सी बनाई जाती है। जिती । पक। टोकणी-सहमी [?] एक प्रकार का हंग। उ०—कबीर टाँच-संका स्त्री० [हिं० टोचना] १ सीयन । सिलाई का टोका। वष्टा टाकण लाए फिर सुभाई-कबीर प्र०, ५० ३५॥ २. टॉपने की क्रिया। टोकनहार-वि० [हिं० टोकना+हार (प्ररप०)] टोकनेवासा । टोचना'--क्रि० स० [सं० टकून ] चुमाना। गहाना । साना। । बाधा पहुंचानेवाला।-.-कोई न टोकनहार नफा पर काँधना। ' बैठे पावो।-पटू, पृ० १४१ टाँचनार--संज्ञा पुं० [हि ताना] १. ताना। व्यंग्य । २ उपालमा टोकना-किस. [हिं० टोक] १. किसी को कोई काम करते उलाहना। देखकर उसे कुछ कहकर रोकमा या पृष्धताछ करवा। जैसे, टॉट-सबा बौ•[.सुग] ठोर। चौपाउ.-मारत टोट भुजा 'क्या करते हो?' 'कहाँ जाते हो" इत्यादि। बीच में बोल उषिराना!-अगवानी, पु. २ उठना । प्रश्न मादि करके किसी कार्य में बाषा शसना। टॉटरी-सच स्त्री० [हिं०] ३. 'टोंटी'। उ.-गोपिन, यह ध्यान कन्हाई। नेकु न मंतर होम टॉटा- पुं० [• तुण्ड] १. पिड़िया की चोंचोभाकार की - कन्हाई। घाट बाट जमुना तट रोके। मारग पखत जहाँ निकली हुई कोई वस्तु । २. घोष के प्राकार के गड़े हुए चाठ तह टोके ।-सूर (शम्द०)। के डेढ़ दो हाथ लंबे टुकड़े जो घर की दीवार से बाहर की विशेष-यात्रा के समय यदि कोई रोककर कुछ पूछता है तो मोर पक्ति में बढ़ी हुई छाजन को सहारा देने के लिये लगाए यात्री अपने कार्य की सिद्धि के लिये दुरामकुम समझता है। 'पाते हैं। धोडिया । ३.पानी मादि डालने के लिये बरतन २. नजर लगाना। बुरी रष्टि असना । हंसना । ३. एक पहलवान में लगी हुई नली। का दूसरे पहलवान से सने सिये कहना। ४. गलती टोटो- श्री. [सं० तुएड] १. पानी मादि ढालने लिये भारी। बतलाना । भशुद्धि को पोर ध्यान दिलाना। ४: मापत्ति मोठे मादि में लगी हुई नली जो दूर तक निकली रहती है। करना । एतराज करना। सुनतुची । २. पशुओं का यूपन । वैसे, सूपर की टोंटी। टोकना-संशा पुं० [?] [ी० टोकनी] ... टोकरा । डला । २