पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२५९

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ट्रेडिस मशीन ठंढा देखिल मशीन-सहा श्री [अ०] एक प्रकार का छापने का छोटा यंत्र मोर गंभीर मावस्यंबक अभिनय करता हो। २. वियोगात जिसे एक मारमी पैर या बिजली मावि से चलाता तथा हाय से नाटक लिखनेवाला । वियोगात नाटकलेजका उसमें फागज रखता जाता है। स्याहो इसमें प्रापसे आप लग रेजेडी.-समी नाटक का एक भेद जिसमें किसी व्यक्ति जाती है। इसमें (हाफटोन ठनाक) फोटो की तसवीरें बहत या व्यक्तियों के जीवन की महत्वपूर्ण घटना का वर्णन हो, साफ छपती हैं और कार्य बहुत बीघ्रता से होता है। मनोविकारों का खूब सघर्ष पौर द्वंद दिखाया गया हो भौर ट्रेन-सधा श्री [.] १. रेलगाडी में लगी हुई गाड़ियों को जिसका मत शोक जनक या दु समय हो। वह नाटक जिसका पक्ति । २ रेवगाड़ी। प्रत करणोत्पादक मोर विषादमय हो। दु.खांत नाटक । मुहार-ट्रेन छूटना = रेलगाड़ी का स्टेशन पर से चल देना ।। वियोगात नाटक। देजेरियन-सा पुं० [म.]१. यह अभिनेता जो विषाद, थोक ठ-व्यवनों में बारहवी व्यंजन जिसके उच्चारण का स्थान भारत के प्राचीन वैयाकरणो ने भूर्णा कहा है। इसका उच्चारण करने में बहुधा जीभ का अग्रभाग और कभी कमी मध्य भाग तालु के किसी हिस्से में लगाना पस्ता है। यह मघोष महाप्राण वणं है। टकना -क्रि० स० [हिं० ढांकना, ढंकना] छुपाना। ढकना। उ.-(क) मावडिया मुख ठकिया, वैसे फाड़े वाक ।-बाँकी. प्र., भा॰ २, पृ० १६। (ख) गोरख के गुरु महा मछींद्रा तिन्है परि सिर ठका !-० दरिया, पृ० १३१ । ठंखां - पु.[ देश०] वृक्ष । पैड पौधा । --वरुनि वान सब भोपह वेधे रनबन ठ।-जायसी प्र० (गुप्त), पू० १५६ । ठ-वि० [सं० स्यागु] १. जिसकी दाल और पत्तियां सूखकर या कटकर गिर गई हो। ठंठा । सुखा (पेड़)। २ दूध न देने वाली (गाय) । ३. धनहीन । निधन। ठनाना'-क्रि.प. ठठ से नाम० ], ठंठ चन्द की ध्वनि होना। ठनाना--क्रि० स० ठठ की ध्वनि करना। ठसा-साली[सं०डिण्डिशी ढंढस । ढंढसी। ठार-वि० [हिं. ठ+मार (प्रत्य॰)] खाली। रीता। छा। उ०-जसु का दीजे धरन कह पापन लेह संभार। उस सिंगार सब लीन्हेंसि कीन्हेसि मोहि ठंठार 1-जायसी (शब्द०)। ठी-सका सी० [हिं० ठंठ + ई (प्रत्य.) ज्वार, मूग आदि का वह प्रश्न जो दाना पीटने के बाद बाल मे उगा रहता है। &ठी-वि० मी. (वही गाय या भैस) जिसके बच्चा और दूध देने की सभावना न हो। वैसे, ठठी गाय। ठोकना-क्रि० स० [हिं०] ठोकना । पीटना। उ०-तन • जमरो लूटसी लुट धन “लोक । नान्हों करि करि बालसी हरिया हाइ ठठोक !-रम- धर्मपु०७०1 ठर-सबा श्री० [हिं॰] दे० 'ठ'। ठंबई-सका खौ.हि. 108ढाई । रक-सहा सौ हि.] दे.'ठढक' । श- विहि . 12. ठंढा'। डाई-ममी . हि. दे० 'ठवाई। ठेट-संवा बी.[हिं. ठंढा 1 धीत । सरदी । जाड़ा। मुहा०-ठढ पड़ना=शीत का संचार होना। सरदी फैलना। लगना - शीत का मनुमव होना। दई-समा बी० [हिं०] दे॰ 'ठढाई'। ढक-सका श्री० [हिं० ठढा+क (प्रत्य॰)11. शीत। सरदी । उष्णता या गरमी का ऐसा प्रभाव जिसका विशेष रूप से मनुभव हो। मुहा०-ठळक पडनाशीत का संचार होना। सरदी फैलना । ठंढक लगना - शीत का अनुभव होना। शोत का प्रभाव पड़ना। २ ताप वा जलन की कमी। ताप की पाति । तरी । क्रि० प्र०-माना। ३ प्रिय वस्तु की प्राप्ति या इच्छा की पूर्ति से उत्पन्न संतोष तृप्ति । प्रसन्नता । तसल्ली। क्रि० प्र०-पहना। ४. किसी उपद्रव या फैले हुए रोग प्रादि की शांति । किसी हलचल या फैली हुई वोमारी प्रादि की कमी या प्रभाव। जैसे- इधर शहर में हैजे का बडा जोर था पर अब ठढक पर कि०प्र०-पड़ना। ठंढा--वि० [से. स्तव्य, प्र० तब, पड़, ठट्ठ] [वि०सी० ठढी] १. जिसमें उष्णता या गरमी का इतना प्रमाव हो कि उसका मनुभव शरीर को विशेष रूप से हो । सदं। शीतला गरम का उलटा। क्रि० प्र०--करना ।--होना । मुहा०-ठठे ठठे-ठडके वक्त मे। धूप निकलने के पहले। तड़के। सबेरे । १०-रात भर सोमो, सवेरे उठकर ठठे ठठे चले जाना। यौ०-ठवी पाप- (१) हिम । बरफ । (२) पाला। सुपार। ठळी कड़ाही, ठढी कढ़ाई- हलवाइयों पोर पनियों में सब पकवान बना चुकने के पोछे हलुमा बनाकर बांटने की रीति। ठढी मार-मीतरी मार। ऐसी मार विस में पर देखने में कोई टूटा फूटा न हो पर भीतर पहात बोट माई