पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२६१

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ठकुरायव ठटरी-संबा [हि.] ३०ठौर । उ.-उहाँ सर्व सुखा निधि ऐसी बात जो केवल दूसरे को प्रसन्न करने के लिये कही जाय। प्रति विलास है अनंत थानउम ठवरा-प्राण०, पृ.६५। तल्लोचप्पो। बुधामद । तोषमोद। उ०-हमहु कहा भय ठाँt@-सा पुं० [हिं०] • 'ठाद' । उ०-जंगम जोग विचारे ठकुरमुहाती। तुलसी (शब्द०)। अहूबा, जीव सीव करि एक वऊवा ।-कचौर ०,१०२२३। ठकुर सोहाती-मया श्री [हिं॰] दे० 'ठकुरसुहाती' 130-ठकुर- ठक-~-सहा श्री० [पनुध्व० ठक] एक वस्तु पर दूसरी वस्तु को जोर मोहाती कर रहे हो कि एकाप पत्तल मिट जाय।-मान, से मारने का शब्द । नेकने का शब्द । मा०.५, पृ० ३०३ ठकर-वि० सं० स्तब्ध,प्राद स्तम्धा मौंचक्का मारवयं या ठकुराइत -मक्षा खी• [हिं०] दे॰ 'ठकरायत'। १०-जो कहो घबराहट से निश्चेष्ट । सन्नाटे में पाया हुग्रा। क्यों गई दासी हमारी। तजि तजि गृह ठकुराइत भारी।--- महा-ठक में होना = स्तब्ध होना । पाश्चर्य में होना। उ०- नर०प०, पृ. ३२१।। उनकी सौम्य मूर्ति पर लोचन ठक से बंध जाते।-प्रेमपन, ठकुराइति, ठकुराइती-मक्षा स्त्री० [हिं० ठकुरापत+ई (प्रत्य०)1 भा०२, १०३८ । स्वामित्व । प्रभुत्व । प्राषिपस्य । उ.-रग उमा सी दासी बाकी । ठकुराइति का कहिये तापी-नंद.०, पृ० १३०। क्रि० प्र०-ह बाना ।-हो जाना। ठकुराइना-चाबी० [हिं. ठाकर] १. ठाकूर की स्त्री। स्वामिनी। ठक- दिश०] चंबाजों की सलाई या सूजा जिसमें प्रफोम ० का विवाम लगाकर सेंकते हैं। मालकिय । -महिं दासी ठकुराइन कोई। जहें देखो तह ब्रह्म दै सोई-पूर(सन्द०)। २. क्षत्रिय की स्लो । क्षत्राणी। ठका-सा पुं० [हिं० ग] दे० 'ठग' । जैसे, ठकमूरी ( = ठगमूरो)। ३ नाइन । माउन । नाईको स्ली। उ०-देव स्वरूप की उ.-ठाकुर ठक भए गेल पोरें चप्परि घर लिज्झिम :- रासि निधारति पाय ते सीस लौ सीस ते पाइन । ह रही कीति०, पृ.११॥ ठौर ही ठाड़ी ठगी सी हंसे कर टोड़ी दिए ठकुराइन ।-देव ठकठक-सा औ० [अनुव ठकठक १ लगातार होनेवाली (शब्द०)। ठकठक की ध्वनि या मावाज। २. झगड़ा। पखेटा । टंटा। ठकुराइसा-संशा खी० [हिं०] दे० 'ठकुरायत' । झझट । उ०—ठठक जाम मरन का मेटें जम फे हाथ न भाव।-कबीर० २०, ५.२६। (ख) उठि ठकठक एती ठकुराई- सी० [हिं० ठाकुर] १ प्राधिपत्य । प्रभुत्व । सरदारी । कहा, पावस के अभिसार । जानि परेगी देखि यो दामिनि प्रधानता। उ.-प्रय तुलसी गिरधर घिन गोकुल को करिहे धन मंघिदार ।-बिहारी (शब्द०)। ठकुराई ।-तुलसी (शब्द०)। २. ठाकुर का अधिकार स्वामी होने के अधिकार का उपयोग। जैसे-खेल में कैसी ठकठकाना'-क्रि० स० [धनुध्व० ठकठक] १. एक वस्तु पर दूसरी ठकुराई? उ०-पाव न किय कोनी ठकुराई। बिना किए वस्तु पटककर शब्द फरना । खटखटाना। २. ठोंकना। लिखि दीनि बुराई!-यायसी (शब्द०)। ३ वह प्रदेश को पीटना। किसी ठाकुर या सरदार के पधिकार में हो। राज्य । ठकठकाना-क्रि० प्र० स्तब्ध होना । ठक से होना। रियासत । ४ उच्चता। बड़प्पन । महत्व । पाई। उ०- ठकठकिया-वि० [अनुध्व. ठकठक + हिं० इया (प्रत्य०) ] १. हरि जन की प्रति ठकुराई। महाराज ऋषिराज राजहूँ इज्जती। घोडी सी बात के लिये बहुत दलील करनेवाला। देखत रहे लबाई।-सूर (शब्द॰) । करार करनेवामा । वरिया। ठकरानी-संवा औ० [हिं० ठाकर] १. ठाकुर या सरदारकी स्वी। ठकठीमा-सदा पुं० [मनुध्व.] १ एक प्रकार की करताप। २., चीवार की स्त्री। २ रानी। .-निज मंदिर ले गई करतार घजाकर भीख मापनेवाला। ३. एक प्रकार की पक्मिणी पहुनाई विधि ठानी। सूरदास प्रमु वह पग पारे छोटी नाव ! जहं दोक ठकुरानी!–पुर (शब्द०)। ३. मावकिय । ठकमरी+-महा श्री.हि.] स्तन्ध या निश्चेष्ट करनेवानी पड़ी। स्वामिनी । प्रपीश्वरी1४ क्षषिय की स्त्री वाणी। २० 'ठगमूरी', उ-जा दिन का हर मानता गोइ बेला ठकुरानी वीजा-सा पौ• [हिं. ठकुरानी+सील] थावण शुक्ल पाई। मक्ति न छीन्दी राम की ठकमरी चाई। मलूक०, तृतीया को मनाया जानेवाला एक प्रत हरियाली धीष । बामी, प०१५। ठकुराध -सपुं० [हिं० ठाकुर क्षत्रियों का एक भेद । उ०- ठका-- सौ. हि. ठ+ (-शपात या धक्का)] पक्का . गहरवार परहार सकुरे। फलहस पोर ठकुराप रे।- घोट। पापा HER-कर मार यम ठका देत जावै ।- बायसी (नन्द०)। ५० रासो, प० १५४। ठकुरायत-सपा स्त्री० [हि. ठाकुर] पाषिपत्य । स्वामित्व । ठकार- ० [सं०] '8' प्रक्षर। प्रभुत्व। उ०--ठकुरायत गिरधर की सांची। कौरव जीति ठकुवा-सहा [हिं०] देठोपवा। जुधिष्ठिर राजा कीरति तिहें लोक मे मांची।-सूर, १॥१७॥ ठकुरई-सया बी० [हिं०२० ठकुराई । २ वह प्रदेश जो किसी ठाकुर या सरदार के अधिकार में हो। ठकुरसुहाती मया ली. हि ठाकुर - मालिक) + सुहाना] रियासत