पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२६८

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ठलाना १९१४ उहकाना ठलाना'-क्रि० स० [हिं० दालना ] गिराना । निकालना। (रुपया) जिसकी झनकार ठीक न हो। जो खरे सिक्के के ठलुया-वि० [५० टल्ल (रित)या हि० ठाला+उ प्रा (प्रत्य॰)] ऐसा न हो। जो कुछ खोटा होने के कारण ठीक प्रावाजन निठल्ला । खाली। उ०-मधुवन की बातों ही में मालम दे। जैसे, ठस रुपया। ८ भरा पूरा। सपन्न । धनाढ्य । इपा कि उस घर में रहनेवाले सब ठलुए वेकार हैं।-तितली, जैसे, ठस भसामी। कुपण । कजूस । १०. हुठो। बिद्दी । पू. २२७ । भरकरनेवाला। ठलवा-वि० [मप. ठल्ल या हि ठाला+उक (प्रत्य०)] दे. ठपक-संक्षा स्त्री० [हिं० ठस] १. मभिमानपूर्ण हाव भाव । 'ठलुमा । गर्वीली चेष्टा । नखरा । जैसे,—वह बडी ठसक से चलती है। ठन्ला -वि० [पप० ठलिय ठल्न 11 निर्धन । धनरहित । २ अभिमान । दर्प। शान । उ.-कढ़ि गई रैयत के जिय दरिद्र । २. खाली । शून्य । रिक्त । ३०-नमणी खमणी बह की कसक सब मिटि गई ठसक तमाम तुरकाने की। गुणी सगुणो भनइ सियाई। जे घण पही सपजह, तउ जिम -भूषण (शब्द०)। ठल्लद जाह।–ढोला०, दु. ४५५ । ठसकदार-वि० [हिं० उसक+झा. दार1१. घमही। ममि- ठवेंका -सदा श्री० [हिं० ठमक ] दे० 'ठमक', 'ठसक' । उ०-- मानी । २ शानदार तडक भडकवाला। उ.-ठोर ठकुराई चदेलिनि ठवकन्ह पगु ढाग! पली चौहानी होइ झन को जू ठाकुर ठसकदार नद के कन्हाई सो सुनंद को कन्हाई कारा-बायसी प्र०, पृ. २४६ ! है।-पद्माकर (शब्द०)। ठयका-सश्च ० [हिं० ठोंक ] पाघात । थपकी। ठोका । 30- ठसकासमा [अनुध्व० ] १. वह खांसी जिसमें कफ त निकले पवन ठवक लगि ताहि जगावै । तब करघ को शीश उठावै ।- और गले से ठन ठन शब्द निकले । सूखी खांसी । २. ठोकर। चरण वानी, पु.८०। धक्का । ठवन-सहा खो. [सं० स्थापण, प्रा० ठावण ] दे॰ 'व्वनि'। क्रि०प्र०-खाना 1-मारना 1-लगना। ठवना@-क्रि० स० [४. स्थापन 1 १ स्थापित करना। ठसाठस-क्रि० वि० [हिं० ठस ] ऐसा दबाकर भरा हुमा कि रखना । १०---वायस वीज नाम, ते मागलि लल्ल ठवइ । पौर भरने की जगह न रहे। ठूसकर भरा हुमा। खूब कस- बदा हुई सुजाण तउतू वहिल मोकल !-ढोला०, दु. कर भरा हुआ। खचाखच । जैसे,—(क) वह सदूक कपड़ों १४२ । २. योजना करना । ठानना । 10--पाठम प्रहर सझा से ठसाठस भरा हुपा है। (ख) इस कुप्पे में ठसाठस चीनी समै धरण ठचे सिणगार ।-ढोला०, दू० ५८६ | भरी हुई है। ठवना-कि०म० [हिं० ] दे॰ 'ठयना'। विशेष---इस शब्द का प्रयोग केवल चूर्ण या ठोस वस्तुमों के लिये उवनि -सहस्त्री० [सं० स्थापन, हि० ठवना (==बैठना) वा सं० ही होता है, पानी मावि तरल पदार्थों के लिये नहीं। जो स्थान १ धैठक । स्थिति। --राज रुख लखि गुरु वस्तु भरी जाती है मौर जिस वस्तु मे भरी जाती है दोनों के भूसुर सुप्रासनन्हि समय समाज की विनि भली ठई है।- संवध में इस शब्द का व्यवहार होता है। जैसे, सदूक ठसाठस तुलसी (शब्द०) १२. बैठने या खडे होने का ढग । मासन । भरा है, कपडे ठसाठस भरे हैं। मुद्रा । पग की स्थिति या सचालन का ढब । भदाज । उ०-- ठस्सा-सा पुं० [ देश०] १ नक्काशी बनाने की एक छोटी रुखानी। (क) कुजर मनि कठा फलित उर तुलसी की माल । वृषभ २. गवपूर्ण चेष्टा । अभिमानपूर्ण हाव भाव । ठसक । ३. कंध केहरि ठवनि बलनिधि वाहु त्रिसाल ।—तुलसी (शब्द०)। घमंड। महंकार । ४ ठाटबाट थान । ५ ठवनि । मुद्रा। (छ) ठाढ़ भए उठि सहज सुभाए । ठवनि जुवा मृगराज मदाज। लजाए।-तुलसी (शब्द०)। मुहा०-ठस्से के साथ बैठना - घमंड के साथ बैठना । गवं भरी एवरी-सपा पुं० [हिं० ] दे० 'ठोर'। 10--कथनी कयि मयि बह मुद्रा में शान के साथ बैठना। उ.-कोचवान भी ठस्से के चतुराई। चोर चतुर कहि ठवर ना पाई।--स० दरिया, साथ बैठा है।—फिसाना०, भा०३, पृ० ३६। उस्से से पू०८। रहना-ठाट चाट से रहना या जीवन बिताना। उ०-इस इस-वि० [सं० स्थास्नु (- दृढ़ता से जमा हुआ, ढ़) ] १. जिसके ठस्से से रहती है कि मच्छी अच्छी रईस जातियों से टक्कर कण परस्पर इतने मिले हो कि उसमें उंगली प्रादि न घंस ल।-फिसाना०, भा०३, पृ० १। सके। जिसके बीच में कहीं रंध्र वा पवकाश न हो। जो दह-सज्ञा पुं० [हि.] ठाव । ठही । स्थान । भुरमुरा, गीला या मुलायम न हो। ठोस । कडा । जैसे, बरफी ठहक-सका स्त्री० [ मनुध्व. ] नगारे का शब्द । का सूखकर ठस होना, गीले भाटे का ठस होना। २. जो भौतर से पोला या खाली न हो। भीतर से भरा हुमा । ३. ठहकना--कि. प. [देश॰] ध्वनि करना। बोलना। आवाज जिसके सूत परस्पर खूब मिले हों। जिसकी वुनावट धनी हो। करना । उ०-पिक ठहकै भरणा पड़े हरिए डूगर हाल ।- गफ । जैसे, ठस बुनावठ, ठस कपड़ा। उ०--इस टोपी का की म०, मा. २. पू. । काम खूब ठस है।-(शब्द०)। ४. छ। मजबूत। ५. ठहकाना -क्रि० स० [हि. ठह (-स्थान) 1 किसी वस्तु को भारी । वजनी । गुरु । ६.जो अपने स्थान से जल्दी न टसके। उसके ठीक स्थान पर बैठाना या जमाना। उ०--तन बंदूक जो हिले गेले नहीं। निष्क्रिय । सुस्त । मट्ठर । मालसी। ७. सुमति के सिंगरा, ज्ञान के गज ठहकाई । सुरति पलीता हरदम