पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७४

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ठावना १९२० ठिकाना ठायना--क्रि० स० [हिं० ठाना]दे० 'ठाना। ठिण्ठान 4 देशति हो उत सान। यह न सयानी देति है। ठासा--सधा पुं० [हिं० ठासना ] लोहारों का एक प्रौजार जिससे पाती मांगत पान । स० सप्तक, पृ० २४५ । तंग जगह में लोहे की कोर निकालते पोर उभारते हैं। उ.- ठिकठेक -वि० [हिं० ] ठीक ठीक । ढग से 1 30-एक शरीर देवै ठासा वेहद परे सनवाती सीका। पारि सूट में चल मैं अंग भए बहु एक, धरा पर धाम मनेफा । एक शिला महि बियत एक होय रती का।-पलटू० बानी, पु० ११५ ।। कोरि किए सब चित्र बनाइ घरे ठिकठेका ।-सुंदर० प्र०, यौ०-गोल ठासा= गोल सिरे का ठासा जिससे लोहे को पद्दर भा० २, पृ. ६४६ । को गढ़फर गोला बनाते हैं। ठिकठेन --संज्ञा पुं० [हिं० ठीक + टयना ] ठीक ठाफ प्रवध । ठाह-सा लौ० [सं० स्थान वा हि० ठहरना ] धीरे धीरे पौर भायोजन । उ०-~-माज कसू पोर भए ठर नए ठिकटग । अपेक्षाकृत कुछ अधिक समय लगाकर गाने या बजाने की चित के हित के चुगल ये नित के होय न नैन ।-विहारी किया। (शब्द०)। विशेप-जब गाने या बजानेवाले लोग कोई चीज गाना या ठिकठोरी-सहा पुं० [हिं० टिफना या ठोफ+ठोर टिकने लायक बजाना प्रारभ करते हैं, तब पहले धीरे धीरे और अधिक स्थान ! ऐसा स्थान जहाँ पाश्रय लिया जा सके। समय लगाकर गाते या बजाते हैं। इसी को 'हार' या “ठाह' ठिकडा-सक्ष पुं० [हि.] दे० 'ठीकरा'। में गाना बजाना कहते हैं। प्रागे चलकर वह चीज क्रमश ठिफना-कि. ० [सं० स्थिति+/ >करण ] ठिठफना। जल्दी जल्दी गाने या बजाने लगते हैं। जिसे दून, तिगून या ठहरना । रुपना। अपना। उ.---रम मिजए दोऊ दुहनि तय चौगून कहते हैं । वि० दे० 'चौगून') ठिक रहे टरैन। छवि सोचिरफत प्रेम रंग भरि पिचकारी २ स्थान । ठाव । उ०-चल्यो जहाँ सब हथिनी ठाही। गज नेन 1-विहारी (शब्द०)। मकरद देखि तेहि माई ।-घट०, पृ० २४१ । संयो० कि-जाना ।—रहना। ठाह-सक्षा श्री० [सं० स्ताप (= छिछला)] दे० 'पाह'। ठिकरा-सदा ० [देशी ठिक्करिया 1 दे० 'ठोकरा'। ठाहरा-सज्ञा पुं० [सं० स्थल, हि० ठहर] १. स्थान । जगह। ठिकरी-सहा स्त्री० [हिं० ठिकरा] दे० 'ठीकरी'। उ.-शुक्रसुता जब पाई बाहर । पाए बसन परे तेहि ठाहर। ठिकरीर-समा श्री. दिरा वह भूमि जहाँ खपडे, ठीको प्रादि बहुत -सूर (शब्द०)। २ निवास स्थान । रहने या टिकने का स्थान । हेरा । उ०-रघुबर को लखन भल पाटू । फरहु ठिकाई-सया बी० [हिं० ठीक ] पाल के जमकर ठीक ठीक बैठने कतहुँ भब ठाहर ठाट् ।-तुलसी (शब्द०)। का भाव ।-(लश०)। ठाहरना-फ्रि०प० [हिं० ठाहर ] दे० 'ठहरना' । उ०-घर में ठिकाना-सरा पुहिक टिकान ] ३० ठिकाना' । सब फोह बंकुडा मारहि गाल मनेक । सुदर रण मैं ठाहरे ठिकाना-ससा पुं० [हिं० टिकान1१ स्थान । जगह । ठोर । २ सूर वीर को एक !-सु दर , भा०२, पृ० ७३८ । रहने की जगह । निवासस्थान । ठहरने की जगह । ठाहरू-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'ठाहर। यो०--पक्षा ठिकाना। ठाहरूपक-सधा पुं० [म० स्था+रूपक या देश.] मृदग का एक ताल ३ माथय । स्थान । निर्वाह करने का स्थान । जीविका का जो सात मात्रामों का होता है। इसमे पार पाड़ा चौताल मे अवलय। बहुत योगा भेद है। मुहा०---ठिकाना करना=(१) जगह करना। स्थान निश्चित ठाही --सचा स्त्री॰ [हिं० ठाइ ] ३० ठाही' । करना। स्थान नियत करना । जैसे,अपने लिये कही बैठने ठिगना-वि० [हिं० हेठ+मग] [वि० श्री. ठिगनी जो कंचाई का ठिकाना करो। (२) टिकना। डेरा करना । ठहरना । में कम हो। छोटे कद का। छोटे डील फा। नाटा । (जीव- (३) माश्रय हूँढना। जोविका लगाना। नौकरी या काम घषा धारियों विशेषत मनुष्य के लिये)। ठीक करना । जैसे,—इनके लिये भी कहीं ठिकाना करो, साली बैठे हैं। (४) व्याह के लिये घर हूँढना । व्याह ठीक ठिक'--सहा स्त्री० [हिं० टिकिया | धातु की चद्दर का कटा हमा करना। जैसे,—इनका भी कहीं ठिकाना करो, घर बसे । छोटा टुकडा जो जोड़ लगाने के काम में मावे। पिगली। ठिकाना हूँढना-(१) स्थान हूँढना। जगह तलाश करना । चकती। (२) रहने या ठहरने के लिये स्थान हूँदना । निवास स्थान ठिक -वि० [हि.] दे० 'ठीक'। उ०-यातें यह ठिक जान्यौ ठहराना। (३) नौकरी या काम धंधा हूँढना । जीविका पर। अपनो विभौ पाप बिस्तरै-धनानद, पृ०२७५ : खोजना । माधय हूँदना । (४) कन्या के व्याह के लिये घर ठिक -सधा को [से० स्थितिक] ठहराव । स्थिरता । 30-जासौ हूँढना। वर खोजना। (किसी का ठिकाना लगना- नही ठहरै ठिक मान को, क्यो हठ के सठ रूठनो ठानति ।- (१) माश्रयस्थान मिलना । ठहरने या रहने की जगह धनानद, पृ० १२४॥ मिलना। उ०-सिपाही जो भागे तो बीच में कही ठिकाना न ठिकठान -सहा पु० [हिं० ठीक ] दे० ठिकठन' । उ.-पतेह सपा ।-(शब्द०)। (२) जीविका का प्रबंध होना। नौकरी