पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ठिकाना या काम पपा मिक्षना । निर्वाह का प्रवष होना। जैसे, इस दो करोड़ रुपए साल की मामदनी का ठिकाना हुमा --- धार में तुम्हारा कही ठिकाना म लगेगा। ठिकाना शिवप्रसाद (पद)। लगाना-(१) पता चलाना । ना। (२) माश्रय देना। क्रि० प्र०करना होना। नौकरी या काम पधा ठीक करना। जीविका का प्रबंध मुहा०-ठिकाना लगना प्रबंध होना। प्रायोवन होना । प्राप्ति करना। ठिकाने माना = (१) अपने स्थान पर पहुँचना । का हौल होना। ठिकाना लगाना -प्रर्वध फरमा | सेल नियत वा वाचित स्थान पर पास होना। उ.---जो फोर लगाना। ताको निकट पता । धीरज धरि सो ठिकाने पाव।मूर पारावार पत । जैसे,-(कोप इतना कर बोलता (पाब्द०)। (२) ठीक विमार पर पहुँचना। बहुत सोध- है जिसका ठिकाना नहीं। (4) नसकी पौलत का कहीं विचार या पातचीत के उपरति ययायं पात करना पा सम- ठिकाना? भना। जैसे, बुद्धि ठिकाने माना। १०-हा तनी देर के बाद पव ठिकाने पाए।-(थ६.)। (३) मूल तत्व विशेष—इस यं में इस शब्द का प्रयोग प्राय. निषेधार्यक , वाक्यों दी में होता है। पहुँचना । पसलो पात चेन्ना या कहना ! प्रयोजन की बात पर पाना मत्सव की बात उठाना। ठिकाने की बात-(1) ठिकाना--क्रि० स० [हिं०हिकना] १ ठदाना । अहाना स्थित टीक पात । सच्ची पात । यथार्थ घात । प्रामाणिक पात। फरना । २. किसी अन्य को वस्तु को गुप्त रूप से अपने पास असली वात। (२) समझदारी की बात। युक्तियुक्त पास । रख लेना या छिपा लेना। (३) पते को वात। ऐसी बात जिससे किसी विषप में ठिकानेदार-मुसा पुं० [हिं० ठिकाना+दार (पत्य॰)] १ किसी जानकारी हो बाय। ठिकाने न रहना चल हो जाना। छोटे भूमाग का पधिपति । जागीरदार । २ स्वामी । जैसे, बुद्धि ठिकाने न रहना, होश ठिकाने न रहना । ठिकाने मालिक । पहचाना = (१) यथास्थान पहुंचाना। ठीक जगह पहुंचाना । ठिगना-वि० [हिं० टिंगना ] नाटा । छोटे कद का । दे० 'ठिंगना । (२) किसी वस्तु को सुप्त वा नष्ट कर देना। किसी वस्तु को उ.--इंस्पेक्टर पधेड, साँवला, लदा पादमी था, कौडी न रहने देना। (३) मार डालना । ठिकाने लगना 3D (१) फी सी पाखें, फूले हए गाल पौर ठिगना पद।---गवन, ठीक स्थान पर पहुंचना । बाधित स्थान पर पहुँचना । (२) पु.२०३। काम में माना। उपयोग मे पाना प्रच्छी जगह वचं होना। ठिठकना-शि० म० [सं० स्थित+करण या देश.] १ बलते चलते उ.-चलो अच्छा हुमा, बहुत दिनों से यह चीज पही थी, एकबारगी रुफ जाना। एफदम टहर जाना । उ०-तनिक'. ठिकाने लग गई।-(शब्द०)। (३) सफल होना। फलीभूत ठिठक, कुछ मुड़कर दाएँ, देख प्रजिर में उनकी पोर।-साकेत.' होना । जैसे, मिहनत ठिकाने लगाना । (४) परम धाम पु. ३६८।२ मगों की गति वद फरमा। स्तमित होना। सिधारना । मर जाना । मारा जाना । ठिकाने लगाना= (१) हिलना न ओलना। ठफ रह पाना । श्रीक जगह पचाना। उपयुक्त वा यायित स्थान पर ले जाना। ठिठरता-कि.म.मि. स्पित या हिं० ठार भपवा सं० शीत+ (२) काम में लाना। उपयोग में अच्छी जगह ख करना। स्तृ>सरण ] अधिक भीत से सकुचित होना। सरदी से (३) सार्थक करना। सफल करना निष्फल न जाने देना। एठना या सिकूदना। जाडे से मकरना। वहत पधिक ठह वैसे, मिहनत ठिकाने लगाना । (४) इधर उधर फर खाना । जैसे, हाय पाव ठिठरना ।। देना । खो देना। लुप्त फर देना । गायब कर देना । नष्ट कर ठिठुरन संघा - [हिं० ठिठग्ना] ठिठरने या ठरने का भाव । देना । न रहने देना । (२) कर सामना । (१) भाषय जारे की अधिकता से पगों की सिफूहन । ठरन । उ०- देना । जीविका का प्रबंध करना । काम पधों में लगाना । (७) दर दीवार सब परफ ही घरफ पोर टिठुरन इस कयामत कार्य को समाप्ति तक पहुँचाना। पूरा कराना। (२) काम को। -सैर०, पृ० १२।। तमाम करना ! मार डालना। ठिठुरना~िकि० म० [हिं०1३० ठिठरना' । ४ निश्चित पस्तित्व । यथार्थता को समावना। ठीक प्रमाण। ठिठोली-सहा लो० [हिं० ठठोली 120 'ठठोली'! 30-वाह का जैसे,-सको वात का क्या ठिकाना ? कमी कुछ कहता। घोली है कि रोने में भी टिकती है।प्रेमघना, मा.२, कमी कुछ । ५ दर स्थिति । स्थायित्व । स्पिरता । उहाद। जैसे,—इस टूटी मेज का क्या ठिकाना, दूसरी बनायो। ठिनसमा० सं० स्पिति (स्थान) ] स्यान । स्पल । 30-- विशेष-इन प्रयों में इस शब्द का प्रयोग प्राय. निषेधात्मक या पांच पषीस एक ठिन पाहै, जुगुति ते एइ समुझाय।-जग. सदेहास्मक वाक्यो ही में होता है। जैसे,---रुपया वो सब श०, भा॰ २, पृ. २०, लगावें जब उनकी बात का कुछ ठिकाना हो। छिनार-सहा . [ मनुध्य.] छोटे बच्चों द्वारा रह रहकर ५ प्रवष प्रायोजन । दोयम्त । डोल। प्राप्ति का द्वार या दंग। रोने की ध्वनि की सरह उत्पन्न भायाज! जैसे,---(क) पहले खाने पीने का ठिकाना करो, और बातें महा०---ठिन ठिन करना%रोने की सी ध्वनि करना । रह रहे पौधे करेंगे। (ख) उसे तो लाने का ठिकाना नही है । 30-~ कर धीरे धीरे रुदन का प्रयास करना। (लि.)।