पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७७

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टो ११२३ यो०-ठीकमगका, ठीकमठोफ-एकदम ठीक । पूर्णत: ठोका ठोका-संवा पुं० [हिं. ठोक] १.कुछ पर यादि के रदले में किसी विलाल दुरुस्त । के किसी काम को पूरा करने का जिम्मा । जैसे, मकान ठीक-सया पु. १. निश्चय 1 ठिकाना। स्थिर मौर मसदिग्ध बात। बनवाने का ठीका, सहक पार करने का ठीका। २. समय पक्की पात। दमात । जैसे,—उनके माने का कुछ ठीक समय पर ग्रामदनी देनेवाली वस्तु को कुछ काल तक के लिये नहीं, पायान पावें। इस शतं पर दूसरे को सुपुर्द करना कि बद्द मामरनी वसून यो०-ठीकठिकाना। कररी पोर उसमें से कुछ अपना मुनाफा काटकर बराबर मुहा०-ठीक देना- मन में पनका करना । द निश्चय करना। मालिक को देठा जायगा । इजारा। 7.--(5) नोके ठीक दई तुलसी अवलंब बड़ी उर प्राखर क्रि० प्र०-देना।-लेना ।-पर लेना। दू को -तुलसी (शब्द०)। (१)कर विचार मन दोन्ही ठीकेदार--सका पुं० [हिं०] १. ठोके पर दूसरों से काम लेनेवाला ठोका। राम रजायमु पापन नीका -तुलसी (शब्द०)। व्यक्ति । ठोका देनेवाला। २. किसी काम को कुछ निमित विशेष--इस मुहावरे में 'ठीक पद के प्रागे 'बात' शब्द लुप्त नियमों के अनुसार पूरा फरा देने का जिम्मा लेनेवाला व्यक्ति । मानकर उसका प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है। ठीटा-- पुं० [हिं. ठा] दे० 'ठेठा' । २. नियति । ठहराव स्थिर प्रवष । पक्का भायोजन । वदोबस्त । ठीठी-सोमनध्वा हंसी का शन्द। जैसे-खाने पीने का ठीक कर लो, तब कहीं जामो। योग-हाहा ठोठो। यो०-ठीक ठाक। क्रि० प्र०करना । —होना । ३.बोरामोजाना योग । टोटल । ठोदी ठाढ़ी -वि० [० स्पिति+म्प] जिस हालत में हो उसी मुहा०-ठीक देना, ठीक लगाना जोर निकालना। योगफल में स्थित । स्पपनहीन । निश्चेष्ट । 10-~-सषि सिंगार कुजन निश्चित करना। गई लहो जही बलवीर । ठोड़ी ठाढ़ी मी तरुन बाढी गाढ़ी ठीकठा-~-सहा पुं० [हिं० ठीक] १. निश्चित प्रबंपाबंदोबस्त । पोरं -स० समक, पृ. ३८६। प्रायोजन । जैसे,—इनके रहने का कही ठीक ठाक करो। ठोखना----कि.स. [हिं०] दे० 'ठेलना'। उ.-मैं तो मुसि ज्ञान कि० प्रक-फरना होना। को प्रायो गयर तुम्हारे ठीले ।-सुर (शब्द०)। २.जीविका का प्रबंध। काम धधे का दोवस्त । माथय । ठोर ठिकाना । जैसे,—इनका मी कही ठीक ठाक लगामो। ठीवन -संज्ञा पुं० [सं० ष्ठीवन पंक। ससार । कफ। प्रलेष्मा। ३०-पामिप प्रस्पिन घाम को थानन, ठोदन ठामें मरी क्रि० प्र०-करना ।-बगाना। मषिकाई--रघुराज (शब्द०)। ३. निश्चय । ठहराव । पकी बात । जैसे,—विवाह का ठीक "ठीसो-सदा श्री. हि टोस 1 रह रहकर होनेवाली पीड़ा। ठाक हो गया? टोस। उ.-मृतक होय गुरु पद गई ठोस कर सब दूर।--- ठीकठाक वि--मच्छी तरह दुरुस्त । बनकर तैयार । प्रस्तुत । काम कबीर १०, भा०४, पृ० २६ ॥ देने योग्य। ठीकड़ा-सबा पुं० [हि ठीकरा दे० 'ठीकरा'। ठी-यश श्री. मनु० ] घोड़ों की हौंस । हिनहिनाहट का हम्द। ठीकरा--सया पुं० [देशी ठिपरिभा] [स्त्री.मल्पा० ठीकरी] १. उ.--दुई दस ठोहं तुरंगनि दोनी। दुई दल दुद्धि जुद्ध रस मिट्टी के बरतन का फूटा टुकड़ा। सपरेल पादिका टुकड़ा। भौनी !-लाल (शब्द०)। सिटकी। ठीह-सका ई० [सं० स्मा] दे. ठीक्ष। महा-(किसी के माये या सिर पर ) ठोकरा फोड़ना-चोप ठोहा-संका पुं० [सं० स्था] १. जमीन में गा हमा लागेका लगाना। कलक लयाना। (जैसे किसी वस्तु या रुपए मादि कूदा जिसका पोड़ा सा भाग जमीन के ऊपर रहता है। को) ठीकरा समझना = कुछ न समझना । कुछ मी मूल्यवान विशेष--इस फूदे पर वस्तुमों को रखकर लोहार, बढ़ई प्रादि न समझना। अपने किसी काम का न समझना। अंधे,- उन्हें पीटते, छोलते या गढ़ते हैं। लोहार, कसेरे मादि पाद पराए माल को ठीकरा समझना चाहिए। (किसी वस्तु का) का काम करनेवाले इसी ठोहे में अपनी 'निहाई पाते है। ठीकरा होना-पघाघुष खर्च होना । पानी की तरह रहाया पापों को खिषाने का पारा भी ठोहे पर रखकर काटा जाना । ठीकरे की तरह बेमोल एव तुच्छ होना। जाता है। २. बहुत पुराना परतन । टूटा फूटा बरतन। ३ भोस मांगने का २. बदापों का लकड़ी गढ़ने का कुदा जिसमें एक मोटी को में परतन भिक्षापात्र । ४. सिक्का । रुपया (सधु०)। ढानुपा गड्ढा बना रहता है। ३. बढ़ावों का मकड़ी बीरने टोकरी--सका स्त्रो (देशी ठिकरिमा] १ मिट्टी के बरतन का का कुदा जिसमें लकड़ी को कमकर खड़ा कर देते और पीरते छोटा फुटा टुकड़ा। २ तुन्छ । निकम्मी चीज । ३. मिट्टी का हैं। ४. बैठने के लिये कुछ किया हुमा स्याना रेवी। गद्दी। सवा पो सिम पर रखते हैं। ५ दुकानदार के बैठने की जगह। ६. हृद। सीमा। ७.रा ठोकरी-सादी दिखी ठि46 (पुरुपेंद्रिय)] अस्प। लियो थूनो । ६. उपयुक्त स्पान । की पोनि का उभरा हुमा तल । ढुंठ-सम [ देव० कुछ वा • स्पा]] 1. सुखा हुमा पेड़।