पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२७९

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ठुमकी १९२५ ठेगा ठमको वि० श्री. नाटी। छोटे डील की। छोटी काठी की। ठेठ-सक्षसहि. टूटना, वा सै० स्थाणु, मा देशी ठुठ(स्था)] उ.---जाति चली ब्रज ठाकुर पै ठुमका ठुमकी ठुमकी ठकुराइन । १. ऐसे पेड़ की खड़ी लकडी जिसकी हाल, पत्तिया मादिकट --पद्माकर (शब्द०)। गई हों। सूखा पेड़। २. कटा हुमा हाप । डा। उ०---- कुमठम-वि०कि० वि० [हिं०] दे० 'छमक ठुमक'। उ०-भाई बंद विद्या विद्या हरण हित पदत होत सल हूँ। कह्यो सकल परिवारा। तुमछुम पाव चले तेहि सारा 1-घट०, निकारो मीन को घुसि मायो गृह केंट। -विश्राम (सन्द०)। पृ. ३७। ३ एक प्रकार का कीड़ा जो ज्वार, बाजरे, ईख प्रादि की तुमरी-संबा ली. [हिं०1१ एक प्रकार का छोटा सा गीत । दो फसल में लगता है। बोलो का गीत षो केवल एक स्थान और एक ही अंतरे मे हूँठा--वि० [हिं० ठूठ वा सं० स्थाणु] [ वि०सी० ठूठो ] १. बिना समाप्त हो। पत्तियों पौर टहनियों का (पेड) । सुखा (पेट) से, ठा यौ०-सिरपरक तुमरी = एक प्रकार की ठुमरी जो 'मवा' पेड़। २ बिना हाथ का। जिसका हाप कटा हो । लूला। ताल पर घजाई जाती है। टूठिया-वि० [हिं०४+इया (प्रत्य॰)] १ लुला। लँगड़ा। २. उड़ती खबर । गप । अफवाह । २.हिजड़ा। नपुंसक। क्रि०प्र०-उहना। हूँ ठि- संज्ञा स्त्री० [हिं०ठूठ ज्वार, बाजरे, मरहर मादि की जड़ के पास का उठल जो खेत काटने पर पड़ा रह जाताहै। ठरियाना-क्रि० म० [हिं० ठार (गीत)] ठिठुर जाना। खूटी। सिकुड़ जादा । धीत से मकर जाना। छुरियाना--क्रि. म० [हिं० तुरी] तुरी होना । भुने हुए दाने कान ठूसना-फि० स० [हिं० दे० 'ठूसना' । खिलना। हूँसा-सा पुं० [हिं०१ दे० 'ठोसा'। २ मुक्का । घुसा। ठुरी-सधा खी० [हि. ठडा (-खड़ा) या देरा० ] वह भुना हुमा ठूठ-वि० [ देणी दुहि. ठूठ, दूठ ] दे० 'ठ' 130-दसा सुने दाना जो भुनने पर न खिले। निज वाग की लाल मानिहो झूठ। पावस रितु हूँ में लखेगड़े सकना-क्रि०म० [पनुध्व.] १.३० ठिनकना। २. ठुस पान्य ठाड़े ठूठ!-मति, प्र०, पु०४६। करके पादना । ठुसको मारना। ठूठी-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] राजजामुन नाम का घुश । वि० दे० छुसको सवा श्री• मनुध्व.] धीरे से पादने की क्रिया। "राजजामुन'। ठुसना-कि० ५.हि. ठूसना १ कसकर भरा जाना। इस ठूनू-समा पुं० [ देश० ] पटवों की बढ़ टेढ़ी कील जिसपर वे गहने प्रकार समाना या मॅटना कि कहीं खाली जगह न रह जाय। अंटकाकर उन्हें गूथते हैं। नसे, इस सदफ में कपड़े ठुसे हए । २ कठिमता से विशेष—यह फील पत्पर में बैठाए हए खूटेरे सिरे पर घुसना । ३. भर जाना । समाप्त हो जाना। न रहना । 30- लगी होती है। हिवोपन भी न निकले, भावापन भी ठुस जाय जैसे भले ठूसना-क्रि० स० [हिं० ठस ] १. कसकर भरना । इतना अधिक लोग पच्छों से अच्छे प्रापस में बोलते घालते हैं, क्यों का त्यो भरना कि इधर उधर जगह न रहे। २. धुसेड़ना । पोर से वही सब दौल रहे और छह किसी को न परे।--ठेठ०, घुसाना । ३ खूब पेट भरकर खाना । कसकर खाना। (उपो०),०२॥ ठगना-वि० [हि. ठ+ अग] [वि० श्री. गनी ] छोटे सीख ठुसवाना-क्रि० स० [ हिंसना का प्रे०रूप] १. कसकर का। जो ऊंचाई मे पूरा न हो । नाटा ।-(जीवधारियों, भरवाना। २. जोर से घुसवाना। ३. संभोग कराना । विशेषतः मनुष्य के लिये)। ठुकवाना (मशिष्ट०)। ठेगा-सपा पुं० [हिं० हे+मग वा अंगूठा या देश.] १. मेंगूठा। ठुसाना-फि.स.हि ठूसना]१ कसकर भरवाना । २ षोर ठोसा। से घुसवाना। ३. खूब पेट भर खिलाना (भशिष्ट०) । मुहा०-टेंगा दिखाना = (१) मेंगूठा दिखाना । ठोसा दिखाना। ठूग-सहा त्री० [सं० तुण्ड1१,चोंच । ठोर। २ दरोंच से मारने धृष्टता के साथ भस्वीकार करना। पूरी तरह से नहीं करना । को किया। चोंच का प्रहार। उँगली को मोड़कर पीछे (२) चिदाना । ठगे से बला से । कुछ परवाह नहीं। निकली हुई जोड़ की हड़ो की नोक से मारने की क्रिया। विशेष-जब कोई किसी से किसी बात की धमकी या छ करते टोला। या होने की सूचना देता है तब दूसरा मपनी बेपरवाही या कि०प्र०-लगाना ।-मारना। निर्भीकता प्रकट करने के लिये पैसा कहता है। ठूगना --कि. स हि ठूग+पा (प्रत्य॰)] टूगना । २. खिगेंद्रिय । (शिष्ट) । ३ सोंटा। बडागदका । जैसे,-- धुगना । 30--चौवह तीन्यू लोक सबगै सासै सास । दादू जबरदस्त का ठेंगा सिर पर। साबू सर जरे, सतगुरु के बेसास !-दादू. वानी, पृ. १५६ ! मुहा०---ठेगा बजाना = (१)मारपीट होना। लड़ाई दगा होना। हूँगा-सा पुं० [हिं० ढुंग 1 २० । (२) व्यर्य की खटखट होना । प्रयत्न निष्फल होना। कुछ